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हाउस होल्ड से ज्यादा सदस्य बनाने का रिकॉर्ड!

सार

एमपी बीजेपी रिकॉर्ड बनाने में सिद्धहस्त  है. लोकसभा चुनाव में सभी सीट जीतने का रिकॉर्ड बनाया. अब मध्य प्रदेश में कुल हाउसहोल्ड की संख्या से ज्यादा सदस्य बनाने का रिकॉर्ड बन गया है..!!

janmat

विस्तार

   सरकारी आकंड़ों के मुताबिक प्रदेश में लगभग एक करोड़ बारह लाख हाउसहोल्ड हैं. जबकि भाजपा की सदस्य संख्या बढ़कर डेढ़ करोड़ हो गई है. इसका आशय है कि औसतन हर घर में भाजपा का सदस्य है. संगठन का फैलाव पॉलिटिकल पार्टी के लिए खुशी की बात है. सदस्यता अभियान की उपलब्धि पर पीएम नरेंद्र मोदी ने भी एमपी यूनिट को बधाई दी है. 

   एमपी भाजपा का दावा है, कि सदस्यता अभियान का लक्ष्य हासिल कर लिया गया है. प्राथमिक सदस्यता के बाद अब सक्रिय सदस्यता का दौर प्रारंभ हो गया है. सदस्यता अभियान पूर्ण होने के बाद राष्ट्रीय स्तर से लगाकर जिलों तक पार्टी अध्यक्षों के चुनाव प्रक्रिया प्रारंभ होगी. प्राथमिक सदस्यता अभियान संपूर्ण प्रक्रिया का बीज मंत्र है. इसकी शुद्धता और पवित्रता पर ही पार्टी की बुनियाद निर्भर करती है.

   राजनीतिक दलों का सदस्यता अभियान हमेशा से ही सवालों के घेरे में रहता है. बीजेपी के सदस्यता अभियान पर भी, पार्टी के नेता ही साइबर खेल के निशान देख रहें हैं. वरिष्ठतम नेता अजय विश्नोई एवं अन्य नेताओं ने भी सवाल खड़े किये हैं. यहां तक कि पुलिस में FIR करने तक की स्थिति निर्मित हुई है.

   अजय बिश्नोई तो यहां तक कह रहे हैं,कि एक प्राइवेट एजेंसी उनके अकाउंट से भाजपा का सदस्य बनाने का ठेका मांग रही थी? अपने एक्स पोस्ट में उनका कहना है, कि जाहिर है, ऐसी और भी एजेंसियां होंगी, जिनकी सेवाएं लेकर गणेश परिक्रमा करने वाले आधारहीन नेता संगठन की नजर में बड़े बनने की कोशिश में लगे होंगे. उन्होंने सदस्यता के बहाने और भी सवाल खड़े किए हैं. जिसमें उन्होंने कहा कि

"पहले भी कुछ लोग विज्ञापन छाप कर नेताओं के सम्मान, स्वागत और घर भीतर अपनी सेवाएं देकर नेता बनते देखा है. इस बार यह नया ट्रेंड देखने में आ रहा है? पैसा खर्च करके अपने अकाउंट से बनने वाले सदस्यों की संख्या बढाकर लोग बड़ा नेता बनने में लगे हैं. इस गिरावट पर हम पुराने कार्यकर्ता अफसोस करने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते’’ 

  बिश्नोई लंबे समय से पार्टी से असंतुष्ट हैं. समय-समय पर हुए ऐसी बातें उठाते रहतें हैं. एक व्यक्ति के कहने का उतना महत्व नहीं है, लेकिन महत्व, संगठन में मुद्दों का होता है. विचार उस पर होना चाहिए कि,क्या पैसे लेकर सदस्य बनाने का साइबर खेल सदस्यता अभियान में हुआ है?

    सबसे पहला सवाल तो यही होना चाहिए, कि कोई भी किसी राजनीतिक दल का प्राथमिक सदस्य बनने के लिए लालायित क्यों होगा. इसका एक कारण तो यह हो सकता है, कि जो स्थापित नेता प्राथमिक सदस्यता दिलाने का प्रयास कर रहा है, उसके निजी संपर्क और संबंध के आधार पर व्यक्ति इसके लिए तैयार हो जाए.

    सियासत का जो माहौल है उसमें तो विधायक, सांसद, पदाधिकारी या कुछ पाने के लिए ही व्यक्ति आना चाहता है. आज सियासी जीवन सबसे कठिन माना जा सकता है. यह जरूर है कि, यह जितना कठिन है, उतना ही उसका आकर्षण भी है.

