कांग्रेस का I-N-D-I-A मणिपुर पर इतना आहत है कि संसद में चर्चा करने को भी तैयार नहीं हो रहा है. मणिपुर में जो चिंताजनक घटनाएं हो रही हैं, उनकी जड़ें दशकों पहले बोये गए बीजों से न केवल निकली हैं बल्कि उनको कांग्रेस के I-N-D-I-A में शामिल दलों की सरकारों ने ही खाद पानी दिया है.
कश्मीर में धारा 370 ने अलगाववाद को बढ़ाया. हिंदुओं का नरसंहार हुआ. जब धारा 370 हटी तो खून की नदियां बहाने का दंभ भरने वाले आज I-N-D-I-A गठबंधन के साझीदार बने बैठे हैं. मणिपुर भी अलगाववाद का ही शिकार है. विदेशों से घुसपैठ और आदिवासियों के बीच विभाजन और अलगाव का सियासी लगाव आज हाहाकारी स्वरूप में मणिपुर की अस्मिता को लीलने लगा है. इसका नंगा नाच देश देख रहा है.
जो कांग्रेस अलगाववाद को सियासी लाभ के लिए कायम रखने में जुटी हुई थी. उसी कांग्रेस को अलगाववाद की चिंगारी में ही अपने दो महान नेताओं इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की शहादत देनी पड़ी है. इतनी बड़ी कुर्बानियों के बाद भी सियासी अलगाववाद का चूल्हा पूरी ताकत से धधक रहा है. कांग्रेस उसमें मिट्टी का तेल डालने से पीछे नहीं हट रही है.
मणिपुर की घटनाएं बेहद शर्मनाक हैं. संसद में उन पर चर्चा होनी चाहिए. इस पर चर्चा तो नहीं हो रही है सदन ही ठप्प पड़ा है. कांग्रेस और उनके गठबंधन सहयोगियों का आरोप है कि प्रधानमंत्री को सदन के अंदर बयान देना चाहिए. देश को इस पर तो खुश होना चाहिए कि कम से कम कांग्रेस और विपक्षी गठबंधन लोकतंत्र के मंदिर संसद की पवित्रता के प्रति जागृत हो गया है. देश का नया संसद भवन जब प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटित किया जा रहा था तब इन्होंने लोकतंत्र के इस प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार किया था.
हर सवाल पर प्रधानमंत्री का उत्तर क्यों होना चाहिए? सरकार की सामूहिक जिम्मेदारी में हर सवाल का उत्तर देना सरकार का संवैधानिक दायित्व है. कांग्रेस एक और सवाल प्रधानमंत्री पर उठा रही है कि मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र करने की घटना पर अपनी कठोर प्रतिक्रिया में प्रधानमंत्री ने बंगाल छत्तीसगढ़ और राजस्थान में महिला विरोधी अपराधों का भी उल्लेख किया था.
जब भी कहीं घटना होती है तब वह घटना सबसे महत्वपूर्ण होती है लेकिन महिला सुरक्षा के मुद्दे पर जब बात होगी तब उसमें राज्यवार से ज्यादा महिला सुरक्षा का मुद्दा सामने होना चाहिए. किसी भी राज्य की सरकार महिला अपराध को प्रोत्साहित नहीं करना चाहती तो फिर चर्चा में समाधान के लिए किसी नीति के निर्माण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सभी राज्यों पर बात करना कैसे गलत हो जाएगा?
देश ने कश्मीर फाइल्स फिल्म में हिंदुओं के साथ किए गए अन्याय अत्याचार के दृश्य देखे हैं. फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ में भी आतंक और महिलाओं के शोषण से जुड़ा हुआ मामला दिखाया गया है. पंजाब में आतंकवाद और अलगाववाद की चिंगारी जब भड़की थी तब भिंडरावाले को किसने सहयोग और संरक्षण दिया था? अब तो इस बारे में कई पुस्तकें आ चुकी हैं, जिसमें कांग्रेस के नेताओं की भूमिका उल्लेखित की गई है.
देश के इतिहास पर नजर डाली जाए तो अलगाववाद की चिंगारी को हमेशा सियासत ने हवा दी है. चुनाव में बहुमत के लिए समर्थकों की संख्या बढ़ाने में चाहे विदेशी घुसपैठ को प्रोत्साहित करना हो, चाहे समाज में विभिन्न वर्गों के बीच खाई पैदा करना हो, चाहे किसी भी समुदाय में विभाजन के लिए कुछ ऐसे सामाजिक और धार्मिक नेताओं को खड़ा करना पड़े जो सियासी कामयाबी दिलाने का माद्दा रखते हों और यही सब होता रहा है.
कांग्रेस-कम्युनिस्ट और बीजेपी विरोधी विपक्षी दलों ने यह सपने में भी नहीं सोचा था कि कभी भी इस देश में ऐसा दौर आएगा जब स्पष्ट बहुमत के साथ बीजेपी के नेतृत्व में देश में सरकार बनेगी. उत्तर भारत में तो बीजेपी को हिंदुत्व के कारण सफलता मिलना माना जाता है लेकिन पूर्वोत्तर राज्यों में जहां अधिकांश आबादी ईसाइयों और मुसलमानों की है वहां भी भाजपा की सरकार बनने से कांग्रेस और उनके गठबंधन के दलों की नींद हराम है.
