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तस्मै: श्री गुरूवे नम:   

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Tue , 31 Jan

सार

हिंदू संस्कृति में गुरु को साक्षात परम ब्रह्म अथवा ईश्वर का स्वरूप माना गया है..!!                                                                      

janmat

विस्तार

देश ने गणतंत्र दिवस पर समाज में अवदान देने वाले गुरुओं को सम्मानित किया। गुरु की परंपरा हमारे देश में बहुत प्राचीन है। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। इसका हिंदू संस्कृति में एक सर्वोच्च स्थान रहा है। हिंदू संस्कृति में गुरु को साक्षात परम ब्रह्म अथवा ईश्वर का स्वरूप माना गया है। हमारी प्राचीन परंपराओं के अनुसार गुरु के बिना ज्ञान संभव नहीं है। गुरु ही है जो हमें ज्ञान प्रदान करता है और इस सृष्टि के सारे रहस्यों के भेद खोलता है। 

गुरु के बिना हमारा कल्याण संभव नहीं है। वह गुरु ही है जो अपनी असीम कृपा करके हमारी आंखों को खोल कर रख देता है। हमें हमेशा अपने गुरुओं को पूजनीय समझना चाहिए और उनका आदर-सत्कार करना चाहिए, क्योंकि जो गुरु होता है वह कभी भी किसी का बुरा नहीं सोचता है। वह तो हमेशा हमारी भलाई में लगा रहता है। 

वर्तमान समय में गुरु के पक्ष में लिखी गई पंक्तियों की चमक दिन-प्रतिदिन फीकी पड़ती जा रही है। एक समय था जब शिष्य गुरु को दंडवत प्रणाम करता था। गुरु फूला नहीं समाता था। गुरु अपने शिष्य को सौ-सौ दुआएं देता था।

गुरु को अपने शिष्य पर बहुत अधिक अभिमान होता था कि वह एक न एक दिन उसका, अपने माता-पिता, अपने गांव का, अपने देश-प्रदेश का नाम रोशन करेगा, परंतु आज गुरु का सिर लाज से झुक जाता है जब उसका शिष्य बिना प्रणाम किए सामने से गुजर जाता है। 

गुरु आश्चर्यचकित-सा होकर खड़ा सोचता रह जाता है कि इस नई पीढ़ी का क्या होगा? ये विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करके किस ओर जा रहे हैं? ये क्या सीख रहे हैं? हम कह रहे हैं हमारे देश ने बहुत अधिक तरक्की कर ली है। हमने मंगल ग्रह पर भी तिरंगा फहरा दिया है। हम विश्व की तीसरी आर्थिक शक्ति बनने जा रहे हैं। समाज में दिन-प्रतिदिन सुधार होता जा रहा है। भविष्य तो हमारा अंधकारमय है। विद्यार्थी ही हमारा भविष्य है। वही अपना मार्ग भटक गए हैं। 

एक समय था जब विद्यार्थी गुरु के सामने आने से भी डरते थे, परंतु आज के जमाने में गुरु के डर की बात तो दूर, गुरु को ही डराने लगे हैं। उलटी गंगा बहने लगी है। बड़े दुख की बात है कि आज गुरुओं की पहचान गुम होती जा रही है। उसकी सबसे बड़ी वजह हमारी वर्तमान व्यवस्था है। 

आज गलती विद्यार्थी की ही क्यों न हो? विद्यार्थी के लिए सभी दरवाजे खुले हैं। गुरु अभिमन्यु की तरह चक्करव्यूह में छटपटाता है। उसके लिए सभी दरवाजे बंद हैं। उसके हाथ इस कद्र बंधे हुए हैं कि पानी पुल के ऊपर से गुजर जाएगा, परंतु पुल मजबूरी में सब कुछ देखता रहेगा। उसका कहां वश चलता है। व्यवस्था हमारी इतना भयानक रूप ले चुकी है कि गुरु करे तो क्या करे?