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संघ की विचारधारा को गांव गांव तक पहुंचाएंगे शताब्दी विस्तारक

सार

संघ का 97 वर्षों का इतिहास गवाह है कि संघ ने भारत को परम वैभव संपन्न राष्ट्र बनाने की दिशा में अभी तक जो भी कदम आगे बढ़ाए हैं वे मंजिल तक पहुंचने में अवश्य‌ ही ‌‌‌सफल हुए हैं..!

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विस्तार

-कृष्णमोहन झा

मां भारती के अनन्य उपासक और महान देशभक्त डा केशव बलीराम हेडगेवार ने 1925 में विजयादशमी की पावन तिथि के शुभ अवसर पर मुट्ठी भर नवयुवकों के साथ मिलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नामक जिस संगठन की नींव रखी थी  वह इन 97 वर्षों में विशाल वटवृक्ष का रूप ले चुका है जिसकी वर्तमान में देश के विभिन्न भागों में 57000 से अधिक शाखाएं संचालित हो रही हैं।

संघ ने इस संख्या को शताब्दी वर्ष 2025 तक एक लाख तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। संघ ने इसके लिए व्यापक पैमाने पर तैयारियां भी प्रारंभ कर दी हैं।इस महान लक्ष्य को अर्जित करने के लिए संघ एक कार्ययोजना के अनुरूप तेजी से आगे बढ़ रहा है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि मात्र तीन वर्षों में संघ की शाखाओं की संख्या 57000 से बढ़ाकर एक लाख करने का संकल्प पूरा करना मुश्किल प्रतीत होता है परंतु जो लोग संघ की अद्भुत संगठन क्षमता और कार्यपद्धति से भलीभांति परिचित हैं वे यह मानते हैं कि तीन वर्ष की समय सीमा के अंदर इस महान लक्ष्य को अर्जित कर लेने के संघ के आत्मविश्वास पर संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है।

संघ का 97 वर्षों का इतिहास गवाह है कि संघ ने भारत को परम वैभव संपन्न राष्ट्र बनाने की दिशा में अभी तक जो भी कदम आगे बढ़ाए हैं  वे मंजिल तक पहुंचने में अवश्य‌ ही ‌‌‌सफल हुए हैं। संघ ने अपने 97 वर्षों के सफर में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। संघ ने जिन उद्देश्यों के लिए खुद को समर्पित किया है उनको पूरा करने की राह में आने वाले व्यवधान कभी उसे विचलित नहीं कर सके।

संघ के विरोधियों के द्वारा की  जाने वाली आलोचनाओं की उसने परवाह नहीं की ,न ही उनका प्रत्युत्तर देने की आवश्यकता महसूस की। डा केशव बलीराम हेडगेवार ने 97 वर्ष पूर्व  हिंदू समाज को संगठित करने के जिस दृढ़ संकल्प के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की  नींव रखी थी वही संकल्प आज भी संघ की ताकत बना हुआ है और उसी दृढ़ संकल्प ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को विश्व का सबसे बड़ा संगठन कहलाने का गौरव प्रदान किया है जिसके दुनिया भर में एक करोड़ से अधिक कार्यकर्ता हैं।

दरअसल संघ के शताब्दी आयोजनों को गरिमा मय भव्यता के साथ ऐतिहासिक स्वरूप प्रदान करने के उद्देश्य से 2021 में ही बड़े पैमाने पर इसकी तैयारियां प्रारंभ हो जानी चाहिए थीं परन्तु कोरोना संकट के कारण ये तैयारियां प्रारंभ करने में विलम्ब हुआ परंतु संघ अब तेज गति से इस दिशा में आगे बढ़ रहा है।

राजस्थान के झुंझुनूं नगर में विगत सप्ताह संघ के प्रांत प्रचारको की तीन दिवसीय अखिल भारतीय बैठक के दूसरे दिन  संगठन के शताब्दी वर्ष 2024-25 तक देश में संघ की शाखाओं की संख्या वर्तमान 55000 हजार से बढ़ाकर एक लाख करने के लिए कार्ययोजना पर  गंभीर चिंतन किया गया।

इस तीन दिवसीय बैठक में सभी प्रांत प्रचारक,सह प्रांत प्रचारक, क्षेत्र प्रचारक,सह क्षेत्र प्रचारक उपस्थित थे। बैठक में सरसंघचालक मोहन भागवत, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले और सभी सह सरकार्यवाह सहित संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के सभी सदस्यों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। कोरोना काल के पश्चात संघ के प्रांत प्रचारकों की यह प्रथम प्रत्यक्ष बैठक थी इसलिए इसे विशेष महत्वपूर्ण माना जा रहा था।

