देश के बारह राज्यों - दिल्ली,मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र,उत्तराखंड राजस्थान,बिहार,झारखंड, गुजरात,उड़ीसा छत्तीसगढ़ और हिमाचल में लोकसभा की 310 सीटों में से भाजपा के पास 228 सीटें हैं। यूपी की 80 लोकसभा सीटों में भाजपा के पास 62 सीट है और दिल्ली की बात करें तो यहां की सात में से सातों सीटें भाजपा के कब्जे में है ।
पूरा देश जानता है कि केंद्र में सरकार बनाने का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है। करीब 24 करोड़ की आबादी और 403 विधायक में 273 और लोकसभा की 80 में से 62 सीटें भाजपा के पास है। 11 मार्च 2022 को यूपी सहित पांच राज्यों यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मिजोरम के विधानसभा चुनाव नतीजों ने राजनीतिक गणितज्ञों के लिए लगभग साफ कर दिया है कि यदि कुछ आसमानी - सुल्तानी घटनाक्रम नहीं होता है तो केंद्र में अगली बार फिर मोदी सरकार ही आएगी। 5 में से पंजाब को छोड़ 4 प्रदेशों में भाजपा सरकार बना रही है। यह बात अंधे को भी दिखाई और बहरे को भी सुनाई पड़ रही है। उत्तर प्रदेश में भाजपा (255 )गठबंधन को 273 सीटें मिली। अखिलेश यादव (सपा 111 सीटों) अपने गठबंधन के साथ अलबत्ता सवा सौ सीटें जीत कर भाजपा से किला लड़ाते हुए दिखे। कह सकते हैं कि अखिलेश बहादुरी से लड़ते हुए हार गए। सपा ने कभी बसपा से गठबंधन कर नारा दिया था ...
मिले मुलायम काशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम...
अब भाजपा कहती है -
उड़े मुलायम- कांशीराम
रह गए बस जय श्री राम जय श्री राम...
देश के बारह राज्यों - दिल्ली,मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र,उत्तराखंड राजस्थान,बिहार,झारखंड, गुजरात,उड़ीसा छत्तीसगढ़ और हिमाचल में लोकसभा की 310 सीटों में से भाजपा के पास 228 सीटें हैं। यूपी की 80 लोकसभा सीटों में भाजपा के पास 62 सीट है और दिल्ली की बात करें तो यहां की सात में से सातों सीटें भाजपा के कब्जे में है । मध्य प्रदेश के 29 में से 28 सीटें भाजपा के खाते में हैं।नार्थ इंडिया के साथ नार्थ ईस्ट और साउथ इंडिया में भाजपा का आधार तेजी से बढ़ता दिख रहा है और उसे रोकने में कांग्रेस और वाम मोर्चा पिछड़ रहा है। आप पार्टी जरूर दम मार रही है। दिल्ली विधानसभा के बाद पंजाब में उसने करिश्मा किया है। लेकिन लोकसभा चुनाव स्थानीय और क्षेत्रीय मुद्दों से अलग हटकर राष्ट्रीय मुद्दों और राष्ट्रवाद पर चले जाते हैं यहां भाजपा अन्य दलों से काफी आगे दिखाई पड़ती है। भारतीय राजनीति और यहां के चुनावों पर अब अमेरिका इंग्लैंड से लेकर चीन में भी चर्चा होती है। हाल ही में पांच राज्यों के चुनाव परिणाम पर भी विदेशी मीडिया में अच्छी खासी खबर छपी है दुनिया में यह संदेश गया है कि भारत के वोटर भाजपा और मोदी के साथ हैं और इन चुनावों ने साफ-साफ संकेत दिए है कि लोकसभा का अगला चुनाव सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो भाजपा के खाते में जाएगा। भाजपा विरोधी पाकिस्तान चीन और काफी हद तक अमेरिका की जो वाइडन सरकार के लिए पांच राज्यों के चुनाव नतीजे सुकून देने वाले नहीं है। भारत विरोधी नहीं चाहते कि देश में एक पार्टी की बहुमत वाली सरकार हो। साथ ही व्यापक समर्थन भी उसके साथ हो। इत्तेफाक से सरकार भी आक्रामक है और उसके साथ जनता भी दिखाई पड़ रही है।
आने वाले दिनों में प्रतिपक्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए कितना दम मारेंगे यह तो भविष्य तय करेगा लेकिन आर्थिक तंगी से गुजरने वाली सपा, बसपा, कांग्रेस और अन्य दलों के लिए "आग का दरिया है और डूब कर जाने " जितना कठिन होगा। कभी उत्तर प्रदेश विधानसभा में दशकों तक शिखर पर रहकर एक छत्र राज्य करने वाली कांग्रेस सातवें पायदान पर फिसल गई है। कांग्रेस को 2003 से लेकर 2014 तक अपने दम पर केंद्र की सत्ता में रहने वाली यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी के मुकाबले