मतदान समाप्त होने के बाद एग्जिट पोल की बहार आ जाएगी. एग्जिट पोल के नतीजे कई चुनावों से ग़लत साबित हो रहे हैं. यूएसए राष्ट्रपति चुनाव में भी एग्जिट पोल की पोल खुल गई. हरियाणा में भी यही हुआ..!!
महाराष्ट्र और झारखंड में तो जिस तरह के कांटे की लड़ाई है, उसमें परिणाम का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता. अगर लगाया जा सकता है, तो केवल गठबंधनों के चुनाव अभियानों रणनीतियों के समीकरणों पर परिणाम के गणित का अनुमान लगाया जा सकता है. इन अनुमानो के आधार पर बीजेपी का महायुति गठबंधन बढ़त में दिखाई पड़ रहा है. झारखंड में भी बीजेपी का गठबंधन ही आगे निकलता दिख रहा है.
महाराष्ट्र में मतदाता गठबंधनों के भीतर एनसीपी और शिवसेना को लेकर कन्फ्यूज हैं. दोनों गठबंधनों में यह दल शामिल हैं. बस अंतर केवल इतना है, कि एनसीपी अजीत और एनसीपी शरद पवार (शिवसेना शिंदे) और शिवसेना (उद्धव ठाकरे) के रूप में आमने-सामने हैं. इन दोनों दलों में हुई टूट, इन चुनावों में बड़े मुद्दे के रूप में निर्णायक साबित होने जा रही है. दोनों गठबंधनों में इन दलों का वजूद चुनाव परिणाम पर तय होगा.
बीजेपी सबसे अधिक सीटों पर चुनाव लड़ रही है. इसलिए बीजेपी का सबसे बड़े दल के रूप में उभरना लगभग सुनिश्चित है. लोकसभा चुनाव परिणाम में जनादेश बीजेपी के खिलाफ़ गया था. मतदाताओं की नाराजगी अफसोस में बदलती दिख रही है. इसका भी फायदा बीजेपी को मिलता हुआ दिखाई पड़ रहा है.
महायुति गठबंधन में शिवसेना शिंदे और बीजेपी की स्थिति मजबूत है. कमजोर कड़ी अजीत पवार एनसीपी दिखाई पड़ रही है. बारामती सीट पर पवार परिवार की लड़ाई खुलकर सामने है. लोकसभा में यहां के लोगों ने शरद पवार का साथ दिया था. विधानसभा चुनाव में अजीत पवार की जीत सुनिश्चित लग रही है.
मुस्लिम वोट भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. बंटेंगे तो कटेंगे और एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे का नारा जितना प्रभाव स्थापित कर पाएगा, उससे चुनाव परिणाम प्रभावित होगा. मतदान के आंकड़े यही बता रहे हैं, कि मुस्लिम बहुल्य इलाकों में बढ़ृ-चढ़कर मतदान किया गया है. लेकिन हिंदू मतदाताओं में रुझान कमजोर देखा गया है.
दोनों गठबंधनों में बेमेल पार्टनर हैं. महा अघाड़ी में शिवसेना यूबीटी कमजोर कड़ी है, तो महायुति में एनसीपी अजीत पवार का रुख़ बेमेल दिख रहा है. नवाब मलिक को लेकर टकराव साफ देखा गया. एनसीपी अजीत को मुस्लिम मतदाताओं का भी समर्थन मिलता है. शायद अजीत पवार ने मुस्लिम मतदाताओं को मैसेज देने के लिए ही इस तरह की रणनीति अपनाई है.
लोकसभा चुनाव में मराठा वोट बीजेपी के खिलाफ़ गए थे. विधानसभा के चुनाव में पिछड़ी जातियों को लामबंद करने पर बीजेपी ने काम किया है.
उद्धव ठाकरे की शिवसेना का अस्तित्व दांव पर लगा हुआ है. वैचारिक रूप से बाला साहेब ठाकरे की विरासत का कांग्रेस और एनसीपी के साथ कोई मेल नहीं हो सकता. राजनीतिक कारणों से मुख्यमंत्री पद के लिए उद्धव ठाकरे ने यह बेमेल गठबंधन किया. इस विधानसभा चुनाव में इस गठबंधन पर जनादेश का नतीजा सामने आएगा. राजनीतिक पंडित ऐसा मान रहे हैं, कि की महा विकास अघाड़ी की सबसे कमजोर कड़ी शिवसेना यूबीटी ही साबित होगी. लोकसभा चुनाव में भी उनका प्रदर्शन बहुत आकर्षक नहीं रहा.
शिवसेना तोड़ने के बाद भी एकनाथ शिंदे ने अपनी छवि और जन समर्थन बढ़ाने में सफलता हासिल की है. पर्टियों में इतने बड़े विभाजन के बाद भी एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में युति सरकार ने अपनी योजनाओं के माध्यम से जनता में सरकार के विश्वास को मजबूत किया है. चुनाव नतीजे में इसका असर भी दिखाई पड़ सकता है.