अगले लोकसभा चुनाव में विपक्षी गठबंधन का एकमात्र उद्देश्य प्रधानमंत्री मोदी को हटाना है. इसके लिए वह नैरेटिव गढ़ने की कोशिश की रही है जो बीजेपी की नकारात्मक छवि बना सकता है. इसमें भारत के विपक्षी दल ही नहीं विश्व के भी कई संगठन हाथ मिलाए दिखाई पड़ते हैं. सियासत के लिए भारत के भविष्य को दांव पर लगाना राजनीतिक दलों को बहुत महंगा पड़ेगा.
मणिपुर की समस्या का इतिहास
अंग्रेजों ने मणिपुर की प्राकृतिक संपदा के दोहन के लिए इनर परमिट और आउटर परमिट की व्यवस्था लागू कर स्थानीय जनजातियों को उससे अलग थलग किया. फिर वहां चाय की खेती से लाभ कमाया फिर ईसाई मिशनरियों को प्रोत्साहित किया गया. अंग्रेजों ने ईसाई परिवर्तित हुए लोगों को एसटी का दर्जा दिया तथा उन्हें कई तरह की सरकारी सुविधाएं दीं. धर्म परिवर्तित करने वाले लोगों को कुकी जनजाति और वैष्णव लोगों को मैतैयी समाज के रूप में पहचाना जाने लगा. मणिपुर राज्य के 90% भूभाग पर कुकी और नगा समुदाय का कब्जा हो गया. मैतैयी समाज 10% घाटी के क्षेत्र में ही सीमित रह गया.
आजादी के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने मैतैयी समाज को एसटी का दर्जा देने की मांग ठुकरा दी. 1960 में नेहरू सरकार द्वारा लैंड रिफॉर्म एक्ट लाया गया जिसमें 90% भूभाग वाले कुकी और नगा ईसाईयों को एसटी में डालते हुए यह प्रावधान किया गया कि कुकी और नगा राज्य में कहीं भी जमीन खरीद सकते हैं. वहीं 10% इलाके में रहने वाले मैतैयी हिंदुओं को यह सब अधिकार नहीं रहेगा. यहीं से कुकी और मैतैयी समुदाय के बीच संघर्ष की शुरुआत हुई. मणिपुर में म्यांमार से विदेशी घुसपैठ भी सियासी लाभ के लिए स्वीकार की गई. नार्थ ईस्ट में अधिकांश समय तक कांग्रेस और कम्युनिस्ट की ही सरकार चलती रही.
म्यांमार के चिन जनजातियों ने भी कुकी और नागा के साथ अपना सामंजस्य बना लिया. पहाड़ी और जंगली इलाकों में इन जनजातियों ने अफीम की खेती कर आर्थिक मजबूती प्राप्त की और हथियारों से लैस हो गए. अब कुकी और नगा जनजाति घाटी में भूमि खरीद कर मैतैयी समाज को लुप्त करने के कुचक्र रचने लगे हैं. मणिपुर में मैतैयी समाज लगातार अपने अस्तित्व का संघर्ष करता रहा. हाईकोर्ट ने जब उन्हें एसटी का दर्जा देने के आदेश दिए तब कुकी नगा और चिन जनजातियों ने सशस्त्र संघर्ष चालू कर दिया.
अलगाववाद और जनजातियों के बीच में कानूनी प्रावधान के कारण अगर विभाजन का दांव कांग्रेस द्वारा नहीं खेला गया होता और आजादी के समय ही इस समस्या का बुनियादी समाधान कर दिया गया होता तो आज मणिपुर के ये हालात नहीं होते. सियासत अभी भी अलगाववाद में अपना हित तलाशती हुई दिखाई पड़ती है. राजनीतिक दलों द्वारा समाज में सुविधाएं बांटकर जन-धन की बर्बादी तो की ही जा रही है साथ ही समाज को भी बांटा जा रहा है.
मणिपुर के ये हालात कोई एक दिन में नहीं हुए हैं. कश्मीर में जो कुछ हुआ है वह सब सियासी स्वार्थों के लिए की गई रणनीतिक भूलों का ही नतीजा है. भारत का हर राज्य भाषा, क्षेत्रवाद, जातिवाद, शासन का सुविधावाद और न मालूम किन-किन खंडों में विभाजित किया जा रहा है. भारत को अखंड रखने का धर्म युद्ध चुनौतियों भरा है. सत्ता लोलुप राजनीति सत्ता की चाह में देश को जलाने से भी गुरेज नहीं करेगी. अब तो सियासी चेहरे और मंसूबे चुटकुलों के विषय बन गए हैं. भारत के प्रत्येक नागरिक को भारतीयता को बचाने का दायित्व निभाना है.