    आकर्षण के अपने कारण हैं. सियासत के कई सक्सेस मॉडल लोगों को आकर्षित करते हैं. वैसे तो ज्यादातर आकर्षण परिवार, रिश्तेदार तक ही सीमित रहते हैं, लेकिन कुछ सीमा तक बीजेपी इस मामले में थोड़ी अलग है. सदस्यता अभियान की प्रक्रिया और उसके नतीजे पर पार्टी के भीतर से सवाल खड़े करना, शक की निगाह से देखा ही जाना चाहिए?

  कांग्रेस में भी जब पार्टी चुनाव की प्रक्रिया प्रायोजित की जाती है तो सदस्यता अभियान के कागज दौड़ाए जाते हैं. राजनीतिक दलों के संगठन और चुनाव की प्रक्रिया को फुलप्रूफ तो नहीं कहा जा सकता. सब कुछ प्रायोजित ढंग से ही होता हुआ ही देखा गया है.

   चुनाव परिणाम कई बार सदस्यता अभियान की पोल खोल देते हैं. आम चुनाव या उपचुनाव की आहट के साथ ही अधिकारियों की अदला-बदली एवं जमावट चालू हो जाती है. किसी भी राजनीतिक दल की सदस्यता अगर ईमानदारी के साथ हर घर तक पहुंच गई है? तो फिर उसको किसी भी चुनावी जमावट की जरूरत ही नहीं होगी. 

    चुनाव के समय मत प्रतिशत बढ़ाने के लिए चुनाव आयोग और राजनीतिक दल मिल-जुलकर कमरतोड़ मेहनत करते हैं. तब भी मत प्रतिशत बढ़ाने में पसीने आ जाते हैं. कम से कम राजनीतिक दलों के प्राथमिक और सक्रिय सदस्यों को मतदान की प्रक्रिया में शामिल होने की नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए. कई बार तो ऐसा देखा जाता है, कि राजनीतिक दल जितनी सदस्य संख्या बता रहे हैं, राज्यों में उस स्तर तक का ही मतदान नहीं होता. उससे ही यह बात उजागर हो जाती है कि या तो सदस्य संख्या प्रायोजित है? या जो भी सदस्य बताए  जा रहे हैं वह वास्तव में नहीं है.

   कोई भी राजनीतिक दल औसतन  50% मत हासिल कर सत्ता प्राप्त करने में अब तक सफल नहीं हो पाया है. मध्य प्रदेश में भी पिछले चुनाव में बीजेपी 49% तक पहुंच गई है लेकिन अभी भी मत प्रतिशत 50% के ऊपर नहीं पहुंच सका.

    व्यक्तिवादी राजनीति, संगठन को नुकसान पहुंचाती है. अधिकांश राजनीतिक दल व्यक्तिवादी राजनीति का शिकार हैं. बीजेपी, इस मामले में थोड़ा बेहतर हो सकती है लेकिन इससे मुक्त तो नहीं. जहां तक दूसरे राष्ट्रीय दल कांग्रेस का सवाल है, वह तो व्यक्तिवादी राजनीति का ओपन मॉडल है.

    राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकत्रंत्र का अभाव दिखाई पड़ता है.असंतोष की आवाज़ सुनी नहीं जाती. मत भिन्नता को पदधारी व्यक्तियों का विरोध समझ लिया जाता है. इन्हीं परिस्थितियों के कारण भीतरघात जैसी संगठन विरोधी गतिविधियां भुगतना पड़ती है. यह सत्ता की अनिवार्य बुराई भी कहीं जा सकती है. हर पार्टी भीतरघात का शिकार होती है. चुनाव के समय जो नज़ारे सामने आते हैं, उससे तो यही लगता है, कि संगठन से ऊपर खुद का लाभ माना जाता है.

    स्वार्थ हमेशा बुरा नहीं होता, जो स्वार्थी नहीं होगा वह परमार्थी भी नहीं होगा. स्वार्थ की भावना ही परमार्थ की तरफ बढ़ सकती है. संगठन और स्वार्थ, संतुलन के साथ-साथ चल सकते हैं. संतुलन बिगड़ा कि संगठन भीतरघात का शिकार हो जाता है. संख्या से ज्यादा समर्पण का रिकॉर्ड बनाना जरूरी है. एमपी बीजेपी समर्पित संगठन है. संख्या तो घटती-बढ़ती रहेगी लेकिन समर्पण हमेशा लक्ष्य तक पहुंचाएगा.