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आतंकवाद: सरकारों को बहुत कुछ सीखना है 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 16 Oct

सार

छत्तीसगढ़ राज्य गठन के 24 साल बाद से किसी एक अभियान में माओवादियों-आतंकियों की यह सर्वाधिक मौतों की संख्या है..!!

janmat

विस्तार

इसे जाहिर तौर पुलिस बल की सफलता ही कहेंगे कि 4 अक्टूबर को नारायणपुर-दंतेवाड़ा जिलों की सीमा पर पुलिस बल ने 31 नक्सलियों को मार गिराया। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के 24 साल बाद से किसी एक अभियान में माओवादियों-आतंकियों की यह सर्वाधिक मौतों की संख्या है। इस घटना ने देश में आतंकवाद के घाव फिर से हरे कर दिए और यह सवाल पैदा किया कि “देश में हर तरह की आतंकी वारदातें कांग्रेस के केंद्र और राज्यों में सत्ता में रहने के दौरान ही क्यों होती हैं?”  

वैसे भी कांग्रेस की नीतियों से ऐसी रक्तरंजित घटनाओं का परिणाम अभी तक देश भुगत रहा है। आतंकवाद चाहे जम्मू-कश्मीर का हो, नक्सलियों का, पूर्वोत्तर में या फिर पंजाब में खालिस्तान का रहा हो, देश ने कांग्रेस की गलतियों की भारी कीमत चुकाई है। इसी तरह दशकों तक तीन राज्यों में व्याप्त रहा चंबल के बीहड़ों में डकैतों के अपराधों का काला इतिहास भी कांग्रेस के शासन के दौरान लिखा गया। सर्वाधिक आश्चर्य यह है कि कांग्रेस ने इन गलतियों से सबक नहीं लिया। 

आतंकवाद चाहे जम्मू-कश्मीर में हो या फिर नक्सलियों का हो, कांग्रेस ने कभी भी केंद्र की वर्तमान सरकार की तरह सख्ती नहीं दिखाई। इसके विपरीत कांग्रेस का रवैया वोट बैंक की राजनीति के कारण आतंक समर्थकों के प्रति सहानुभूति का रहा है। लापरवाही और उपेक्षापूर्ण नीतियों के साथ ही राजनीतिक फायदे के लिए की गई आतंकवाद की अवहेलना की कीमत कांग्रेस ने भी चुकाई है। 

25 मई 2013 को, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के नक्सली विद्रोहियों ने छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में दरभा घाटी की झीरम घाटी में कांग्रेस नेताओं के काफिले पर हमला किया। इस हमले में कम से कम 27 लोगों की मौत हो गई, जिसमें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विद्या चरण शुक्ला, पूर्व राज्य मंत्री महेंद्र कर्मा और छत्तीसगढ़ कांग्रेस प्रमुख नंद कुमार पटेल की मौत हो गई। 

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने वामपंथी उग्रवाद प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ समीक्षा बैठक में कहा कि 2026 में नक्सलवाद को खत्म कर देंगे। शाह ने कहा कि 30 साल के बाद पहली बार वामपंथी उग्रवाद से मरने वाले लोगों की संख्या 100 से कम रही है। हिंसा की घटनाओं में करीब 53 प्रतिशत की कमी आई है। नक्सली हिंसा से प्रभावित जिलों की संख्या 96 की जगह 42 जिले तक सीमित रह गई है। इन 42 जिलों में से 21 जिले नए बने हैं। इनमें से करीब 16 जिले ही नक्सल हिंसा से प्रभावित हैं। 

केंद्र सरकार को आतंकियों से निपटने के लिए न सिर्फ करोड़ों रुपए बहाने पड़ रहे हैं, बल्कि पुलिस और सुरक्षा बलों को काफी मानवीय क्षति उठानी पड़ी है। नक्सल आतंकवाद का उदय पश्चिमी बंगाल से कांग्रेस शासन के दौरान ही हुआ था। यह फैलते हुए देश के करीब आठ राज्यों में तक पहुंच गया। इनमें से ज्यादातर राज्यों और केंद्र में कांग्रेस की सरकार रही। 

कांग्रेस की तत्कालीन सरकारें नक्सलियों की रोकथाम करने में विफल रही। केंद्र और राज्य मिलकर काम नहीं कर सके। नक्सली देश के लिए नासूर बन गए। मुस्लिम वोटों के कारण कांग्रेस कभी भी भाजपा जैसी सख्ती नहीं दिखा पाई।नौबत यह आ गई कि पाकपरस्त आतंकी संगठनों ने केंद्र में कांग्रेस के शासन के दौरान देश में बम धमाके करके कानून-व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया। 

सरकार की सख्त सुरक्षा नीतियों के कारण पाकपरस्त आतंकियों के हौसले पस्त हुए है ।जम्मू-कश्मीर में कुछ आतंकी वारदातों के सिवाय देश में कहीं भी बम धमाके नहीं हुए। इसमें महत्वपूर्ण सफलता धारा 370 हटने के बाद मिली, जिससे पत्थरबाजी खत्म होने के साथ विकास की नई इबारत लिखी गई। सवाल यही है कि क्या कांग्रेस आतंकवाद और कानून-व्यवस्था को लेकर इतिहास से कोई सबक सीखेगी।