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गारंटी का साइड इफेक्ट

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 16 Oct

सार

जब गारंटियां झूठी निकलती हैं और ठगे जाने का एहसास होता है तो पब्लिक किक आउट भी कर देती है..!!

janmat

विस्तार

हर अति के साइड इफेक्ट होते हैं। अब वोट देने और लेने वाली गारंटियों के साइड इफेक्ट भी समाज में होते नज़र आ रहे  हैं। शुरू-शुरू में लोग इन गारंटियों की तरफ आकर्षित होते हैं और वोट दे आते हैं। फिर जब गारंटियां झूठी निकलती हैं और ठगे जाने का एहसास होता है तो पब्लिक किक आउट भी कर देती है।

मतलब साइड इफेक्ट यहां भी होते हैं। अभी एक राज्य के चुनाव में भी यही हुआ। गारंटियां एक पार्टी ने एक राज्य में सत्ता में आने के लिए दी थी और जब दूसरे राज्य में हुए चुनाव में उसी पार्टी ने वही गारंटियां उस राज्य में भी देने का खेल खेला तो सचमुच में ‘खेला’ हो गया। लोग पूछने लगे कि पहले राज्य में तो आपकी गारंटियां छलावा साबित हुई हैं और अब हमें छलने आ रहे हो…! ऐसा यहां नहीं चलेगा। 

यह साइड इफेक्ट था और इसका खामियाजा एग्जिट पोल में जीत कर जश्न मनाने वाली पार्टी जनता के वोट की चोट से चित हो गई। यानी दूल्हा सजा धजा खड़ा रह गया और घोड़ी उसे लंगड़ी मारकर भाग निकली। जिस पार्टी ने ढोल नगाड़े और पटाखे मंगा कर रखे थे, उन्हें दूसरी पार्टी ही बजा गई। यह राजनीतिक साइड इफेक्ट था। 

चुनावी मौसम आते ही सियासतदानों का ‘गारंटी कार्ड’ भी उछल-कूद करने लगता है। हर चुनावी मंच पर नेता जी ऐसे वादे ठोंकते हैं, जैसे देश को स्वर्ग बनाने की गारंटी उनके पास हो। अरे भाई, इतनी गारंटी अगर सच में पूरी हो जाए, तो हम चांद पर खड़े होकर भी आलू और प्याज की खेती कर रहे होते।

सच तो यह है कि चुनावी गारंटी सिर्फ वादों की फुल सर्विस वाली होती है, नतीजे की कोई गारंटी नहीं! अब देखिए, हर चुनाव में नेता से लेकर छुटभैये तक गारंटी देते हैं- बिजली, पानी, सडक़, रोजगार, सब कुछ मिलेगा। हर महिला के खाते में हर महीने 1500 आएंगे। 

हर साल एक लाख बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा। बिजली-पानी फ्री मिलेगा और गोबर तक खरीदा जाएगा। जनता भी खुश- ‘वाह! इस बार तो हमारे दिन बदल जाएंगे।’ पर चुनावी गारंटी भी उसी फ्रिज की तरह है जो वादे तो ठंडे-ठंडे करता है, लेकिन सत्ता की गर्मी मिलते ही ठप हो जाता है। जब जनता गारंटी मांगने जाती है, तो नेताओं के सुर बदल जाते हैं। 

एक नेता पब्लिक को समझाता है, ‘अरे भाई, यह गारंटी अगले चुनाव तक वैलिड है, अभी थोड़ी लागू होगी!’ जबकि दूसरा नेता समझाते हुए यह दलील देता है, ‘भैया, यह गारंटी योजना का हिस्सा थी, पर बजट ने धोखा दे दिया। अगली बार पक्का!’ पब्लिक जब गुस्से से लाल-पीली होने लगती है तो  दल का सबसे बड़ा नेता टोपी घुमाते हुए कहता है, ‘अरे, हमने कोशिश तो की थी, लेकिन विपक्ष ने बीच में करंट मार दिया। अब अगले चुनाव में मिलते हैं!’ 

चुनावी गारंटी उन जूतों की तरह होती है जिन पर लाइफ टाइम गारंटी लिखी होती है, लेकिन चलते-चलते सोल घिस जाता है और नेताजी अगले चुनाव में नए जूते बेचने आ जाते हैं। और कई बार गुस्साई भीड़ जूतम पैजार भी कर देती है। 

आए दिन अखबारों में खबर छपती है कि फ़लाँ नेताजी की जनसभा में जूते चल गए और जूते मंच तक पहुंच गए। जूतों की बारिश से नेताजी को सिक्योरिटी कर्मियों ने बड़ी मुश्किल से बचाया। यही गारंटी का सबसे बड़ा साइड इफेक्ट होता है।