बागी उम्मीदवार भी नतीजों को प्रभावित कर रहे हैं. बागी जीतें भले ही कम लेकिन कई सीटों पर नतीजे में उलटफेर बागियों के कारण हो सकता है. मतदान प्रतिशत अगर पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में कम होता है, तो यह बीजेपी के लिए चिंताजनक हो सकता है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बीजेपी का मातृ संगठन माना जाता है. महाराष्ट्र आरएसएस का मातृ स्थल माना जा सकता है. आरएसएस के लिए महाराष्ट्र के चुनाव डू और डाइ जैसा है. संघ ने चुनावों में पहली बार भाजपा के अतिरिक्त अपने स्वयंसेवको और पदाधिकारियों को मैदान में उतारा है.
संघ का मुख्यालय महाराष्ट्र में ही है. महाराष्ट्र की राजनीति में संघ का कमजोर होना, पूरे देश में इस संगठन की भूमिका पर सवाल खड़े करेगा. महायुति को चुनाव जिताने में आरएसएस कोई भी कसर नहीं छोड़ रहा है. चुनाव नतीजों में संघ की छाप भी दिखाई पड़ सकती है.
महाराष्ट्र चुनाव प्रचार विकास के मुद्दों से ज्यादा बंटेंगे तो कटेंगे पर सिमट गया. चुनाव में कैश वितरण और बिटकॉइन को लेकर भाजपा एनसीपी और कांग्रेस के बीच विवाद भी परिणामों के बाद याद रखा जाएगा.
महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम अगर किसी गठबंधन के पक्ष में स्पष्ट बहुमत के साथ नहीं आते, तो फिर राज्य के राजनीतिक हालात राष्ट्रपति शासन की ओर ले जाएंगे. इसका कारण यह है, कि चुनाव परिणाम के बाद केवल तीन दिन का समय सरकार के गठन के लिए रहेगा.
यदि इस बीच में सरकार का गठन नहीं हो पाया, तो मजबूरी में राष्ट्रपति शासन लगाना ही एक रास्ता होगा. अभी महाराष्ट्र में गठबंधन का जो स्वरूप है, वह चुनाव परिणाम के साथ अदलने-बदलने की भी संभावनाएं हो सकती हैं.
झारखंड में राजनैतिक विश्लेषक एनडीए की बढ़त प्रिडिक्ट कर रहे हैं. वहां आदिवासी रुझान नतीजे तय करेगा. हेमंत सोरेन का जेल जाना सहानुभूति पैदा कर सकता है. राज्य में करप्शन के बड़े-बड़े घोटाले भी चुनाव परिणाम को प्रभावित करते दिखाई पड़ रहे हैं.
महाराष्ट्र के शहरी क्षेत्रों में कम मतदान बीजेपी को परेशान कर सकता है. संघ और बीजेपी द्वारा मतदान को बढ़ाने की पूरी कोशिश की गई है. चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र के शहरी इलाकों में मतदान को छुट्टी के रूप में इंजॉय करने की प्रवृत्ति को देखते हुए वीक प्रारंभ और वीक एंड को छोड़कर मध्य का दिन बुधवार मतदान की तिथि निश्चित की है. इसके पीछे यही सोचा गया कि मतदान अगर सप्ताह के प्रारंभ की तिथि में होता है, तो लोग एक दिन की छुट्टी बढ़ा लेते हैं और अगर सप्ताह के अंत में होता है, तो एक दिन पहले की छुट्टी लेकर घूमने निकल जाते हैं.
इसीलिए मतदान की तिथि ऐसी निश्चित की गई है, कि आगे-पीछे छुट्टी लेकर सरकारी छुट्टियों के साथ बाहर जाने का कार्यक्रम बनाने का अवसर न मिल सके. परिणाम के पूर्वानुमान जिस तरह से ग़लत साबित हो रही हैं, उससे ऐसा लगने लगा है, कि मतदाता करता कुछ और है और बताता कुछ और है.
देश में लोकतंत्र ऐसे दौर में पहुंच गया है, जहां चुनाव को ही लोकतंत्र कहा जा सकता है. परिणाम के बाद सरकारों का गठन और सरकारों के संचालन में लोकतंत्र तो दिखता नहीं है, बल्कि सरकारों के परतंत्र होने के दृश्य दिखाई पड़ते हैं. टूट-फूट के जो हालात बन रहे हैं, उससे तो चुनाव भी अब बेमानी ही साबित हो रहे हैं.
लोकसभा चुनाव परिणाम फिर हरियाणा और जम्मू कश्मीर के परिणाम देश की राजनीतिक हवा को संतुलित कर चुके हैं. महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव परिणाम देश की नई हवा का इशारा करेंगे. चुनाव में मुफ्तखोरी, काला धन का उपयोग और ज़हरीला प्रचार जो भी सरकार बनाएगी उसमें शुद्ध हवा की कल्पना सपना ही हो सकता है.