हमारे दैनिक जीवन, परम्पराओं, रीति-रिवाजों और जीवन मूल्यों पर देवी-देवताओं का गहरा प्रभाव देखने को मिलता है, इस अवधि में इन देवी-देवताओं की आस्था का अभिकेन्द्र भगवान श्रीराम रहे हैं, तीन अक्तूबर से शारदीय नवरात्र शुरू हो गए थे,जो सम्पूर्णता की ओर है, इस दौरान देश के विभिन्न कस्बों और गांवों में रामलीला का मंचन भी हुआ, जिसमें भगवान श्रीराम की जीवन यात्रा का नाटकीय रूप से प्रस्तुतीकरण किया जाता है..!!
नवरात्रि महोत्सव शक्ति साधना के अतिरिक्त पूरे देश में रामलीला की सशक्त पहचान है। हमारे दैनिक जीवन, परम्पराओं, रीति-रिवाजों और जीवन मूल्यों पर देवी-देवताओं का गहरा प्रभाव देखने को मिलता है। इस अवधि में इन देवी-देवताओं की आस्था का अभिकेन्द्र भगवान श्रीराम रहे हैं। तीन अक्तूबर से शारदीय नवरात्र शुरू हो गए थे,जो सम्पूर्णता की ओर है ।
इस दौरान देश के विभिन्न कस्बों और गांवों में रामलीला का मंचन भी हुआ। जिसमें भगवान श्रीराम की जीवन यात्रा का नाटकीय रूप से प्रस्तुतीकरण किया जाता है।
हर जगह रामलीला में स्थानीय कलाकार पारम्परिक वेशभूषा धारण करके रामायण के पात्रों को जीवंत करते हैं। इस लोक नाट्य रूप में मंचित रामलीला में गीत, संगीत, नृत्य और संवाद के माध्यम से भगवान राम की कथा का मंचन किया जाता है। यह रामलीला लोगों को भगवान राम के आदर्श जीवन की स्मृति दिलाती है और समाज को धर्म और मर्यादा का पालन करने की प्रेरणा देती है। इससे समाज में आपसी सद्भाव और धार्मिकता को बल मिलता है। देश में रामलीला का मंचन केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह सामाजिक समरसता और एकता का भी एक महत्त्वपूर्ण प्रतीक है।
रामलीला की विशेषता यह है कि इसमें हर जाति, मत और वर्ग के लोग एक साथ मिलकर भाग लेते हैं। विभिन्न समुदायों से आने वाले लोग एक क्लब या समूह में शामिल होकर रामायण की कथा का सामूहिक मंचन करते हैं। इसमें किसी भी प्रकार का जातीय भेदभाव या सामाजिक असमानता नहीं होती, बल्कि सभी समान रूप से भगवान राम के आदर्शों और रामायण की शिक्षाओं को प्रस्तुत करने के लिए सहयोग करते हैं।
इससे सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में एक सकारात्मक प्रयास होता है। यह प्रक्रिया समाज में समानता और सहिष्णुता को प्रकट करती है, जिसमें सब लोग धर्म और संस्कृति के प्रति अपनी आस्था और समर्पण को साझा करते हैं। इससे समाज में सामाजिक एकता का संदेश प्रसारित होता है। रामलीला मंचन भारतीय संचार परम्परा की एक अनूठी एवं प्रभावशाली परम्परा है।
वैसे तो मध्यकाल से ही भारत में रामलीला का मंचन होता आ रहा है। इसके बावजूद दर्शकों में इसके प्रति आकर्षण कभी कम नहीं हुआ है। हर वर्ष रामलीला मंचन की विषयवस्तु एक ही रहती है। दर्शकों को मालूम होता है कि किस समय कौनसा दृश्य आएगा। हर साल इसका कथानक और घटनाक्रम समान रहता है, फिर भी यह हर बार दर्शकों के लिए नई प्रेरणा और अनुभव लेकर आता है। यह दर्शाता है कि किस प्रकार भारतीय संचार परम्पराएं स्थायित्व और ताजगी के साथ पुनरावृत्ति में भी प्रभावी होती हैं।
इस प्रकार रामलीला केवल धार्मिक नाटक भर नहीं है, बल्कि यह संवाद का एक जीवंत उदाहरण है, जिसमें समाज के हर वर्ग के लोग एकत्र होकर सांस्कृतिक अनुभव साझा करते हैं। खास बात यह कि रामलीला क्लब और कार्यक्रम बिना किसी सरकारी प्रश्रय के आगे बढ़ रहे हैं। समाज ही इन कार्यक्रमों के संचालन के लिए संसाधनों की व्यवस्था करता है। सामाजिक सहयोग के बलबूते ही यह आयोजन निरंतर बढ़ रहे हैं।
हालांकि पिछले कुछ समय कुछ स्थानों पर इन मंचों पर अश्लीलता को भी स्थान मिलने लगा था। मगर समाज के उचित दखल और इस मंच की मर्यादा को समझते हुए इस कुप्रथा पर विराम लगने लगा है। जो एक सुखद संकेत है। रामलीला मंचन करने वाले कलाकार और देखने के लिए आने वाले दर्शक अपने आराध्य देव के प्रति सच्ची आस्था और समर्पण भाव लेकर आते हैं। इसलिए नशाखोरी जैसी बुराइयों को समाप्त करने से लेकर सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने की दृष्टि से रामलीला का मंचन अत्यंत उपयोगी रहा है।