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हमारा कर्तव्य–स्वच्छ पर्यावरण

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Thu , 19 Apr

सार

जल एवं वायु धरती के प्राणधारियों के लिए प्रकृति की ओर से मिला अद्भुत उपहार है, लेकिन मानव द्वारा निजी स्वार्थों के लिए प्रकृति से छेड़छाड़ की जा रही है। इससे मानव सहित अन्य सभी प्राणियों पर प्रदूषण का खतरा मंडराने लगा है तथा यह भविष्य में तबाही के संकेत है

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विस्तार

रहीम ने लिखा है “रहिमन पानी रखिए, बिन पानी सब सून”, परंतु जल एवं वायु के बिना संसार में किसी भी प्राणधारी के अस्तित्व की परिकल्पना नहीं की जा सकती। यह कहना तर्कसंगत है कि जल ही जीवन है तथा वायु के बिना धरती पर जीवन असंभव है। जल एवं वायु धरती के प्राणधारियों के लिए प्रकृति की ओर से मिला अद्भुत उपहार है, लेकिन मानव द्वारा निजी स्वार्थों के लिए प्रकृति से छेड़छाड़ की जा रही है। इससे मानव सहित अन्य सभी प्राणियों पर प्रदूषण का खतरा मंडराने लगा है तथा यह भविष्य में तबाही के संकेत है।

पर्यावरण गड़बड़ाने से मौसम का घटनाचक्र बदलने लगा है। धरती का तापमान तेजी से बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप हिमालय पर स्थित हजारों वर्ष पुराने ग्लेशियर पिघलने लगे हैं। इसलिए गर्मियों में अत्यधिक गर्मी हो जाती है तथा सर्दियों में कड़ाके की ठंड होने लगी है। कभी भयंकर सूखा पड़ जाता है। कभी इतनी अधिक बारिश हो जाती है कि जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हो जाता है। बादल फटने की घटनाएं आम हो गई हैं। पहाड़ दरकने लगे हैं तथा भूस्खलन से हर वर्ष काफी नुकसान होता है। पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखने के लिए सरकार का ही नहीं बल्कि पूरे समाज का नैतिक दायित्व है। 

जलवायु में बढ़ते प्रदूषण से पर्यावरण प्रेमी अत्यंत चिंतित हैं। भू-विज्ञान के अनुसार पृथ्वी के लगभग दो तिहाई भाग में पानी है, लेकिन यह सारा पानी पीने योग्य नहीं है जबकि शेष बचे भूभाग में जनजीवन है। यहीं उपलब्ध पानी से समस्त प्राणियों की आवश्यकताएं पूरी होती हैं, मगर निरंतर प्रदूषित हो रहे पर्यावरण का सबसे अधिक प्रभाव जल और वायु पर ही पड़ता है। प्रकृति से ही हो रही छेड़छाड़ से पारंपरिक जल स्रोतों का अस्तित्व खतरे में है तथा वायुमंडल पूरी तरह से प्रभावित हो गया है। परिणामस्वरूप लगभग आधी से अधिक जनसंख्या के लिए नियमित रूप से स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं हो रहा है। 

इसलिए यह कहा जा रहा है कि धरती पर यदि तृतीय विश्व युद्ध होगा तो उसका कारण स्वच्छ पेयजल ही होगा। इसलिए देश एवं दुनिया में बिगड़ रहा पर्यावरण भविष्य के लिए कड़ी चुनौती होगी। मनुष्य शुरू से ही पर्यावरण संतुलन के प्रति संवेदनशील रहा है।

सैकड़ों वर्ष पहले बुजुर्गों ने भविष्य के इस खतरे को भांप लिया था। इसलिए उन्होंने वीरान पड़ी भूमि पर विभिन्न श्रेणियों के पेड़ लगाए। इनसे प्राणधारियों के लिए पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मिल रही है। इसके साथ ही इन वृक्षों की शीतल छाया से तापमान स्थिर रहता है तथा जमीन में भी नमी बनी रहती है। एक समय था जब प्राकृतिक जल स्रोतों का संरक्षण करना लोग पुण्य का कार्य समझते थे। युवा वर्ग सप्ताह-दो सप्ताह के बाद जलस्रोतों की सफाई करते थे। कर्मकांड के ज्ञाता यदि किसी व्यक्ति को ग्रह शांति का उपाय बताते थे, उनमें जलस्रोतों व रास्ते की सफाई प्रमुख होती थी। विशालकाय पीपल या वटवृक्ष के नीचे लोग प्याऊ लगाते थे।

तिदिन वहां रखे मिट्टी के बड़े-बड़े घड़ों में पानी भरा जाता था। बदलते समय में लोग अपने कर्तव्यों को भूल गए हैं, जिससे पर्यावरण संरक्षण नहीं हो पा रहा है। पहले कच्चे घर आंगन होने से बरसाती पानी का जमीन में रिसाव हो जाता था। इससे भी इनमें नमी बनी रहती थी। अब घर आंगन भी पक्के हैं, इससे बरसात का पानी एकदम बह जाता है। विकास की अंधी दौड़ में भी पर्यावरण प्रभावित हुआ है।

लंबी चौड़ी सडक़ों को पक्का करने, बड़े बड़े भवनों के निर्माण तथा कंक्रीट के बड़े-बड़े मैदानों के बनने से तापमान प्रभावित हुआ है। जमीन पर कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए गए हैं। निर्माण कार्य के लिए अंधाधुंध खनन हो रहा है। इनमें प्रयोग होने वाली लकड़ी के लिए पेड़ों का कटान हो रहा है। इससे पर्यावरण पूरी तरह प्रभावित हुआ है। उपजाऊ भूमि रेत में बदल गई है। नदियों, खड्डों व नालों में रेत, बजरी एवं पत्थरों का अंधाधुंध खनन हुआ है। इससे प्राकृतिक जल स्त्रोत लुप्त हो गए हैं।