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देश की आत्मा को कचोटती, अंतरात्मा की राजनीति

सार

आत्मा की खोज और अंतरयात्रा, मानव जीवन का प्राथमिक और अंतिम लक्ष्य है. सदियों-सदियों में कोई महापुरुष चेतना की इस ऊंचाई पर पहुंचता है, जहां वह आत्मा के परमसत्य की अनुभूति करता है. 

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विस्तार

भारत की राजनीति में पिछले दिनों अंतरात्मा की आवाज ऐसे गूंजी है कि आत्मा के खोजी शर्मसार हो गए हैं. राजनीति में स्वार्थ और लोलुपता का अंतरात्मा के नाम पर घिनौना मजाक देश के लोकतंत्र की आत्मा को कलंकित कर रहा है. राज्यसभा के चुनाव में अंतरात्मा की आवाज पर विधायकों ने अपनी दलीय आस्था बदलकर कुछ भी हासिल किया हो लेकिन लोकतंत्र को तो असीम नुकसान ही पहुंचा है. हर राजनीतिक दल एक दूसरे पर उनके विधायकों को तोड़ने का आरोप भले लगा रहे हों लेकिन राजनीति के इस हमाम में कोई भी अलग दिखाई नहीं पड़ता.

अंतरात्मा के नाम पर राजनीति के घिनौने मजाक के कारण आत्मा की खोज में लगे भारतीय मनीषी और महापुरुषों की भावनाएं भी आहत हो रही हैं. राजनीति में सत्ता ही सत्य मानी जाती है. इसके लिए कुछ भी अनैतिक नहीं माना जाता. राजनीतिक अनैतिकताओं और असत्य को अंतरात्मा से जोड़ने का महापाप करने से राजनेताओं को बचना चाहिए. इससे भारतीय संस्कृति, धर्म और सनातन परंपरा की विश्वसनीयता भी प्रभावित होती है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अंतरात्मा की आवाज पर फिर भाजपा और एनडीए के साथ जाकर सरकार बनाई. इसके पहले राजद के साथ जब वे गए थे तब भी उनकी अंतरात्मा ने सेकुलर स्वरूप ग्रहण किया था और फिर अब उनकी अंतरात्मा बीजेपी को सेकुलर मानने लगी है.

राज्यसभा के चुनाव में तो अंतरात्मा का जनाजा ही निकाल दिया है. कोई चुनावी प्रदेश ऐसा नहीं बचा जहां राजनीतिक अंतरात्मा ना जगी हो. कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बीजेपी के एमएलए को तोड़कर उसकी अंतरात्मा की आवाज पर सवार हुई तो उत्तरप्रदेश में बीजेपी ने समाजवादी पार्टी के सात विधायकों की अंतरात्मा पर सवार होकर अपने तीसरे प्रत्याशी को राज्यसभा में भेजने में सफलता प्राप्त की है.

राजनीति में दल बदल और सत्ता के लाभ के लिए सत्ताधारी पार्टी के साथ जुड़ने की बहुत पुरानी परंपरा है. अंतरात्मा की यह राजनीति बहुत पहले से हो रही है. इंदिरा गांधी भी अंतरात्मा की आवाज पर सांसदों से मतदान की अपील करती थीं. सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या राजनीति की कोई आत्मा होती है? राजनीति को अब तो सेवा भी कहना थोड़ा अनुचित सा लगने लगा है. सांसदों और विधायकों को चुनाव के समय अपने शपथ पत्र में प्रोफेशन का उल्लेख करना पड़ता है. कई वरिष्ठ नेताओं तक ने राजनीति को ही अपना प्रोफेशन शपथ पत्र में बताया है. जब राजनेता सेवा के माध्यम को व्यवसाय के रूप में स्वयं स्वीकार कर रहे हैं तो फिर इसमें आत्मा और भावना का तो कोई विषय ही नहीं बचा है. व्यवसाय तो लाभ-हानि पर चलता है. अंतरात्मा के नाम पर चुने हुए लोग लाभ की राजनीति के लिए ही कदम उठाते हैं.

