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काले हिरण की लड़ाई,  लॉरेंस ऑफ़ इंडिया तक आई..

सार

टोलरेंस हमारा स्वभाव है. इन टोलरेंस अति का दुष्प्रभाव है. जब स्वभाव छूटता है तो टोलरेंस, लॉरेंस बनकर सामने आता है. भारत की राजनीति जैसे गैंगवार  की कहानी भी बदल गई है. ‘डी-कंपनी’ को अब ‘बी-कंपनी’ से प्रतिस्पर्धा मिल रही है..!!

janmat

विस्तार

    एक समय था जब दाऊद इब्राहिम का बोलबाला था. पूरे देश में गैंगवार की कहानी बिना ‘डी-कंपनी’ के पूरी नहीं होती थी. अब वक्त बदल गया है. पहले ‘डी-कंपनी’ बॉलीवुड से पैसे हड़पती थी. आज लॉरेंस बिश्नोई की ‘बी-कंपनी’ सलमान खान के लिए मुसीबत बन गई है. यह भारत में ही संभव है, कि पांच साल का बच्चा बिश्नोई समाज के लिए पवित्र ‘मृग प्रजाति’ के एक काले हिरण के शिकार का बदला लेने के लिए अपना सारा जीवन दांव पर लगा दे.

   वही बच्चा लारेंस बड़ा होकर तकरीबन 10 सालों से विभिन्न राज्यों की जेल में है. फिर भी वह अपना गैंग आपरेट कर रहा है. देश में नहीं विदेश में भी लारेंस बिश्नोई गैंग डर का पर्याय बनी हुई है. कनाडा और अमेरिका में खालिस्तान समर्थको की हत्या के मामले में वहां की सरकारों में लॉरेंस गैंग को ही जिम्मेदार मानकर इसके डर को पूरी दुनिया में बढ़ाने का काम किया है. कनाडा और अमेरिका में खालिस्तानियों की  हत्या और भारत के अंदर पंजाब व मुंबई में हुई हत्याओं के बाद लॉरेंस गैंग अब ‘दाग’ और ‘सफेदी’ का मिलाजुला अहसास बन गया है.

   मुंबई में सलमान के करीबी एनसीपी नेता बाबा सिद्दीकी के मर्डर के बाद लॉरेंस गैंग का खौफ बॉलीवुड में गब्बर जैसा फैल गया है. सलमान और उनसे जुड़े लोगों के साथ ही ‘डी-कंपनी’ के सहयोगी समर्थको में भी भय का माहौल है. हर रोज धमकियों का बाजार गर्म होता है. मीडिया में भी यह खबर सुर्ख़ियों में रहती है. सोशल मीडिया तो इस गैंग के अपराधिक दाग को स्वाभिमान की सफेदी से धोने में लगा हुआ है. आज लॉरेंस घर-घर मशहूर है. वह अपने गैंग का संचालन जेल के भीतर बैठ कर आसानी से कर रहा है. इसलिए अपराध के बाद भी क़ानूनी कारवाई को लेकर उठने वाली आवाजें मौन हैं. 

  अपराध की ना तो  कोई जाति होती है और ना धर्म.  लेकिन फिर भी अपराधी अगर पॉपुलर हो जाए तो उसे जाति और धर्म से जोड़ कर न केवल देखा जाता है? बल्कि उसे संरक्षण भी दिया जाता है. पुराने जमाने में तो जातियों से जुड़े डाकुओं के गिरोह हुआ करते थे.  

   इजराइल फिलिस्तीन का जो युद्ध चल रहा है, उसमें तो हिज्बुल्लाह और हमास के आतंकवादी ही लड़ रहे हैं. इन आतंकवादी गिरोहों के लिए फातिहा भारत में भी पढ़े जाते हैं. देश की संसद में जय फिलिस्तीन का नारा भी लगाया गया था. एक दौर था जब देश में आतंकवादी घटनाएं बहुत हुआ करती थी.

    बम विस्फोट आए दिन के विषय थे. मुंबई में 26 -11 का हमला अभी तक लोगों को याद है. दिल्ली में संसद पर हमला करने वाले जब पकड़े गए थे, तब भी धर्म के नाम पर फांसी से बचाने के लिए क्या-क्या जतन नहीं किए गए थे? आतंकवादी घटनाओं में एक ही धर्म के अधिकांश आतंकवादी पकड़े जाने के बाद हिंदू आतंकवाद जैसे शब्द गढ़ने की राजनीतिक साजिशें भी की गई थी. ज़हर को ज़हर ही काटता है.

   सहिष्णुता और वसुधैव कुटुम्बकम भारतीयता की आधारशिला है और इसे ही सबसे बड़ी कमजोरी भी कहा जा सकता है.  अत्याचार के खिलाफ शस्त्र उठाना भारतीय संस्कृति है. बदले वक़्त की घड़ी आज वहीं पहुंच गई है. 

