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आरक्षण: दिन-ब-दिन उलझती गुत्थी 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Wed , 12 Sep

सार

असंवेदनशील राजनीति एवं न्यायिक हस्तक्षेप सहित कई कारणों से देश में यह गुत्थी सुलझने के बजाय और उलझती जा रही है..!!

janmat

विस्तार

आज़ादी के इतने बरस के बाद भी देश का सबसे गर्म मुद्दा आरक्षण ही है। दुर्भाग्य देश अब भी एक कुत्सित शिक्षा एवं रोजगार कोटा व्यवस्था अपनाने की दहलीज पर खड़ा है। असंवेदनशील राजनीति एवं न्यायिक हस्तक्षेप सहित कई कारणों से देश में यह गुत्थी सुलझने के बजाय और उलझती जा रही है। क्षेत्रीय राजनीतिज्ञ और कांग्रेस नेता राहुल गांधी भारत में जाति आधारित जनगणना कराए जाने पर जोर दे रहे हैं, वहीं उच्चतम न्यायालय ने आरक्षण पर हाल में अपने एक आदेश में किसी भी श्रेणी में वास्तविक रूप से पिछड़े लोगों के लिए कोटा में अलग से कोटा (सब-कोटा) तैयार करने के विचार का समर्थन किया है। 

न्यायालय ने तो राजनीतिक दलों को यह चेतावनी भी दी है कि न्यायपालिका मनमाने ढंग से सृजित अलग से कोई कोटा स्वीकार नहीं करेगी। इस तरह, यह आदेश जाति-आधारित सर्वेक्षण की बात कहता है। उच्चतम न्यायालय के आदेश का पालन तो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों  में संपन्न समूहों को उसी वृहद श्रेणियों में दूसरे लोगों के खिलाफ खड़ा कर देगा। इसका कारण यह है कि आदेश में उन जातियों के लिए अवसरों में कमी करने की बात कही गई है, जो अब तक कोटा से सबसे अधिक लाभान्वित हुए हैं। इससे अंतर-जाति टकराव शुरू होने के आसार दिखते हैं।

कांग्रेस के कुछ नेता उच्चतम न्यायालय का यह आदेश निष्प्रभावी करने के लिए संविधान में संशोधन की मांग कर रहे हैं। स्पष्ट है कि राहुल गांधी का यह दांव कांग्रेस के लिए मुसीबत बन सकता है। यह बात ध्यान देने योग्य है कि मणिपुर में जारी मौजूदा हिंसा पिछले साल न्यायालय के उस आदेश के बाद भड़की थी जिसमें कहा गया था कि हिंदू मैतेई भी अनुसूचित जाति माने जा सकते हैं। 

श्रेणी के भीतर कोटा का पुनर्वितरण करने के बजाय कुल कोटा में विस्तार करने पर राजनीतिक आम सहमति बनेगी क्योंकि कोटे की मांग केवल एक दिशा में रही है, यानी इनका दायरा बढ़ाने की मांग की जा रही है। कोई भी राजनीतिक दल कोटा लाभार्थियों के किसी उप-समूह को वंचित नहीं करना चाहता है।अब इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कोटा समर्थकों के लिए 69-75 प्रतिशत कोटे का प्रावधान हासिल करना नया लक्ष्य होगा। 

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के दौरान निजी क्षेत्र में भी कोटे का प्रावधान करने का प्रस्ताव दिया गया निजी क्षेत्र की नौकरियों में इन्हें लागू करना अब महज कुछ समय की बात रह गई है। जब सरकार या निजी क्षेत्र अनुसेवक या कुरियर की भर्ती करना चाहते हैं तो कोटा जरूरी नहीं है, लॉटरियां विभिन्न जातियों के बीच नौकरियों का वितरण कर देंगी। दूसरी बात यह है कि एससी, एसटी एवं ओबीसी श्रेणियों के छात्रों की कोचिंग एवं उनके मार्गदर्शन की जरूरत है। 

यह व्यवस्था प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर से शुरू होकर स्नातक एवं तकनीकी शिक्षा तक जारी रहनी चाहिए। भारत में अनौपचारिक ट्यूशन पढ़ाने वाले शिक्षकों की हर जगह उपस्थिति है और सैकड़ों कोचिंग कक्षाएं प्रत्येक छात्रों की मांग पूरी कर रही हैं। अभी तो कई होनहार एवं योग्य छात्रों एवं पहली बार नौकरी खोज रहे लोगों के पास लक्ष्य में सफल होने के लिए आवश्यक जानकारियां नहीं होती हैं। प्रत्येक विद्यालय, महाविद्यालय या कोचिंग संस्थानों में मार्गदर्शक तैयार करने की नीति से लाभ मिल सकता है।