कांग्रेस के उत्तराधिकारी राहुल और प्रियंका का परफॉर्मेंस बहुत ही निराश करने वाला है कभी सोनिया गांधी के बारे में 2003 में चुनाव जीतने के बाद कहां गया था खूब लड़ी मर्दानी लेकिन सोनिया जी के बाद कांग्रेस की परंपरा को उनका आज का नेतृत्व ऊपर उठाने के बजाय औंधा बड़ा दिख रहा है कोई स्वीकार करें या ना करें दिल्ली से लेकर बिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल,उड़ीसा, केरल जैसे राज्यों में कॉन्ग्रेस एक बार सत्ता से बाहर हुई तो फिर वापसी नहीं कर पाई। अभी तक का रिकॉर्ड तो यही बताता है। जो पार्टी के हाल हैं उसके हिसाब से इस रात की सुबह कब होगी अनिश्चितता के घेरे में हैं।
उप्र को ही लें तो पिछले विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी और उनकी टीम ने भारी मशक्कत के बाद सात सीटों पर सफलता हासिल की थी। पार्टी के लिए तुरुप का इक्का कहीं जाने वाली प्रियंका गांधी इस दफा सेनापति की भूमिका में मोर्चे पर थी । 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' का नारा उछालने वाली प्रियंका जी बुरी तरह फ्लॉप साबित हुई है। राहुल बाबा के बाद प्रियंका दीदी का असफल होना कांग्रेस के लिए एक बुरे सपने और भारी सदमे की तरह लग रहा है। लगभग सभी कांग्रेसी और उनके समर्थक, शुभचिंतक इस करारी शिकस्त के बाद दार्शनिक से हो गए हैं। हार के लिए कौन सी नीतियां और कारण जिम्मेदार हैं यह पता करने के बजाए कहने लग गए हैं हर रात की सुबह होती है यह चुनाव 5 साल के लिए आ रहे हैं जिंदगी भर के लिए नहीं इससे उम्मीद तो जगती है लेकिन गिरती - पड़ती डगमगाती सी दिखने वाली कांग्रेस को कौन अपने कंधों पर रख फिर से सियासत में सत्ता के शिखर तक ले जाएगा..? क्योंकि सब जानते हैं राजनीति अब सेवा के लिए नहीं सत्ता की रसमलाई चाटने के लिए की जाती है । लगातार केंद्र और राज्यों में सत्ता से बाहर रहने वाले कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता ऑफ द रिकॉर्ड बातचीत में इस मुद्दे पर हताश और निराश नजर आते हैं।
चीन में कोरोना फिर एक्टिव
एक बार फिर चीन से बुरी खबर आ रही है दुनिया को कोरोना का शिकार बनाने वाला चीन लगता है दुनिया को कोई नई मुसीबत देने वाला है कोरोना की विदाई को लेकर अभी लोगों ने ठीक से सांस भी नहीं रही थी कि चीन में फिर कोरोना एक्टिव हो गया है। साढ़े तीन हजार से ऊपर कोरोना के केस आने लगे हैं। यह कैसा और किस वेरिएंट का पता नही। वहां स्कूल बंद कर दिए गए हैं भारत में 27 मार्च से इंटरनेशनल फ्लाइट शुरू की जा रही है चिंता यह है की इन अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के साथ चीन से कोरोना का नया वेरिएंट फिर भारत में ना जाए इसलिए सरकार के साथ समाज को भी सतर्क रहने की जरूरत है हम पहले भी कोरोना से लड़े थे और जीते थे अबकी बार आया तो फिर जीतेंगे जरूरत है सजग सतर्क और जागृत रहने की...
फायर ब्रांड उमा..
भारतीय राजनीति में फायर ब्रांड लीडर के नाम से धमक पैदा करने वाली पूर्व मुख्यमंत्री साध्वी उमाश्री भारती इन दिनों शराबबंदी की मांग को लेकर स्टोन ब्रांड लीडर बन रही है। संडे को भोपाल में उन्होंने शराबबंदी को लेकर एक शराब दुकान पर विरोध स्वरूप अंदर घुस कर पत्थर मारा। यह उनकी आक्रामक शैली की निशानी तो है लेकिन आक्रमक बयानों से आग उगलने वाली भाजपा की यह साध्वी यदि शराब की दुकानों पर पत्थर मारने लगी है तो इसका मतलब हालत चिंताजनक है । जनता और नेतृत्व का ध्यानआकृष्ट करने के लिए वे पथराव करने से परहेज नहीं कर रही है। उनके तीखे तेवर से भाजपा ने यह कहते हुए किनारा कर लिया है कि शराबबंदी के उनके आंदोलन से पार्टी का कोई लेनादेना नही है । राम मंदिर आंदोलन की अग्रणी नेताओं मे रही उमाश्री भारती अटल जी और आडवाणी की भी बहुत लाडली रही है। देखते अब आगे क्या होता है...इतना तो तय है कि उमाजी में लंबे समय तक उपेक्षा को सहने का न तो धीरज है और न घाघ नेताओं की तरह सयानापन...