हिंदुत्व पर जागृति का नया दौर शुरू हुआ है. प्रयागराज महाकुंभ को महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर पूर्णता मिल रही है. यह पहला महाकुंभ है, जब पहले स्नान से लेकर अंतिम अमृत स्नान पर्व तक श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती गई. गंगा-यमुना-सरस्वती की त्रिवेणी में पवित्र स्नान आत्म शुद्धता के साथ हिंदुत्व की पहचान का आधारकार्ड जैसा बन गया है..!!
यह पहला महाकुंभ होगा जब राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों से लगाकर हिंदुत्व की राजनीति करने वाला कोई भी राजनेता स्नान करने से नहीं चूका होगा. हिंदुत्व के पर्व त्यौहारों के आयोजनों में जहां पहले सरकारें अपने को अलग रखती थीं, वहीं अब ऐसा कोई पर्व नहीं है, जिसके आयोजन में समाज के साथ-साथ सरकारों की भूमिका नहीं रहती हो. हिंदुत्व की पहचान के लिए नए-नए धाम विकसित हो रहे हैं. मध्य प्रदेश में बागेश्वर धाम और कुबरेश्वर धाम काफी लोकप्रिय हो रहे हैं.
विश्व धरोहर खजुराहो के समीप स्थित बागेश्वर धाम तो जैसे राजनीति का नया धाम बन गया है. पीएम नरेंद्र मोदी के बागेश्वर धाम पहुंचने से इसकी लोकप्रियता में वृद्धि हुई है. भारत की राष्ट्रपति भी बागेश्वर धाम पहुंची हैं. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री तो पिछले एक महीने में चार बार बागेश्वर धाम गए हैं. कभी प्रोटोकॉल के लिए तो कभी व्यवस्थाओं के निरीक्षण के लिए उन्हें जाना पड़ा है.
बागेश्वर धाम के प्रति राजनीति की बढ़ती रुचि हिंदुत्व की पहचान के प्रति संदेश देने का प्रयास ही हो सकता है. बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री लोगों की पर्ची निकालने से प्रसिद्ध हुए हैं. उनकी प्रसिद्धि बहुत पुरानी नहीं है, बल्कि इसे नई-नई ही कहा जा सकता है. हिंदुत्व की सामाजिक एकता के लिए वह यात्रा भी निकाल चुके हैं. हिंदू राष्ट्र और हिंदुत्व के प्रति उनके वक्तव्य भी अक्सर आते रहते हैं. महाकुंभ में भगदड़ में हुई मृत्यु पर उनके मोक्ष जैसे बयान पर काफी आलोचना और प्रतिक्रियाएं आई हैं.
राजनीति और धर्म अलग-अलग हैं, लेकिनआचरण में दोनों एक दूसरे के पूरक ही लगते हैं. बागेश्वर धाम में कैंसर हॉस्पिटल और रिसर्च सेंटर का शिलान्यास प्रधानमंत्री ने किया है. राष्ट्रपति वहां आदिवासी कन्याओं के विवाह समारोह में शामिल हो रही हैं. बागेश्वर धाम की इन सामाजिक सेवाओं को निश्चित रूप से प्रशंसा मिलनी चाहिए. शायद इसीलिए राजनीति के राष्ट्र के प्रमुख और राष्ट्र के संवैधानिक प्रमुख ने धाम में पहुंचकर उनकी सामाजिक सेवाओं को मान्यता प्रदान की है.
राजनीति में हिंदुत्व पिस रहा है. दूसरे धर्म के लोगों से हिंदुत्व का विरोध स्वभाविक हो सकता है, लेकिन राजनीति के कारण सनातन धर्मी ही हिंदुत्व के विरोधी बन जाते हैं. कट्टर हिंदुत्व और सॉफ्ट हिंदुत्व में राजनीति का खेल शुरू हो जाता है. वोट बैंक के राजनीतिक रंग दिखने लगते हैं. महाकुंभ की व्यवस्थाओं के विरुद्ध जिन राजनेताओं के भी वक्तव्य आ रहे हैं, वह सनातन धर्मियों की ओर से ही दिए जा रहे हैं. सनातन के प्रति आस्था रखने वाले ही वोट बैंक की राजनीति में सेकुलरवाद की भूमिका में दिखने में लग जाते हैं.
