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चमकी राष्ट्रवाद की शान, पकड़ाएगा आतंकी पाकिस्तान 

सार

मुंबई हमले की याद ताजा हो गई है. पीड़ित परिवारों के मुरझाए चेहरे न्याय की आशा में खिल गए हैं. हमले का मास्टरमाइंड आतंकी तहव्वुर राणा को भारत लाने में सफलता मिल गई. अमेरिका से उसका प्रत्यर्पण हो गया है. मुंबई का गुनहगार अब दिल्ली के तिहाड़ में राज खोलेगा..!!

janmat

विस्तार

    सत्रह साल के इंतजार के बाद उसे भारत लाने में सफलता पर भी श्रेय की राजनीति हो रही है. इसमें कोई दो राय नहीं हैकि भारत में राष्ट्रवाद के महाराणा के प्रयासों से ही आतंकी भारत आ सका है.

    मुंबई और पूरा देश तो यही चाहता है कि हमले की साजिश का पर्दाफाश हो. हर गुनहगार को कड़ी सजा मिले. न्याय की प्रक्रिया में देरी न हो. देश की भावनाएं तो यही है कि आतंकी को फांसी दी जाए. 

    सजा देने का काम सरकारों का नहीं है. अदालतें सजा तय करेंगी. भारत में भले ही कुछ कम हो लेकिन मानव अधिकार और स्वतंत्रता का संरक्षण सबसे ज्यादा है. आतंकी के पक्ष और विपक्ष में भी बहस के लिए तर्कवीर मिल जाएंगे.

    हमले में जो मारे गए हैं उनके परिवारों के मानवाधिकारों पर कम हो हल्ला होगा, लेकिन आतंकी को न्याय के अधिकार की पूरी स्वतंत्रता मांगने वाले खड़े हो जाएंगे. आतंकी को विधिक सहायता मिलेगी. कानून की प्रक्रिया इतनी लंबी और जटिल होती है कि, आतंकी भी उसका पूरा फायदा उठाता है. केंद्र सरकार ने जिस ढंग से मुंबई हमले के गुनहगार को भारत में कानून के सामने लाने के लिए कड़ी मेहनत की है, उससे यह भरोसा मजबूत होता है, कि पीड़ित परिवारों को जल्दी ही न्याय मिलेगा.

    अमेरिका में न्याय स्वतंत्रता और ज्यूडिशल एक्टिविज्म कम नहीं है. इसके बावजूद भारत के गुनहगार आतंकी राणा को अमेरिका की कोर्ट में गुनहगार साबित करने के बाद ही भारत सरकार और एनआईए को उसे भारत लाने में सफलता मिल पाई है.

    भारत का दृढ विश्वास रहा है कि, मुंबई पर आतंकी हमले के पीछे पाकिस्तान की साजिश रही है. आतंकी राणा भी पाकिस्तान की सेना से जुड़ा रहा है. भले ही पाकिस्तान अभी उसे अपना नागरिक  मानने से इनकार कर रहा हो लेकिन सबूत यह साबित करेंगे कि, राणा के आतंक की फैक्ट्री पाकिस्तान में ही है.

    मुंबई हमले की साजिश कितनी गहरी थी उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि,  आतंकवादी सनातन समाज की संस्कृति के प्रतीक कलावा हाथ में बांधकर आए थे. अगर कसाब जैसे आतंकवादी को जिंदा नहीं पकड़ा गया होता तो पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को भी भारतीय समाज में विभाजन के आतंकवाद से जोड़ दिया जाता.

    इसके बावजूद इस घटना से हिंदू आतंकवाद को जोड़ा गया. इसके पीछे आरएसएस की भूमिका भी कांग्रेस के बड़े नेताओं द्वारा बताई गई. भारत की जांच एजेंसियां दक्षता के साथ पाकिस्तान की साजिश बेनकाब नहीं करतीं तो फिर भारत में इतने बड़े हमले को हिंदू, मुस्लिम राजनीति पर बलि चढ़ा दिया जाता. 

