यूनियन कार्बाइड का ज़हरीला कचरा जहरीली गैस की याद दिला रहा है. चालीस साल बाद कचरे के निष्पादन के विरोध में मची भगदड़ गैस त्रासदी की तारीख की यादें ताजा कर देती है. चारों ओर अफवाहें थी, हफ्तों अफवाहों पर भोपाल भागने लगता था. अब वैसा ही माहौल पीथमपुर में बना हुआ है. सरकार के प्रयास लोगों में भरोसा पैदा नहीं कर पा रहे हैं कि, कचरे के निष्पादन से जीवन में कोई नुकसान नहीं होगा..!!
सरकार कह रही है कि इतने वर्षों में कचरे का जहरीलापन समाप्त हो गया है. सरकार की कथनी और करनी में अंतर दिखाई पड़ रहा है. सवाल यही उठ रहे हैं कि, जब कचरा ज़हरीला नहीं है, तो उसको इतनी सतर्कता, देखरेख, वैज्ञानिकता और सभी तरह के सुरक्षा उपायों के साथ भोपाल से पीथमपुर क्यों ले जाया गया. लोग यह भी सवाल कर रहे हैं कि, अगर कचरा सामान्य है तो फिर भोपाल में ही इसको नष्ट क्यों नहीं किया गया. पीथमपुर ले जाने के पीछे तो कारण यह बताया जा रहा है कि, जहरीले कचरे को नष्ट करने के लिए संयंत्र वही उपलब्ध है.
राज्य के मुख्यमंत्री ने कह दिया है कि, जनता को भरोसे में लिया जाएगा. सरकार उच्च न्यायालय के सामने सारे तथ्य रखेगी उसके बाद ही कचरे के निष्पादन पर निर्णय किया जाएगा. जनता को भरोसे में लेकर कचरा मूवमेंट के पहले ही सभी प्रयास कर लिए गए होते तो, शायद हालत कुछ और होते. समाचार पत्रों और विभिन्न माध्यमों से कचरा निष्पादन के बारे में जो तथ्य पीथमपुर में विरोध के बाद प्रचारित किए गए हैं, क्या उन्हें ट्रकों के मूवमेंट के पहले नहीं किया जा सकता था.
धार की विधायक को अगर पहले विश्वास में लिया गया होता तो वह यह नहीं कहती कि, उन्हें तो कुछ पता नहीं था. इंदौर संभाग के जनप्रतिनिधियों को भरोसे में लेकर ट्रकों का मूवमेंट किया गया होता तो, क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों को सारे तथ्यों से अवगत कराया जा सकता था. अब क्योंकि अविश्वास पैदा हो गया है, इसलिए विश्वास की बहाली के लिए कठोर प्रयास करने की जरूरत होगी.
मुख्यमंत्री स्वयं इंदौर जिले के प्रभारी मंत्री हैं. पीथमपुर भले ही धार जिले में आता है लेकिन इस क्षेत्र और इंदौर की नजदीकी ज्यादा है. कोई भी जन प्रतिनिधि जहरीले कचरे के निष्पादन का अगर विरोध कर रहा है तो यह उसकी मजबूरी ही कही जाएगी. जनता के भरोसे के बाद ही वह जनप्रतिनिधि बनता है. जब जनता में ही इस प्रक्रिया पर अविश्वास है.
लोग आत्मदाह करने तक कदम उठाने का दुस्साहस कर रहे हैं, तो फिर उस अंचल के जन प्रतिनिधि सरकार के एक्शन का मौन समर्थन तो नहीं कर सकते. स्थानीय जनप्रतिनिधियों को अपने स्थानीय प्रभाव को भी बचाना है. सरकार और पार्टी की लॉयल्टी साबित करने के साथ ही विपक्षी राजनीति का मुकाबला भी करना है.
क्योंकि अब मामला उच्च न्यायालय के विचार में चला गया है और अगली सुनवाई की तिथि भी सामने आ गई है, अब तो बेहतर यही होगा कि, कचरे के निष्पादन पर अफवाहों से बचा जाए. इस पर दलीय राजनीति को नहीं शामिल किया जाए. इस महत्वपूर्ण मसले पर मानव जीवन के अस्तित्व, कचरे के दुष्प्रभाव को ही सबसे ऊपर रखा जाए.