पीएम मोदी के राजनीतिक उभार और हिंदुत्व की राजनीति का विकास साथ-साथ चल रहा है. गुजरात में सद्भावना यात्रा में मुख्यमंत्री के रूप में जब उन्होंने टोपी पहनने से इनकार कर दिया था, तब इसकी हिंदुत्व में व्यापक प्रतिक्रिया हुई थी. उसके बाद धीरे-धीरे पीएम उम्मीदवार के रूप में उनका काशी आगमन और 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में बीजेपी सरकार की स्थापना हिंदुत्व की राजनीति के दौर की शुरुआत थी. तब से लेकर अब तक हिंदुत्व सनातन के प्रति पीएम मोदी ने कभी भी अपनी पहचान को जोड़ने से दूरी नहीं बनाई.
सनातन तीर्थ स्थलों पर विकास का इतिहास आज लिखा गया है, तो वह भी हिंदुत्व की राजनीति के कारण ही संभव हो पाया है. चाहे काशी विश्वनाथ कॉरिडोर हो, चाहे महाकाल का कॉरिडोर हो, केदारनाथ का कॉरिडोर हो लगभग सभी प्रमुख तीर्थं स्थलों पर सौंदर्यीकरण और विकास के काम किए गए हैं.
अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हिंदुत्व की राजनीति का ऐतिहासिक क्षण रहा है. हिंदुओं के तीर्थ स्थलों पर विकास के कारण श्रद्धालुओं की संख्या दिनों-दिन लगातार बढ़ी है. महाकुंभ में इस बार श्रद्धालुओं के पहुंचने के सारे रिकॉर्ड टूट गए हैं. हिंदू तीर्थ स्थलों पर श्रद्धालुओं के पहुंचने से उन स्थानों पर आर्थिक गतिविधियों में तेजी आई है. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ यही कहते हैं, कि महाकुंभ से यूपी की अर्थव्यवस्था में तीन लाख करोड़ जुड़े हैं.
अयोध्या में राम मंदिर आज पर्यटकों की दृष्टि से यूपी का सबसे बड़ा केंद्र बन गया है, जो पहले कभी ताजमहल के कारण आगरा हुआ करता था, वह अब अयोध्या बन गया है. हिंदुत्व की चेतना राजनीति के साथ ही सामाजिक क्षेत्र में भी बढ़ी है. जातिवाद के कारण इसे नुकसान पहुंचाने की कोशिशें असफल होती जा रही हैं. जातिगत जनगणना की राजनीतिक मांग भी हिंदुत्व में जातिवाद का विभाजन करने का ही एक प्रयास है.
बीजेपी के नेता जहां महाकुंभ में अपनी आस्था प्रकट करने में आगे दिखे, वहीं कांग्रेस के बड़े नेता अपनी भारतीय पहचान स्थापित करने में चूक गए हैं. अयोध्या में राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के समय भी कांग्रेस की ओर से आमंत्रण ठुकरा दिया गया था. सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी जैसे बड़े नेता अब तक राम मंदिर का दर्शन करने नहीं जा सके हैं. कांग्रेस के कुछ मुख्यमंत्री और नेता ज़रूर महाकुंभ पहुंचे हैं, लेकिन इन प्रमुख नेताओं को महाकुंभ में पवित्र स्नान करते हुए नहीं देखा गया है.
धार्मिक आस्था राजनीति से ऊपर है, लेकिन अगर कोई राजनेता अपनी धार्मिक आस्था इस वजह से प्रकट नहीं करना चाहता कि, उसके कारण उसके किसी एक समुदाय के वोट बैंक पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा, तो फिर यह आस्था का राजनीतिक सौदा ही कहा जाएगा.
बागेश्वर धाम में सामाजिक सेवाओं की जो पहल की गई है वह हर धार्मिक स्थलों पर होनी चाहिए. धार्मिक संतों को जन समर्थन और दान-पुण्य भी पर्याप्त मिलता है. अगर दान-पुण्य का उपयोग सामाजिक सेवाओं और स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए किया जाता है, तो उससे बेहतर कुछ भी नहीं हो सकता.
बागेश्वर धाम के युवा संत ने इसकी शुरुआत करके अपनी छवि का लोक व्यापीकरण किया है. जो समाज से जुड़ेगा, जो सेवा से जुड़ेगा राजनीति उससे अपने आप जुड़ जाएगी. हर वह धाम राजनीति का धाम बन जाएगा, जहां जन विश्वास होगा, जहां जन सेवाओं का इतिहास बनाया जाएगा.