आज तक देश में ऐसा भी नहीं देखा गया था कि कोई भी मुख्यमंत्री अपने PA के लिए राजनीतिक प्रदर्शन करे, यह भी केजरीवाल ने करके दिखा दिया है और वजह बनीं स्वाति मालीवाल..!!
लोकसभा चुनाव प्रचार के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देते हुए सर्वोच्च अदालत के न्यायाधीशों ने भी नहीं सोचा होगा, कि केजरीवाल नए विवाद में उलझ जाएंगे. अभी तक तो दिल्ली सरकार में शराब घोटाला केजरीवाल की ख्याति बनी हुई थी. अब शराब के बाद स्वाति विवाद से उनकी ख्याति जुड़ गई है. लोकसभा चुनाव में केजरीवाल के प्रचार से पार्टी को कितना लाभ होगा यह तो चुनाव परिणाम से स्पष्ट होगा, लेकिन अंतरिम जमानत के बाद स्वाति विवाद से केजरीवाल का सियासी संसार बिखरता हुआ दिखाई पड़ रहा है.
जिस अप्रत्याशित ढंग से आम आदमी पार्टी का राजनीतिक उदय हुआ था, उसी अप्रत्याशित ढंग की उनकी राजनीति भी दिखाई पड़ रही है. अब तक भारत में कोई भी राजनेता जेल से सरकार चलाने की मंशा और नीयत नहीं दिखा पाया है, लेकिन अरविंद केजरीवाल का जेल से सरकार चलाने का कारनामा भी लोकतंत्र और संविधान देख रहा है.
आज तक देश में ऐसा भी नहीं देखा गया था कि कोई भी मुख्यमंत्री अपने PA के लिए राजनीतिक प्रदर्शन करें. यह भी केजरीवाल ने करके दिखा दिया है. स्वाति मालीवाल के साथ मारपीट करने के आरोपी केजरीवाल के PA विभव कुमार को जब दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया तो उसके विरोध में अरविंद केजरीवाल ने अपने वरिष्ठ नेताओं के साथ आप कार्यालय से बीजेपी कार्यालय तक मार्च निकालकर उनकी गिरफ्तारी की चुनौती दी.
स्वाति मालीवाल आम आदमी पार्टी की चर्चित महिला नेता रही हैं. वह 10 सालों तक अरविंद केजरीवाल की कृपा से दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष रही हैं. उन्हीं की कृपा से उन्हें राज्यसभा में जाने का अवसर भी मिला है. अरविंद केजरीवाल के जेल जाने के बाद ऐसे क्या घटनाक्रम हुए, कि सबसे करीबी स्वामि मालीवाल को अरविंद केजरीवाल के सरकारी निवास पर मारा-पीटा गया. ऐसा घटनाक्रम भी शायद पहली बार हुआ है, कि किसी महिला सांसद की उसी पार्टी के मुख्यमंत्री के निवास पर PA द्वारा पिटाई की गई हो.
अब आम आदमी पार्टी इस घटनाक्रम के पीछे बीजेपी की साजिश का आरोप लगा रही है, जो स्वाति मालीवाल महिला आयोग के अध्यक्ष के रूप में हजारों महिलाओं को प्रताड़ना के मामलों में संरक्षण देने के लिए जानी जाती हैं, वह खुद ही अपनी पार्टी में संरक्षण हासिल नहीं कर पा रही हैं. इस पूरे मामले में केवल राजनीति हो रही है. एक दल दूसरे दल को महिला अत्याचारों के लिए दोषी साबित कर रहा है. राजनीति में महिलाओं के साथ इस तरह के दुर्व्यवहार जब भी सामने आते हैं, तब ऐसे ही लीपापोती की राजनीति होती रही है.
दिल्ली में घटित निर्भया कांड के समय अरविंद केजरीवाल और स्वाति मालीवाल ने मिलकर महिला हितों के लिए संघर्ष किया था और आज दोनों महिला अत्याचार पर अपने-अपने हितों के लिए एक दूसरे के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं. इस पूरे घटनाक्रम में एक पहलू यह भी है, कि PA विभव कुमार क्या आम आदमी पार्टी के पर्दे के पीछे के सूत्रधार हैं. स्वाति मालीवाल, मनीष सिसोदिया को याद कर रही हैं. वह कह रही हैं, कि अगर मनीष सिसोदिया होते तो उनके साथ ऐसा अत्याचार नहीं होता. संजय सिंह भी स्वाति मालीवाल के समर्थन में दिखाई पड़ रहे हैं.
इस मामले पर पार्टी विभाजित ढंग से प्रतिक्रिया व्यक्त कर रही है. ऐसा लगता है, कि आम आदमी पार्टी विभाजन की प्रसव पीड़ा से गुजर रही है. लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद पार्टी के अंदर बड़े विभाजन की संभावना भी दिखाई पड़ रही है.
