• India
  • Sat , Feb , 22 , 2025
  • Last Update 10:30:AM
  • 29℃ Bhopal, India

पूँजीगत व्यय को रोकिए, ज़्यादा है 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Fri , 22 Feb

सार

संसद में प्रस्तुत बजट में जो पूंजीगत व्यय बताया गया है उसका काफी हिस्सा बिहार को आवंटित किया गया है क्योंकि वहां विधानसभा चुनाव नजदीक हैं..!! 

janmat

विस्तार

देश में सबको नए आयकर नियम का इंतज़ार है, वैसे पिछले तीन-चार साल में सार्वजनिक व्यय पर बहुत ज्यादा जोर देने के बाद सरकार ने खपत और वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए आय कर कटौती की मदद लेने का निश्चय किया है। पूंजीगत व्यय अब भी ज्यादा है मगर उसमें ठहराव आया है। 

संसद में प्रस्तुत बजट में जो पूंजीगत व्यय बताया गया है उसका काफी हिस्सा बिहार को आवंटित किया गया है क्योंकि वहां विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। बाकी खर्च पहले से चल रही परियोजनाएं पूरी करने के लिए होगा। अब सरकार को उम्मीद है कि मध्य वर्ग के लिए आयकर में अच्छी-खासी कमी करने से खपत बढ़ेगी और आखिरकार निजी क्षेत्र का निवेश बढ़ेगा।

वैसे सरकार ने करीब 1 लाख करोड़ रुपये की आयकर कटौती का प्रस्ताव रखा है, जो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 0.3 प्रतिशत के बराबर है, लेकिन इसका फायदा 4.7 करोड़ शहरी करदाताओं को ही मिलेगा। अगर मान लें कि इस कटौती के कारण बचे हर 1 रुपये में से 80 पैसे खर्च किए जाते हैं तो भी प्रत्यक्ष सरकारी व्यय के मुकाबले इसका असर कम रहेगा। अगर इसका कुछ हिस्सा ऐसे खाद्य पदार्थों पर खर्च होता है, जिनकी आपूर्ति कम है तो क्या इससे महंगाई भी बढ़ेगी और मौद्रिक नीति ज्यादा जटिल हो जाएगी?

नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनैंस ऐंड पॉलिसी में हुए शोध से पता चला कि कंपनियों द्वारा निवेश मुख्य रूप से क्षमता के इस्तेमाल, प्रतिस्पर्द्धात्मकता और ऋण की उपलब्धता पर निर्भर करता है। पूंजीगत व्यय का ज्यादा असर कंपनियों के अलावा हो रहे निवेश – खास तौर पर आवास तथा रिटेल में हो रहे निवेश – पर पड़ता है। इसलिए अगर कंपनियों का निवेश बढ़ाना ही मकसद है तो पूंजीगत व्यय पर निर्भर रहने के बजाय कर कटौती की मदद से खपत बढ़ाने का तरीका आजमाया जा सकता है क्योंकि इससे क्षमता का अधिक इस्तेमाल होगा।

2023-24 में कंपनियों को रिकॉर्ड मुनाफा हुआ और निफ्टी 500 कंपनियों का जीडीपी-मुनाफा अनुपात बढ़कर 4.6 प्रतिशत हो गया, जो 2007-08 के बाद से सबसे अधिक रहा। फिर भी निजी निवेश नहीं बढ़ा है। कंपनियों को यह रिकॉर्ड मुनाफा भी बिक्री बढ़ाकर क्षमता का अधिक इस्तेमाल करने से नहीं हुआ है बल्कि श्रम पर आ रहा खर्च कम करने से हुआ है। कॉरपोरेट क्षेत्र की नॉमिनल बिक्री केवल 6 प्रतिशत बढ़ी है। विडंबना यह है कि 2019 में कॉरपोरेट कर घटाने से सरकार को पिछले पांच साल में 7-8 लाख करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। कंपनियों ने कर कटौती से हुई बचत का बहुत कम हिस्सा निवेश किया। अगर सरकार ने कॉरपोरेट कर कटौती के बजाय 2019 में मध्य वर्ग के लिए आयकर घटा दिया होता तो अर्थव्यवस्था को ज्यादा फायदा मिला होता।

आर्थिक समीक्षा में भी निजी निवेश में कमी के लिए अत्यधिक विनियमन वाली अर्थव्यवस्था को जिम्मेदार ठहराया गया है। उसमें भी भरोसे पर आधारित नियामक प्रणाली की वकालत की गई है यानी जब तक किसी की गलती साबित नहीं होती है तब तक वह निर्दोष ही रहेगा इसका उलटा नहीं। बजट में विनियमन की योजना का मसौदा तैयार करने के लिए एक और समिति बनाने का प्रस्ताव है। 

ध्यान रहे कि नियामकीय सफाई तो जरूरी है मगर इसके तत्काल परिणाम नहीं आएंगे। गंभीरता दिखाने के लिए बजट में कुछ ऐसे उपाय घोषित किए जा सकते थे, जिनसे नियमन में फौरन कमी आए। शोध एवं विकास में निजी क्षेत्र की भागीदारी कम रहने के कारण समझने पर जोर दिया जाना स्वागत योग्य कदम है। शोध एवं विकास पर खर्च को जीडीपी के प्रतिशत के रूप में देखें तो भारत दुनिया के अग्रणी देशों में शामिल है मगर निजी क्षेत्र के लिए यही आंकड़ा देखें तो भारत बहुत पीछे है। 

शोध एवं विकास पर होने वाला खर्च सार्वजनिक संस्थानों के जरिये होता है, जो आम तौर पर अलग-थलग रहते हैं और विश्वविद्यालयों तथा निजी क्षेत्र के साथ न के बराबर संवाद करते हैं। उस खर्च का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाए जाने की भी जरूरत है। शोध एवं विकास कोष बनाने की सरकार की कोशिश संवाद बढ़ाने के लिए ही है।

मध्य वर्ग को कर में राहत स्वागतयोग्य है और जनता इसे पसंद भी बहुत करेगी।