कांग्रेस की नौका के खेवनहार गांधी परिवार के कर्णधार राहुल गांधी ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं और देशवासियों को एक बार फिर निराश किया है। कांग्रेस की रामलीला मैदान में हुई महंगाई के खिलाफ हल्ला बोल रैली में जितना उत्साह और भीड़ थी, उस पर राहुल गांधी के बचकानेपन ने पानी फेर दिया। यहाँ वे अपने भाषण की शुरुआत नफरत फैलाकर डर पैदा करने से बढ़ रहे क्रोध से करते हुए हिंदू मुस्लिम के अपने पुराने एजेंडे पर चले गए। महंगाई रैली में इसकी कोई जरूरत नहीं थी। जाने अनजाने राहुल गांधी की रैली भाजपा के एजेंडे पर पहुंच गई।
कांग्रेस छोड़ने वाले सभी नेताओं ने कमोबेश राहुल गांधी पर ही निशाना साधा है। गुलाम नबी आजाद ने तो राहुल गांधी को बचकाना बताया है। हल्ला-बोल रैली में राहुल का पूरा संबोधन ना तो तार्किक था और ना ही उसमें किसी प्रकार से नए भारत की कोई दिशा दिखाई पड़ रही थी। उन्होंने जहां से भाषण की शुरुआत की वहीं से भारत में नफरत और विभाजन की शुरुआत की है।
भारत का धर्म के आधार पर विभाजन का महापाप कांग्रेस ने ही किया है। जब तक अल्पसंख्यक राजनीति कांग्रेस को राजनीतिक लाभ देती रही तब तक उन्हें देश में किसी प्रकार की नफरत दिखाई नहीं पड़ी। जब नफरत ने आज अपना स्वरूप बदल लिया है और हिंदू हितों के लिए काम करने वाले राजनीति में सफल होते जा रहे हैं तब उन्हें नफरत और क्रोध दिखाई पड़ रहा है। ऐसी ही गलती राहुल गांधी पहले हिंदुत्व और सॉफ्ट हिंदुत्व पर कर चुके हैं। मंदिर-मंदिर माथा टेक कर जनेऊ दिखाने का असर भी हिंदू मतदाताओं पर नहीं हुआ अब फिर उन्होंने उसी तरह की गलती दोहराई है।
इस बार तो नफरत को उन्होंने पाकिस्तान और चीन से भी जोड़ दिया है। उन्होंने तो यहां तक कह दिया है कि इस नफरत और डर का फायदा पाकिस्तान और चीन को हो रहा है। इसका मतलब है कि भारत में बहुसंख्यको की सुरक्षा और हितों की रक्षा के लिए अगर काम किया जाएगा तो उससे नफरत बढ़ेगी और इसका फायदा पाकिस्तान उठाएगा। यह कौन सी सोच है? क्या इस सोच से कांग्रेस का कोई मंगल हो सकता है?
राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा का एजेंडा भी अपने भाषण की शुरुआत के साथ ही सेट कर दिया है। ऐसा लग रहा है कि इस यात्रा के नाम द्वारा हिंदू-मुस्लिम जोड़कर वही अल्पसंख्यक तुष्टिकरण अप्रोच पर आगे बढ़ने का प्रयास हो रहा है। रैली महंगाई की थी और राहुल गांधी जनता से जुड़े इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर भी कोई ठोस दिशा और दृष्टि रखने में सफल नहीं हो सके. इसके विपरीत वस्तुओं के मूल्यों की तुलनात्मक दरें रखते हुए उन्होंने आटे के रेट को भी लीटर में बता कर हंसी के पात्र बन गए। भले ही उन्होंने अपनी गलती सुधार ली हो लेकिन सोशल मीडिया पर तो लीटर वाला उनका भाषण पूरे देश में चला गया।
कांग्रेस छोड़ने वाले नेता अंदर की बातें करते हैं जो नेताओं को ही पता होती हैं लेकिन जब ऐसी ऐतिहासिक भूलें उनके द्वारा सार्वजनिक मंच से की जाती हैं तब मान लेते हैं कि राहुल गांधी का बचकानापन वास्तव में अभी कायम है।
नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार को घेरना विपक्ष की जिम्मेदारी है। कांग्रेस को यह दायित्व पूरी ताकत के साथ निभाना चाहिए लेकिन कांग्रेस मूल मुद्दों से भटक जाती है। राहुल गांधी को क्या यह नहीं बताना चाहिए था कि महंगाई को रोकने के लिए कांग्रेस की क्या नीति है? जनता ने भरोसा किया तो कांग्रेस कैसे मंहगाई कम करेगी? अभी राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। देश में सबसे महंगा डीजल और पेट्रोल राजस्थान में मिलता है।
राहुल गांधी ने महंगाई कम करने के लिए कांग्रेस द्वारा शासित राज्यों में टैक्स कम कर जनता को राहत देने का मॉडल क्यों नहीं पेश किया? केवल भाषण देने से क्या जनता मान लेगी? राजस्थान की जनता सबसे महंगा पेट्रोल खरीदने के लिए मजबूर है और हल्ला बोल रैली में राहुल गांधी और उनके मुख्यमंत्री केंद्र सरकार को दोषी बता देंगे तो इससे क्या काम चल जाएगा?
