राहुल-प्रियंका की वर्तमान कांग्रेस ने नेहरू-इंदिरा और राजीव गांधी की सोच और कल्पनाओं को भी पीछे छोड़ दिया है. सत्ता की बेकरारी में ऐसे-ऐसे मुद्दे और घोषणाएं की जा रही हैं जिन पर यह विचार उठना स्वाभाविक है कि अगर यही घोषणाएं सबसे उपयुक्त हैं तो फिर अब तक कांग्रेस ने देश को धोखे में क्यों रखा था? कांग्रेस के पूर्वज जिन मुद्दों के खिलाफ थे वही अब आधुनिक कांग्रेस को राजनीतिक लाभकारी लग रहे हैं.
प्रियंका गांधी ने मंडला में स्कूली बच्चों के लिए हर महीने नगद पैसे देने की ‘पढ़ो और पढ़ाओ’ योजना लागू करने का वादा किया है. उन्होंने यह भी घोषणा की है कि कक्षा एक से लेकर 12वीं तक बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जाएगी. आकर्षक घोषणाओं को सुनकर न केवल मूर्ख बल्कि समझदार मनुष्य भी धोखा खा जाते हैं. चुनावी घोषणाएं सुंदर मोर की तरह आकर्षक होती हैं. मोर के वचन अमृत के समान हैं और आहार सांप का है. राजनीति में सत्ता ही सच है. सत्ता के लिए झूठ भी पाप नहीं होता. राजनीति में तो झूठ को गलत भी नहीं माना जाता. झूठ बोलना राजनीति की आदत बन गई है और अब तो झूठ राजनीतिक सफलता का हुनर माने जाने लगा है.
प्रियंका गांधी निशुल्क शिक्षा की घोषणा कर रहीं हैं. देश में पहले से ही अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा कानून लागू है. मध्यप्रदेश में स्कूली शिक्षा में विद्यार्थियों से फीस नहीं ली जाती है. विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति योग्यता और समानता की दृष्टि से आजादी के समय से ही दी जा रही है. पहले पढ़ाई की प्रेरणा के लिए स्कॉलरशिप मिलती थी. अब तो फेल होने पर भी नगद पैसे दिए जाएंगे.
देश की बुनियाद स्कूली शिक्षा है. भारत की आज जो भी दुरावस्था है उसके लिए खराब शिक्षा व्यवस्था ही जिम्मेदार है. सरकारी स्कूलों में आज भी बालिकाओं के लिए सभी स्थानों पर टॉयलेट नहीं है. भवन विहीन स्कूल आसानी से देखे जा सकते हैं. यहां तक की पानी-बिजली की व्यवस्था भी सुविधाजनक ढंग से स्कूलों में उपलब्ध नहीं है. कोई भी राजनीतिक दल स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं के विस्तार को अपना एजेंडा नहीं बनाता.
हर राज्य में शिक्षकों के हजारों पद रिक्त हैं. 15 महीने तक मुख्यमंत्री रहने वाले कमलनाथ के गृह जिले छिंदवाड़ा में भी शिक्षकों के हजारों पद खाली हैं. मुख्यमंत्री रहते हुए कम से कम अपने गृह जिले के पदों को भरने की पहल की ही जा सकती थी. एक दूसरे पर दोषारोपण और जिम्मेदारी डालने से शिक्षा व्यवस्था तो नहीं सुधरने वाली. सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को तो अभाव और असुविधा में ही शिक्षा प्राप्त करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.
देश के बाकी राज्यों की तुलना में मध्यप्रदेश की स्कूली शिक्षा व्यवस्था तो प्रशासनिक अक्षमता के ऐतिहासिक कारणों से ज्यादा बदहाल स्थिति में है. स्कूली शिक्षा व्यवस्था में शिक्षाकर्मी की व्यवस्था शुरू करने का महापाप कांग्रेस की सरकार ने ही किया था. शिक्षकों का वेतन भत्ता बाद की सरकारों द्वारा कई बार बढ़ाने के बाद भी सरकार के बाबूओं से भी काफ़ी कम है. जो शिक्षक देश के भविष्य का निर्माण करते हैं, जब उनके भविष्य को ही शिक्षाकर्मी जैसे कथित नवाचारी विचार के अंधकार में डाल दिया गया हो तो फिर कोई भी राजनीतिक घोषणा शिक्षा व्यवस्था में कैसे सुधार ला सकेगी?