सोशल मीडिया के ज़माने में अफवाह को तो बहुत जल्दी गति मिल जाती है. ज़हरीले कचरे से नुकसान को लेकर अगर कोई विशेषज्ञ डॉक्टर कोई राय व्यक्त करता है, तो लोग उस पर तुरंत भरोसा कर लेते हैं. इसलिए ऐसे विशेषज्ञों को भी कोई राय देने के पहले पूरी सावधानी बरतनी चाहिए.
यूनियन कार्बाइड के ज़हरीले कचरे के निष्पादन पर जो हालात बने हैं, उसके लिए निश्चित रूप से ब्यूरोक्रेसी ही जिम्मेदार मानी जाएगी. पॉलिटिकल लीडर तो ब्यूरोक्रेसी के एक्शन प्लान को मंजूरी देते हैं. कचरे के बारे में जो भी तथ्य थे, उनको भोपाल से मूवमेंट करने के पहले पब्लिक में क्यों नहीं ले जाया गया, यह बात समझ से परे है. जब भी कोई पब्लिक मूवमेंट होता है तो उसके नुकसान या फायदे तो अंततः पॉलिटिकल गवर्नमेंट के ही खाते में जाते हैं.
यूनियन कार्बाइडऔर उसका कचरा मध्य प्रदेश के लिए बहुत सेंसिटिव है. इस कचरे ने मध्य प्रदेश का बहुत नुकसान किया है. इंडस्ट्रियल कारणों से शांति व्यवस्था खराब होना राज्य के विकास के लिए भी उचित नहीं है. इन्वेस्टर्स सम्मिट सरकार के सामने है, ऐसे हालत में ज़हरीले कचरे के निष्पादन पर सतर्कता में कोई कमी नहीं रखी जानी चाहिए. जनता को भरोसे में लेकर ही आगे एक्शन होना चाहिए.
चालीस साल पहले हुई गैस त्रासदी जैसी बड़ी त्रासदी भले नहीं हुई हो, लेकिन छोटी-छोटी त्रासदियां तो होती ही रहती हैं. औद्योगिक और रासायनिक दुर्घटनाएं कई सारी हुई हैं. पेटलावद में भीड़भाड़ वाली जगह पर गैर कानूनी ढंग से रखे गए विस्फोटक में विस्फोट के कारण सैकड़ो लोगों ने जान गंवाई थी. जो खतरनाक रसायन बाजार में उपलब्ध नहीं होना चाहिए, वह खुलेआम उपलब्ध हो रहे हैं. पतंग में लगने वाले चीनी मांझा पर प्रतिबंध होने के बाद भी दूसरे रूप में उसकी उपलब्धता खुलेआम लोगों को संकट में डाल रही है. मिलावट की घटनाएं जीवन को धीरे-धीरे संकट में धकेल रही हैं. जहरीले पानी से पैदा होने वाली सब्जियां भी बाजार में उपलब्ध हैं.
यूनियन कार्बाइड जैसी बड़ी दुर्घटना पर तो विश्वव्यापी संवेदना देखी गई थी. यहां तक कि, अब उसके कचरे पर भी संवेदना चरम पर है. आम जनजीवन में मिलावट के कारण जो नुकसान हो रहा है, उसकी तो कोई ना वैज्ञानिकता है, ना कोई खोजबीन है और ना ही कोई पुख्ता आधार बताए जा सकते हैं.
सरकारी व्यवस्था सभी प्रकार की व्यवस्थाओं की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार होती है. कोई भी गैरकानूनी और जानलेवा स्थितियां अगर बनी हुई है तो उसके लिए प्रशासन को ही जिम्मेदार माना जाएगा.
सियासत तो इतिहास पर अपना आशियाना बनाती है. इतिहास पर सियासत हर रोज दिखाई पड़ती है. महापुरुषों के नाम पर राजनीति की जाती है. इतिहास जानकारी के लिए उपयोगी हो सकता है, लेकिन वर्तमान के लिए कर्म की अनुभूति ही सार्थक होती है.
स्वार्थ एक सीमा तक जरूरी है, जो स्वयं के लिए अनुभूति नहीं करेगा, वह परमार्थी कैसे हो सकता है. स्वार्थ तब ज़हर बन जाता है, जब यूनियन कार्बाइड जैसा लोगों की जान लेने लगता है. जो कचरा है, उसका तो निष्पादन करना ही होगा. पूरी सावधानी और जनविश्वास के बाद यह किया जाना उचित होगा. स्वार्थ के जहर के कारण आम जनजीवन जो जहरीला बनता जा रहा है, वह भविष्य में कोई ऐसा जहरीला कचरा ना पैदा कर दे, इस पर भी सतर्क रहने की जरूरत है.