इसी प्रकार से बेरोजगारी का प्रश्न है। बेरोजगारी दर भी राजस्थान राज्य में सबसे ज्यादा है। कांग्रेस बेरोजगारी कैसे दूर करेगी? इसका ब्लूप्रिंट पब्लिक के सामने क्या कांग्रेस को नहीं रखना चाहिए? मध्यप्रदेश में तो कांग्रेस सरकार ने गजब कर दिया था। कमलनाथ ने चुनाव के समय वादा किया था सरकार बनने पर पेट्रोल डीजल पर 5% टैक्स कम किया जाएगा। सरकार बनने पर टैक्स कम करना तो दूर 5% बढ़ा और दिया गया था। इसके बाद भी कांग्रेस चाहती है कि उसकी बातों पर लोग विश्वास करें। सोशल मीडिया का जमाना है सारी सच्चाई तथ्यों और प्रमाण के साथ सामने आ जाती है।
राहुल गांधी ने अपने बचकानेपन का उदाहरण अपने भाषण में दिया है। नोटबंदी की चर्चा करते हुए राहुल गांधी ने बताया कि कैसे गरीबों की जेब से पैसा निकाला गया और उद्योगपतियों के कर्ज माफ किए गए। नोटबंदी में हर व्यक्ति को अपने पुराने नोट बदलने का मौका दिया गया था। नोट बदल कर फिर से उस व्यक्ति ने अपने पास रख लिया तो गरीबों के नोट कैसे निकाल कर किसी का भी कर्जा माफ किया जा सकता है? इतनी बचकानी बात अबोध राजनीतिक व्यक्ति ही कर सकता है।
यही नहीं राहुल गांधी ने अपने संबोधन में कहा कि वे केंद्रीय एजेंसियों ईडी, सीबीआई, आईटी से नहीं डरते। उनका यह कथन क्या भारतीय एजेंसियों और कानून की अवहेलना सा नहीं है? राहुल गांधी हों अन्य कोई भी नेता हो, क्या वह देश के कानून से ऊपर हो सकता है? उन्होंने देश के सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग और मीडिया पर भी संबोधन में जो टिप्पणियां की हैं। वह एक परिपक्व राजनेता की नहीं हो सकती हैं।
मोदी पर हमला करते हुए दो उद्योगपतियों को सब कुछ दिए जाने की उनकी बात भी एक राष्ट्रीय पार्टी के महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में संतुलित नहीं कही जा सकती। क्या उन्हें सरकार की प्रक्रिया नहीं मालूम है? सार्वजनिक उपक्रमों की संपत्तियां प्राइवेटाइज करने की नीति देश में कांग्रेस लेकर आई थी। मोदी सरकार उसी नीति पर आगे बढ़ रही है। जो भी अधिकतम बोली लगाता है, उसे कार्य दिया जाता है। यूपीए सरकार के समय जब 2-जी की नीलामी हुई थी तो क्या इन दो उद्योगपतियों में शामिल उद्योगपति को स्पेक्ट्रम नहीं मिला था? राहुल गांधी को यह बताना चाहिए कि वह सार्वजनिक संपत्तियों के निजीकरण के पक्ष में है या खिलाफ हैं?
बेरोजगारी और महंगाई देश में बड़ा मुद्दा है। सरकार के खिलाफ इसको लेकर माहौल भी है लेकिन इसके लिए कांग्रेस की विश्वसनीयता समाप्त हो चुकी है। केंद्र सरकार की जो भी नीतिगत व्यवस्थाएं हैं, उसकी अधिकांश की शुरुआत यूपीए सरकार में हुई थी। कांग्रेस कार्यकर्ताओं में सरकार के खिलाफ आक्रोश है। कार्यकर्ता लड़ना चाहता है लेकिन कांग्रेस लीडरशिप अपने भार से स्वयं ही दबी जा रही है। देश में व्याप्त समस्याओं के लिए कांग्रेस अपने को कभी भी अलग नहीं कर सकती। देश में समस्याओं के बावजूद मोदी के नेतृत्व में सरकार के प्रति विश्वास का वातावरण है। उसके लिए कांग्रेस की नकारात्मकता को भी जिम्मेदार माना जा सकता है।
हल्ला बोल रैली एक बड़ा प्रयास था लेकिन अपने बचकानेपन के कारण राहुल गांधी ने इस रैली में सेल्फ गोल कर लिया। भारत जोड़ो यात्रा में भी अगर इसी तरह का दृष्टिकोण और भाषण दिए गए तो लाभ होने की बजाय नुकसान होने की ज्यादा संभावना है।