   दाऊद इब्राहिम दशकों से दुबई और पाकिस्तान में बैठकर भारत में ‘डी-कंपनी’ चलाता रहा है. उसके नाम पर बॉलीवुड से धन वसूला जाता है. कामधंधों और व्यवसाय वालों भी चौथ वसूली की जाती रही है. रास्ता तो पहले से बना हुआ था अब उसी रास्ते पर भारतीयता का शेर दहाड़ रहा है. अपराधिक गतिविधियों को महिमामंडित करने का प्रयास बिल्कुल भी नहीं किया जाना चाहिए लेकिन भारत का कानून भी आत्मरक्षा में किए गए अपराध के भाव को स्वीकार करता है. 

   खालिस्तान समर्थको के खिलाफ लॉरेंस बिश्नोई गैंग के हमले भारतीयता के प्रति उसकी समझ को दिखाते हैं. लॉरेंस ने पंजाब विश्वविद्यालय में ही पढ़ाई की है. पंजाब की गरिमा और गौरव उसकी नसों में है. जो बच्चा काले हिरण के लिए अपना सब कुछ मिटाने को तैयार हो सकता है वह अपने राष्ट्र और राज्य के लिए तो कुछ भी कर सकता है. 

  कनाडा के प्रधानमंत्री तो नींद में भी लॉरेंस का नाम सुनकर डर जाते होंगे. कनाडा में सिखों की जनसंख्या पर्याप्त मात्रा में है. खालिस्तान समर्थकों की कनाडा की अंदरूनी राजनीति में गहरे तक पकड है. प्रधानमंत्री ट्रूडो इसी राजनीति का शिकार हो गए हैं. अपने देश को नए पाकिस्तान के रूप में पेश कर रहे हैं. राजनीति तो हमेशा नहीं चलती लेकिन देश जरूर हमेशा रहता है. भारत और कनाडा के बीच के रिश्ते रसातल में पहुंच चुके हैं. बिना सबूत के भारत पर आरोप लगाने की प्रतिक्रिया में भारत ने अपने राजनयिकों को वहां से वापस बुला लिया है और कनाडा के राजनयिकों को भारत से निष्कासित कर दिया है.

   भारत के टॉलरेंस को लॉरेंस बनने में देर नहीं लगेगी. किसी भी देश को टालरेंस की परीक्षा नहीं लेना चाहिए. भारत की अंदरूनी राजनीति भी विदेशी साजिशों में सम्मिलित दिखाई पड़ती है. 

  काले हिरण की हत्या सलमान खान की बड़ी गलती है. जिला अदालत में इसके लिए उन्हें दोषी भी माना गया है. मामला उच्च न्यायालय में विचाराधीन है. किसी भी समाज की पवित्र भावनाओं से जुड़े इस मामले में इतने लंबे समय तक समाज से बातचीत कर इसके समाधान  प्रयास नहीं करना भी सलमान खान की गलती ही कही जाएगी. 

   अपराध को तो जन स्वीकारिता नहीं दी जा सकती. भारत तो ऐसा देश है, जहां कर्म में ही नहीं, विचार और भाव में भी अपराध पाप माना गया है. कर्म में अपराध हो तो कानून पकड़ेगा लेकिन भाव में अपराध हो तो परम सत्ता को जवाब देना होगा. 

   अंडरवर्ल्ड गैंगवार का फिर से पनपना चिंता की बात है. जांच एजेंसियां इस बात का खुलासा करेंगीं कि कैसे एक व्यक्ति जेल के भीतर से अपना गैंग संचालित कर सकता है. दाऊद इब्राहिम की डी कंपनी तो देश के बाहर से दशकों तक अपना गैंग चलाती रही है. 

   ऐसा माना तो जा सकता है कि कहीं छुपकर गैंग संचालन किया जा सकता है. भारत में विभिन्न धर्मो के बीच संघर्ष राजनीतिक कारणों से भी होते रहे हैं. धार्मिक जुलूस में टकराव के बाद दंगे और हत्याओं का पूरा फायदा राजनीतिक दल  लेने की कोशिश करते हैं. अंडरवर्ल्ड गैंगवार में भी इसी तरीके का एप्रोच दिखाई पड़ रहा है. इस देश ने देखा है, कि हमारे धर्म का है तो उसके अपराध और उसके दाग भी अच्छे हैं. लॉरेंस बिश्नोई के मामले में भी ऐसा ही होता दिखाई पड़ रहा है. ऐसी अति से बचना चाहिए जिसके दुष्प्रभाव के कारण भारत का टालरेंस लॉरेंस बन जाता है.