यह भी पहली बार हुआ है, कि आम आदमी पार्टी को राजनीतिक दल के रूप में ED ने आरोपी बनाया है. अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी पर शराब घोटाले के आरोपों के नशे का सुरूर अभी चढ़ा ही हुआ था, कि इसी बीच स्वाति मालीवाल की पिटाई का हादसा हो गया.
राजनीति में महिलाओं की भागीदारी और भूमिका लगातार बढ़ रही है. हर दल में काम करने वाली महिला राजनेताओं को ऐसी अप्रिय परिस्थितियों से कई बार गुजरा पड़ता है. महिला होने की जो प्राकृतिक खूबसूरती है, वही राजनीति में भी महिलाओं की कमजोरी बन जाती है. राजनीति में महिलाओं की भागीदारी विज्ञापन के रूप में तो बहुत आकर्षक और चमकदार पेश की जाती है, लेकिन अंदरखाने स्वाति मालीवाल जैसी परिस्थितियों ही दिखाई पड़ती हैं.
जो जितना तेजी से आगे बढ़ता है उतना तेजी से ही नीचे भी गिरता है. राजनीति भी इससे अलग नहीं है. अगर प्रगति का प्रोसेस नेचुरल रहेगा तभी वह स्थाई हो सकता है. अन्यथा ऐसी घटनाएं सामने आएंगी और अंजाम बर्बादी तक ले जाएंगे. स्वाति मालीवाल का पूरा मामला पुलिस जांच में है. आरोपी की गिरफ्तारी हो चुकी है.
यह इतना हाई प्रोफाइल मामला है, कि ऐसा माना जा सकता है, कि बारीकी से जांच होगी और दोषी को सजा मिलेगी. इस मामले की आपराधिक पृष्ठभूमि अलग है, लेकिन इसका राजनीतिक सरोकार बहुत व्यापक और गंभीर दिखाई पड़ता है. इससे आम आदमी पार्टी में महिलाओं की भूमिका और सम्मान पर भी नकारात्मक सोच बनता है. इस मामले में अरविंद केजरीवाल ने ऐसा लगता है, बड़ी राजनीतिक गलती की है.
घटना के तुरंत बाद उन्हें अपनी सांसद से संपर्क करना चाहिए था. आरोपी को पुलिस को सौंपना चाहिए था. राजनीतिक मतभेदों को राजनीतिक ढंग से सुलझाने की जरूरत थी. महिला राजनेता के साथ ऐसे दुर्व्यवहार राजनीति से महिलाओं को हतोत्साहित करते हैं.
ऐसा लगता है, 'पेट से भी बड़ी भूख सत्ता की भूख' होती है. जेल जाने पर भी मुख्यमंत्री का पद नहीं छोड़ेंगे.अगर छोड़ना भी पड़ा तो पत्नी को ही मुख्यमंत्री बनाने की राजनीतिक चालें चलेंगे.
आम आदमी पार्टी मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर भी गंभीर रूप से कशमकश में दिखाई पड़ती है, जो परिस्थितियां अभी चल रही हैं, वह लंबे समय तक तो नहीं चल सकतीं. लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद अगर केंद्र में मजबूत सरकार स्थापित होती है, तो दिल्ली की सरकार के संबंध में राजनीतिक फैसले लिए जा सकते हैं.
केजरीवाल के पास बहुत अधिक समय नहीं है. उन्हें राजनीतिक फैसला लेकर पार्टी के किसी अनुभवी और भरोसेमंद नेता को मुख्यमंत्री के पद पर स्थापित कर देना चाहिए. अगर इसमें देर की गई तो परिस्थितियां उनके हाथ से निकल जाएंगी. अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का तिलिस्म टूटता जा रहा है. जो इमानदारी और स्वराज के लिए संघर्ष करते हुए यह पार्टी पैदा हुई थी. उसके नेताओं के आचरण उसके विपरीत होने से लोगों को पार्टी निराश कर रही है.
कथनी और करनी में अंतर साफ-साफ दिखाई पड़ रहा है. करप्शन के मामले के पीछे साजिश भी हो सकती है, लेकिन इसे साबित भी करना पड़ता है. खुद को ईमानदार कहने से ही ईमानदारी साबित नहीं होती. आचरण भी ईमानदार दिखना चाहिए. कथनी और करनी में एकरूपता होनी चाहिए. हर समय केवल विरोध की राजनीति से अंतत: हाथ कुछ नहीं लगता. आंदोलन से निकली आप आपस में भी आंदोलनरत दिखाई पड़ रही है. सियासी स्वाति का शंखनाद अरविंद केजरीवाल के सियासी वैभव और जेल के घालमेल को बढ़ा गया है.