देश में स्कूलों में बच्चों के एनरोलमेंट के लिए प्रोत्साहित करने की दृष्टि से मिड-डे मील और कई तरह की आकर्षक योजनाएं पहले से चल रही हैं. स्कूली ड्रेस दिए जाने की भी योजनाएं हैं. यहां तक की छात्राओं को साइकिल भी उपलब्ध कराई जाती है. इसी तरह की कोई सुविधा अगर बच्चों को उपलब्ध कराने की नई योजना लागू करने की बात की जाती तो ज्यादा उचित होता. आज सबसे बड़ी ज़रूरत शिक्षा में बुनियादी सुविधाओं के विस्तार की है.
मध्यप्रदेश सहित देश का कौन सा ऐसा राज्य है जहां निजी शिक्षा माफिया फल-फूल नहीं रहा है. कोई भी परिवार अपने बच्चों को निजी स्कूलों में हजारों रुपए फीस देकर पढ़ाने की कोशिश करता है. जो नेता सरकारी स्कूलों के बच्चों को पैसे का लोभ देकर सत्ता हासिल करना चाहते हैं वह कभी भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजना पसंद नहीं करते हैं. यह तो राजनीतिक लाभ के लिए गरीबों का दोहन और सरकार के जनधन का खुला दुरुपयोग ही कहा जाएगा.
प्रियंका गांधी सभा में लोगों से संवाद करते हुए यह भी कह रही थीं कि मंडला में अस्पताल नहीं है. लोगों को तकलीफ उठाकर इलाज के लिए दूर जाना पड़ता है. इसके लिए उन्होंने मध्यप्रदेश की वर्तमान सरकार को जिम्मेदार बताया. उन्होंने कहा कि जो सरकार 18 साल में अस्पताल नहीं बना सकती उसे सरकार में रहने का कोई हक नहीं है. बात बिल्कुल सही है लेकिन प्रियंका गांधी को यह भी जवाब देना चाहिए था कि मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा समय तक कांग्रेस की सरकार जब चली तो उस समय यह अस्पताल क्यों नहीं बनाया जा सका?
सुप्रीम कोर्ट मुफ्तखोरी की योजनाओं को रोकने के लिए राज्यों को नोटिस जारी कर रहा है और दूसरी तरफ नगद पैसा बांटने की घोषणाएं हो रही हैं. नगद पैसा देने की योजना कोई भी राजनीतिक दल घोषित करे, उसका समर्थन नहीं किया जा सकता. प्रियंका गांधी ने यूपी के चुनाव में भी लोक लुभावन बहुत सारी घोषणाएं चुनावी घोषणा पत्र में की थी उनके तो कोई परिणाम नहीं निकले. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने हर परिवार को 72 हज़ार रूपये साल में देने की योजना भी घोषित की थी. कांग्रेस के सांसदों की संख्या उनके वादों की विश्वसनीयता के पैमाने के रूप में हमारे सामने है.
पैसे की ताकत पर सरकार गिराने का आरोप कांग्रेस लगाती है. पैसे की ताकत पर नौकरियां मिलने का आरोप भी कांग्रेस लगाती है. पैसे की ताकत पर परीक्षा में पास होने के लिए लोग कोशिश करते हैं. पैसे की ताकत पर पेपर लीक गिरोह के झांसे में आकर विद्यार्थी पैसे भी गंवाते हैं और अवसर भी गंवाते हैं. कांग्रेस अब पैसे की ताकत पर ही एमपी में अपनी फेल सियासत को पास करने के लिए बेकरार है. कांग्रेस ने इतने लंबे समय तक सत्ता भोगी है. कम से कम उस पार्टी को तो सत्ता के लिए सिद्धांतों और विचारों को तिलांजलि देने से बचना चाहिए. देश के भविष्य बच्चों को फ्री के पैसे की लत लगाने से बचाने का प्रयास किया जाना चाहिए.