• India
  • Thu , Sep , 19 , 2024
  • Last Update 04:49:AM
  • 29℃ Bhopal, India

राहुल बाबा ये बातें तो ‘अक्षम्य’ हैं 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Fri , 19 Sep

सार

करीब 7-8 साल से राहुल गांधी विदेशी सरजमीं से भारत के खिलाफ विषवमन करते रहे हैं। यदि वह आरएसएस, भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ ही टिप्पणियां करें, तो उन्हें राजनीति मान कर नजरअंदाज किया जा सकता है, लेकिन वह भारत-विरोध की तथ्यहीन, अज्ञानी, अपरिपक्व टिप्पणियां करेंगे, तो बेशक उसे ‘देश-विरोध’ ही समझा जाए और सरकार गंभीरता से ग्रहण कर निर्णय ले और उचित कार्रवाई करें..!!

janmat

विस्तार

अब तो यह स्पष्ट है नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी कहीं ओर से और किसी के द्वारा प्रेरित होकर कुछ भी, कहीं भी कुछ भी कह देते हैं।यह  राहुल गांधी की पुरानी आदत है और  उनकी राजनीति का हिस्सा भी है । आशंका है कुछ विदेशी ताकतें ऐसा करने को उन्हें उकसाती रही हैं। करीब 7-8 साल से राहुल गांधी विदेशी सरजमीं से भारत के खिलाफ विषवमन करते रहे हैं। यदि वह आरएसएस, भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ ही टिप्पणियां करें, तो उन्हें राजनीति मान कर नजरअंदाज किया जा सकता है, लेकिन वह भारत-विरोध की तथ्यहीन, अज्ञानी, अपरिपक्व टिप्पणियां करेंगे, तो बेशक उसे ‘देश-विरोध’ ही समझा जाए और सरकार गंभीरता से ग्रहण कर निर्णय ले और उचित कार्रवाई करे। 

अब राहुल गांधी महज एक सांसद ही नहीं, बल्कि लोकसभा में ‘नेता प्रतिपक्ष’ हैं। वह संवैधानिक पद पर हैं और ऐसे राजनेता को ‘छाया प्रधानमंत्री’ आंका जाता है। यदि एक संवैधानिक व्यक्ति ही देश को अपमानित करेगा, चीन की तुलना में ‘बौना’ करार देगा और गलत तुलनात्मक विश्लेषण करेगा, तो यह देश, समाज और सरकार को उसे मानना चाहिए। ऐसा व्यक्ति देश, संविधान और कानून से ऊपर नहीं है। सबको मालूम है राहुल गांधी अमरीका में साक्षात्कार दे रहे है थे  और क्या गलत तथ्य पेश कर आए हैं वे नई पीढ़ी को भ्रमित कर रहे हैं? 

भारत के बारे में उनकी सोच ही गलत और पूर्वाग्रही है। वह भारत के मूल विचार को ही नहीं जानते। उनके अनुसार, भारत विचारों की विविधता वाला देश है। अमरीका की तरह राज्यों का संघ है। शायद उन्होंने कभी  संविधान के अनुच्छेद एक में जो परिभाषा दी गई है, उसे पढ़ने की ज़हमत  नहीं उठाई । जब पढेंग़े नहीं, तो समझेंगे कैसे? उसमें भारत को एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र परिभाषित किया गया है। संघीय चरित्र और ढांचा होने के कारण उस राष्ट्र में कई राज्य भी हैं, लेकिन वे निरंकुश नहीं हैं। भारत सरकार ही संवैधानिक तौर पर उन्हें संचालित करती है। अलबत्ता राज्यों को भी कुछ अधिकार दिए गए हैं। बहरहाल राहुल गांधी ने दूसरा मुद्दा रोजगार का उठाया और दावा किया कि चीन, वियतनाम आदि कुछ देशों में ‘बेरोजगारी की समस्या’ ही नहीं है, जबकि अमरीका समेत पश्चिमी देशों और भारत में बेरोजगारी एक विकट समस्या है। यहां विश्व बैंक के आंकड़े गौरतलब लगते हैं, क्योंकि 2023 में चीन की बेरोजगारी दर 4.7 प्रतिशत  थी, जबकि भारत में यही दर 4.2 प्रतिशत  थी।इस अवधि में चीन में बेरोजगारी, भारत की तुलना में, अधिक रही है।

वहां का एक ही उदाहरण पर्याप्त है कि 2 लाख नौकरियों के लिए करीब 77 लाख चीनियों ने आवेदन किया था। हम मानते हैं कि उत्पादन के क्षेत्र में चीन वैश्विक स्तर पर प्रभुत्व की स्थिति में है, लेकिन भारत भी आज ‘एप्पल’ और ‘आईफोन 16’ सरीखे अंतरराष्ट्रीय उत्पादों को बना रहा है। अब दुनिया भर में यही भारत-निर्मित उत्पाद सप्लाई किए जाएंगे और उन पर ‘मेक इन इंडिया’ अंकित होगा। सवाल है कि विदेशी मंचों पर राहुल गांधी, भारत के बारे में, गलत तथ्य पेश क्यों करते रहे हैं? यही नहीं, उन्होंने यहां तक कहा कि भारतीय राजनीतिक प्रणालियों और पार्टियों में प्रेम, सम्मान और विनम्रता का अभाव है। यदि ऐसा है, तो राहुल की पार्टी कांग्रेस भी इसी जमात में शामिल है, क्योंकि वह तो देश की सबसे पुरानी पार्टी है। 

उनका गजब बयान तो यह रहा, जब उन्होंने ने देवता और भगवान की परिभाषा ही बदल दी। परोक्ष रूप से उन्होंने सनातन धर्म की गरिमा को खंडित किया है। राहुल का आरएसएस के प्रति विद्वेष सनातन रहा है। दरअसल वह संघ को न तो जानते हैं और न ही उसकी गहनता तक कभी देख पाएंगे। राहुल समेत कांग्रेस में एक तबके का मानना है कि संघ और भाजपा पारंपरिक तौर पर महिला-विरोधी हैं। राहुल ‘दुर्गावाहिनी’ की भूमिका नहीं जानते, जो संगठन संघ के साथ काम करता रहा है। उसकी महिलाओं ने सहकारी और स्व सहायता समूहों के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित किए हैं। भाजपा में भी महिला मोर्चा है, जिसमें लाखों महिलाएं सक्रिय हैं। भाजपा का गठन 1980 में हुआ था, जिसकी अभी तक 4 महिला मुख्यमंत्री बन चुकी हैं और सबसे पुरानी पार्टी की 5 ही महिला मुख्यमंत्री बनी हैं। चलो, यह लड़ाई उनकी परंपरागत है। हमारा सरोकार भारत के संदर्भ में है। यहाँ सवाल यह है क्या विषवमन जारी रहना चाहिए?