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फिल्मों से भी प्यारे, सियासी नज़ारे

सार

संसद और विधानसभा के सदन चल रहे हों, तो ना मीडिया को चटपटी खबरों की कमी होती है और ना ही दर्शकों को मनोरंजन की. नेता वही होते हैं, लेकिन उनकी प्रतिभा सदन की बैठकों के दौरान ही दिखाई पड़ती है.हर रोज लोकसभा और विधानसभा के गेट पर प्रदर्शन खबरों में बने रहने का जरिया बन गया है..!!

janmat

विस्तार

    सदन के भीतर गंभीरता का संवाद तो गुज़रे ज़माने की बात है. अब तो हो हल्ला और हुड़दंग नेतागिरी को हिट करने का फॉर्मूला बन गया है. ऐसे-ऐसे प्रतीक देखने को मिल रहे हैं, जो अब वास्तविक भिखारी के हाथ में भी नहीं देखे जाते.

    मध्य प्रदेश विधानसभा में कटोरा पॉलिटिक्स चर्चा में है, तो राहुल गांधी गुल्लक पॉलिटिक्स को हवा दे रहे हैं. कोई फिलिस्तीन का प्रतीक झोला लेकर संसद जा रहा है, तो कोई खबरों में रहने के लिए नए-नए स्वांग रच रहा है. विधानसभा की बैठकें हर साल कम होती जा रही हैं.

    मध्य प्रदेश में तो सदन की बैठकें शायद इसीलिए कम हो रही हैं, क्योंकि विचार से ज्यादा प्रदर्शन को प्रमुखता मिलती है, तो फिर विचार के लिए सदन की बैठक की आवश्यकता ही क्यों है? ऐसे प्रदर्शनों से संसदीय मर्यादा को शर्मसार किया जाता है.  इसके लिए खजाने से करोड़ों रुपए क्यों खर्च किए जाते हैं?

    सुप्रसिद्ध व्यंगकार हरिशंकर परसाई के कुछ व्यंग्य तो ऐसा लगता है, कि जो सोच कर लिखे गए थे, वह सब अब हो रहा है. परसाई जी कहते हैं, कि विचार जब लुप्त हो जाता है, या विचार प्रकट करने में बाधा होती है, या किसी के विरोध से भय लगने लगता है, तब तर्क का स्थान हुल्लड़ या गुंडागर्दी ले लेती है. उनका विचार है, कि हमारे लोकतंत्र की यह ट्रेजेडी और कॉमेडी है, कि कई लोग जिन्हें आजन्म जेलखाने में रहना चाहिए, वे जिंदगीभर संसद या विधानसभा में बैठते हैं.

    मध्य प्रदेश खासकर कांग्रेस तो दल-बदल का वर्निंग सोर्स बनी हुई है. ऐसे हालात पर हरिशंकर परसाई व्यंग्य करते हैं, कि रोज विधानसभा के बाहर एक बोर्ड पर आज का बाजार भाव लिखा रहे, साथ ही उन विधायकों की सूची चिपकी रहे, जो बिकने को तैयार हैं. इससे खरीदार को भी सुविधा होगी और माल को भी.

    राजनीति में आत्मविश्वास लाजवाब होता है. बार-बार हार कर भी जीतने के लिए लड़ने की लालसा होती है. खुद अपराध में लिप्त होने के बाद भी दूसरे को कानून का पाठ पढ़ाने की हिम्मत होती है. जो हमने किया है, जो हम करते रहे हैं, जो हमारा चरित्र रहा है, उसको भूलकर कर्ज, करप्शन और क्राइम का कटोरा दिखाने का साहस सियासत ही कर सकती है. इस पर हरिशंकर परसाई कहते हैं, कि आत्मविश्वास कई प्रकार का होता है. धन का, बल का, ज्ञान का, लेकिन मूर्खता का आत्मविश्वास सर्वोपरि होता है. 