हिमाचल प्रदेश में तो कांग्रेस पार्टी के विधायकों ने अंतरात्मा का ऐसा विकृत दृश्य पेश किया है कि आमजन में राजनीति के प्रति वितृष्णा का भाव बढ़ा है. स्पष्ट बहुमत के बाद भी कांग्रेस से 6 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग कर भाजपा के प्रत्याशी को विजयी बनाया है. हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के अंदर चल रही गुटीय राजनीति अभी समाप्त हुई नहीं लगती है. उत्तर भारत के इस अकेले राज्य में कांग्रेस सत्ता में है. लगता है लोकसभा चुनाव के पहले ही हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सत्ता खो देगी. 

दल बदल के लिए राजनीतिक दल एक दूसरे को दोषी ठहराते हैं. यह बात सही है कि जब तक खरीदार नहीं होगा तब तक बिकने वाला चाह के भी बिक नहीं सकता. इसका दूसरा पहलू यह भी है कि जब बिकाऊ उपलब्ध हैं तो खरीददार तो मिल ही जाएंगे.

महाराष्ट्र में दल बदल के कारण नई सरकार बनी है. मध्यप्रदेश में भी कमलनाथ की सरकार दलबदल के कारण चली गई थी. यह अलग बात है कि हाल के विधानसभा चुनाव परिणामों ने यही साबित किया है कि शायद कमलनाथ की सरकार प्रदेश की जनता भी नहीं चाहती थी. पिछले दिनों जिस तरह से कमलनाथ के बीजेपी में शामिल होने की अफवाहें जोरों पर थीं उससे तो यही लगा कि राजनेता की अंतरात्मा किस समय जग जाए और किस समय वह दूसरे दल में चला जाए इसका अनुमान मौसम विज्ञानी भी नहीं लगा सकते. नीतीश कुमार तो पलटू राम के नाम से ही मशहूर हैं. अब कमलनाथ और नकुलनाथ भी लगातार सफाई दे रहे हैं कि उन्होंने कभी नहीं कहा कि वह बीजेपी में जा रहे हैं लेकिन हालत जो बने थे वह तो यही इशारा कर रहे थे कि जाना तो था लेकिन डगर में इतनी बाधाएं आ गईं कि पीछे लौटना पड़ा.

लोकतंत्र के प्रहरी लोकतंत्र को तो बदनाम कर ही रहे थे अब तो वे अंतरात्मा को भी बदनाम करने लगे हैं. मृत्यु सब कुछ समाप्त कर देती है. राजनीति शायद स्वयं को मृत्यु से भी ऊपर मानती है. जिस प्रकार की लोलुपता और लिप्सा राजनेताओं में देखने को मिल रही है उससे तो समाज में नैराश्य बढ़ता जा रहा है. 

प्रकृति नवनिर्माण करती है. यही भारतीय लोकतंत्र पर भरोसा मजबूत कर रहा है. भारतीय राजनीति में अब बड़े-बड़े पदों पर रहने वाले राजनेताओं का भ्रष्टाचार के कारण जेल जाने का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है. मुख्यमंत्री रह चुके लोग भी जेल की हवा खा रहे हैं. राजनीति में भ्रष्टाचार तो सारी सीमाएं तोड़ चुका है. राजनेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले आए दिन सामने आ रहे हैं. न्यायिक प्रक्रिया से गुजरने के बाद भी भ्रष्टाचार के मामले साबित हो रहे हैं. राजनीतिक भ्रष्टाचार से बनाई गई अकूत संपत्तियां जब्त हो रही हैं.

इसके बाद भी राजनीतिक अंतरात्मा शायद भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं जागती है. अंतरात्मा की राजनीतिक आवाज भारत की आत्मा को प्रदूषित न करें ऐसे जनप्रतिनधियों का चुनाव और राजनीति का शुद्धिकरण भारतीय मतदाताओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती है.