    मुंबई की जब घटना हुई थी तब केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार थी. यह सरकार इसके बाद भी पांच साल रही लेकिन मुंबई हमलों के अपराधियों को अदालत में पेश नहीं कर पाई. पाकिस्तान को उसकी नापाक हरकत के लिए दंड नहीं दे पाई. इसके विपरीत हमले की घटना को ही हिंदू आतंकवाद से जोड़ने का महा अपराध ज़रूर किया गया.

    इतने लंबे इंतजार के बाद जब आज आतंकी राणा भारत के कानून में लाया गया है. जब यह आशा बंधी है, कि मुंबई हमले की साजिश का पर्दाफाश होगा. पाकिस्तान में बैठे आतंकी राणा के आकाओं को पकड़ा जाएगा. अब फिर से वही वोट बैंक की राजनीति शुरू हो गई है. मीडिया बहसों में तो विभिन्न राजनीतिक दलों के नुमाइंदे जिस तरह के तर्क रख रहे हैं, उससे तो ऐसा ही लग रहा है कि,  वर्तमान सरकार ने प्रत्यर्पण के लिए कोई प्रयास नहीं किया. यह तो पुरानी सरकार के समय प्रारंभ पहल का स्वाभाविक नतीजा है. 

    जबकि यह स्पष्ट है कि, पीएम नरेंद्र मोदी के अमेरिका प्रवास के दौरान राष्ट्रपति ट्रंप के साथ बातचीत में ही इस प्रत्यर्पण का निर्णय लिया गया था. राष्ट्रहित और राष्ट्रवाद को भी राष्ट्रीय सौहार्द के नाम पर वोट बैंक की भेंट चढ़ाना कुछ राजनीतिक दलों की आदत हो गई है. 

    जब भी कोई व्यक्ति या व्यवस्था आदत का शिकार बन जाती है, तो वह यंत्रवत व्यवहार करने लगती है. उसे पता भी नहीं चलता है कि वह वोट बैंक की राजनीति कर रहा है. इससे राष्ट्रहित को नुकसान हो रहा है. वह वही देखता है, जो वह देखना चाहता है. वोट बैंक की राजनीति राजनीतिक दलों की आंखों पर पट्टी बांध देती है. ना उन्हें कानून का राज दिखाई पड़ता है और ना ही उन्हें संविधान का मर्म समझ आता है.

    सत्ता हथियाना उनका मौलिक लालच होता है. जब किसी को लालच चढ़ता है, तो उसे भला बुरा भी दिखाई नहीं पड़ता. 

    आतंकी राणा को अदालतों से जब तक सजा नहीं मिल जाएगी, तब तक यह मामला न्यायिक प्रक्रिया में तो चर्चा में रहेगा लेकिन राजनीति के लिए भी यह खुराक काम आती रहेगी. पाकिस्तान हो, आतंकवादी हो और वह भी ऐसे समुदाय से जो भारत में वोट बैंक का बड़ा ग्राहक हो, तो फिर उस पर राजनीति को कोई भी रोक नहीं सकता.

    अभी तो बिहार में चुनाव हैं. फिलिस्तीन का समर्थन करने वाले आतंकी राणा का समर्थन करते हुए भी चुनावी लाभ लेने का प्रयास करें तो कोई भी आश्चर्य नहीं हो जाना चाहिए.

    मुंबई हमले का गुनाहगार भारत लाने से राष्ट्रवाद की शान बढ़ी है. पाकिस्तान की आतंकवादी फैक्ट्री एक्सपोज़ होने की उम्मीद जगी है. राजनीति को तो एक नया काम मिल गया है. राणा अमेरिका में था तो सब चुप थे अब उसे भारत लाया गया है तो एकदम से राजनीतिक दल तर्क-वितर्क के साथ खड़े हो गए हैं. 

    राष्ट्रीय सौहार्द के नाम पर आतंक अब भारत में नहीं चल सकता. राष्ट्रवाद का महाराणा राष्ट्र की गरिमा और मर्यादा को राजनीति से ऊपर पहुंचा पाएगा तो यह विश्व के सामने नए भारत का नया रूप होगा. राष्ट्रवाद पर भारत पीछे तो जा नहीं सकता, अब आगे ही बढ़ता जाएगा. राष्ट्रीय सौहार्द के नाम पर राष्ट्रवाद को कमजोर करने की कोशिश वोट बैंक के व्यापार का ही एक रूप है.