    संसद के गेट पर मोदी और अडानी के चित्र का झोला राहुल गांधी ने टांगा. नारे और तख्तियां तो रोजमर्रा का विषय बन गईं. मध्य प्रदेश विधानसभा का तो दूसरा ही दिन है. जितने दिन भी विधानसभा चलेगी, हर दिन प्रदर्शन के नए स्वांग रचे जाएंगे. अभी तो कटोरा पकड़ा गया है. गुल्लक तो अभी बाकी है. जैसा दिल्ली में हो रहा है, उसमें मध्य प्रदेश कैसे पीछे रह सकता है. झोले को भी मध्य प्रदेश में अभी अवसर है.

    गुल्लक पॉलिटिक्स भी चरम पर है. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में आष्टा के बच्चों ने गुल्लक दी, तो चर्चा हुई. बच्चों के मां-बाप के खिलाफ़ जांच की कार्रवाही हुई. आत्महत्या की दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई, तो फिर गुल्लक पॉलिटिक्स चालू हो गई. गुल्लक का मामला हो और कांग्रेस उसमें ना कूदे  ऐसा तो हो नहीं सकता. 

    कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व के नुमाइंदों ने गुल्लक परिवार के पास जाकर बच्चों की राहुल गांधी से बात कराई है. ऐसी भी खबरें आ रही हैं, कि कांग्रेस बच्चों को बड़ी और भरी गुल्लक भेंट करने वाली है. 

    लोकसभा में राहुल गांधी हाथरस के पीड़ित परिवार के रिहैबिलिटेशन का दावा कर रहे हैं, तो मध्य प्रदेश कांग्रेस गुल्लक वाले बच्चों की देखरेख करने का दावा कर रही है. सियासत का अपना अलग न्याय है. अदालत का न्याय अपनी जगह है, लेकिन सियासत का न्याय खुद ही कंप्लेनेंटऔर खुद ही जस्टिस बनने का है. 

    मध्य प्रदेश विधानसभा के सात दशक पूरे होने का यह ऐतिहासिक अवसर भी है. विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने इस अवसर पर अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा है, कि 1 नवंबर 1956 को मध्य प्रदेश के पुनर्गठन के साथ ही प्रदेश की विधानसभा अस्तित्व में आई. पहला अधिवेशन 17 दिसंबर 1956 को आरंभ हुआ था.

    उनका कहना है, इन सात दशकों में मध्य प्रदेश विधानसभा ने भारत के संसदीय इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों से अंकित किया है. इन 7 दशकों में यह सदन कई ऐतिहासिक क्षणों का साक्षी रहा है. सदन के सात दशक के लंबे इतिहास में विधानसभा के गेट पर कटोरा पॉलिटिक्स का भी सदन  साक्षी बना है.

    किसी भी सदन की संसदीय यात्रा में ऐतिहासिक क्षणों का मौका होता है, तो अप्रिय प्रसंग के अवसर भी होते हैं. विचारों को व्यक्त करने के लिए वैसे तो अप्रिय प्रसंगों की कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन इसे संसदीय आचरण में गिरावट ही कहा जाएगा, कि इस तरह के प्रदर्शन लगातार बढ़ते जा रहे हैं.

    भूत मिट चुका है और भविष्य का कोई अस्तित्व नहीं है. भविष्य के सपनों के लिए वर्तमान को अप्रिय बनाना खुद के साथ ही अन्याय कहा जाएगा. विधानसभा अध्यक्ष ने अपने आलेख में कहा है, कि अब तक मध्य प्रदेश की विधानसभा में 2600 से ज्यादा सदस्य रह चुके हैं. इनमें से अधिकांश अब शायद इस संसार में नहीं होंगे. 

    जो वर्तमान है वह भी भूत होगा. ना भूत याद किया जाएगा, न भविष्य बचेगा, व्यक्तित्व का वर्तमान स्वरूप ही वर्तमान में काम आएगा. प्रसिद्धि के लिए अभिनय फिल्मों में अच्छा लगता है, पब्लिक लाइफ में अभिनय जैसी घटनाएं व्यक्तित्व बनाने से ज्यादा बिगाड़ती हैं.