बैठक में मौजूद प्रांत प्रचारकों ने अपने अपने प्रांतों में चल रही संघ की गतिविधियों की विस्तृत जानकारी अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल  को दी। इस बैठक में संगठनात्मक कार्यों के साथ ही संघ की गतिविधियों और भावी योजनाओं पर गहन विचार विमर्श किया गया। 2024 में संघ का शताब्दी वर्ष प्रारंभ होने के पूर्व अर्थात् अगले दो वर्षों में संघ का देश के कोने-कोने तक प्रचार प्रसार करने के उद्देश्य से तैयार की गई व्यापक विस्तार योजना  पर बैठक के दूसरे दिन दो सत्रों में चर्चा की गई ।

संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर तीन दिवसीय बैठक के समापन के पश्चात पत्रकारों को दी। उन्होंने कहा कि संघ ने शताब्दी वर्ष के पूर्व  संघ की शाखाओं की संख्या एक लाख तक पहुंचाने का जो महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है उसका उद्देश्य संघ के कार्यों की जानकारी समाज के सभी वर्गों तक पहुंचाना है इसलिए संघ हर प्रांत,हर जिला और हर मंडल तक अपनी शाखाओं का विस्तार करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।

गांव गांव तक संघ के कार्यों की जानकारी पहुंचाने के उद्देश्य से 10-12 गांवों को मिला कर एक मंडल बनाया जा रहा है। प्रांत प्रचारकों से अधिक से अधिक संख्या में शताब्दी विस्तारक निकालने के अभियान में जुटने के लिए कहां गया है। दरअसल संघ की देश भर में ऐसे दस हजार शताब्दी विस्तारक तैयार करने की मंशा है जिन्हें संघ की नीतियों, कार्यक्रमों और योजनाओं की अच्छी जानकारी हो।

ये शताब्दी विस्तारक अगले दो वर्षों में संघ की शाखाओं की वर्तमान संख्या 57000से बढ़  कर एक लाख तक पहुंचाने में सक्रिय भूमिका निभाएंगे।  संघ ने अपने स्वयंसेवकों के साथ ही समाज में संघ की गतिविधियों, कार्यक्रमों और नीतियों से परिचित लोगों से संघ के लिए दो वर्ष देने का अनुरोध किया है। इन्हें शताब्दी विस्तारक नाम दिया जाएगा।

शताब्दी विस्तारकों का चयन शिक्षा पूर्ण कर चुके उन  युवकों अथवा सेवानिवृत्त व्यक्तियों के बीच से किया जाएगा जो संघ की विचारधारा के समर्थक हैं। संघ इस विस्तार योजना में उन युवाओं को सम्मिलित नहीं करेगा जो अभी किसी शिक्षा संस्थान में  अध्ययनरत हैं। प्रांत प्रचारकों से यह भी कहा गया है कि शताब्दी वर्ष के पूर्व के इन दो वर्षों में अधिक से अधिक पूर्णकालिक कार्यकर्ता निकाले जाएं जो अगले दो वर्षों तक पूरी तरह संघ के प्रचार प्रसार और मंडल स्तर तक उसका विस्तार करने में सक्रिय भूमिका निभाएं।

शताब्दी विस्तारकों के लिए यद्यपि शिक्षा वर्ग में प्रशिक्षण प्राप्त करने की अनिवार्यता  नहीं होगी परन्तु उन्हें गांव गांव में संघ का विस्तार करने के लिए अलग से प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा। ये शताब्दी विस्तारक दो वर्ष पश्चात वापस आ जायेंगे परंतु अगर वे आगे भी संघ को समय देने की इच्छा व्यक्त करेंगे तो 2025 तक कार्य करते रहने की अनुमति होगी।

उल्लेखनीय है कि इसी वर्ष मार्च में वाराणसी में संपन्न काशी इकाई के प्रचारकों की बैठक को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख ने मोहन भागवत ने उक्त प्रांत के प्रचारकों को 6 हजार शताब्दी विस्तारक तैयार करने का लक्ष्य दिया था और इन विस्तारको  को विकासखंड स्तर पर शताब्दी वर्ष की कार्ययोजना के क्रियान्वयन का दायित्व सौंपा था।

इन विस्तारकों को यह जिम्मेदारी भी सौंपी गई थी कि संघ की विचारधारा  और उद्देश्यों से प्रत्येक ग्रामीण को अवगत कराएं। संघ प्रमुख ने इस बैठक में संगठन के प्रचारकों की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा था कि जिन प्रचारकों ने संघ के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है वे संघ का दर्पण हैं। संघ को अपने जीवन में उतारने से प्रचारकों को जीवन भर कार्य करने की ऊर्जा मिलती है। प्रचारक समाज को प्रेरणा देते हैं। समाज को उनसे सीखने का अवसर मिलता है इसलिए संघ में प्रचारकों की भूमिका महत्वपूर्ण है। (लेखक IFWJ के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष है)