विधायक दल के नेता का चुनाव कभी टीवी पर लाइव नहीं होता. बैठक की जानकारी सूत्रों के हवाले से आने की परिपाटी रही है. महाराष्ट्र में लंबे विचार विमर्श के बाद भाजपा विधायक दल के नेता का चयन कई संदेश दे गया..!!
पूरे देश ने बैठक का दृश्य देखा जिसमें सर्वसम्मति से देवेंद्र फडणवीस को नेता चुना गया. प्रस्तावक समर्थक के साथ ही लगभग 11 दिनों बाद सभी विधायक अपने सिर पर हिंदुत्व अस्मिता की ललकार केसरिया मराठा फेंटा पहने हुए थे. महाराष्ट्र ने राष्ट्र को भविष्य का लाइव मैसेज दिया है.
महाराष्ट्र का नाम ही यह प्रतिबिंबित करता है, कि उसका रोल कई मामलों में राष्ट्र को महा संदेश देता है. महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई देश की फाइनेंशियल कैपिटल है, तो इस राज्य का हिंदुत्व अस्मिता के लिए बलिदान होने का इतिहास है. मराठा साम्राज्य के शौर्य और पराक्रम से इतिहास भरा पड़ा है.
पिछले कई वर्षों से महाराष्ट्र की सियासत बिखरी-बिखरी थी. वैचारिक सियासी बांध टूट गए थे. सत्ता के लिए अस्मिता छोड़ दी गई थी. इस बार के चुनाव महाराष्ट्र की सियासी ताकत की पुनर्वापसी के रूप में ही देखी जा सकती है.
बहुत लंबे समय के बाद पहला अवसर है, जब इतने स्पष्ट बहुमत की सरकार बनने जा रही है. हिंदुत्व की सोच जहां अपने सियासी वैभव के चरम पर पहुंची है. वहीं विरोधी राजनीति इतिहास के अब तक की सबसे बड़ी पराजय झेली है.
देवेंद्र फडणवीस दो बार पहले भी मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उन्होंने अपने राजनीतिक वजूद को स्थापित किया है. मुक्यमंत्री रहने के बाद एकनाथ शिंदे की सरकार में उपमुख्यमंत्री बन का जो साहसिक काम उन्होंने किया था, उसकी इन चुनाव परिणामों और नई सरकार के गठन में छाप देखी जा सकती है.
महायुति गठबंधन में अभी भी तीन दलों की सरकार बन रही है. चुनाव परिणाम के लगभग दो सप्ताह बाद मुख्यमंत्री और दो उपमुख्यमंत्री शपथ ले रहे हैं. यह भी स्पष्ट है, कि उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और अजीत पवार होंगे. पूरा मंत्रिमंडल बनने में अभी और समय लगेगा. विभागों के बंटवारे में भी तमाम दांव-पेंच दिखाई पड़ेंगे.
गठबंधन की राजनीति सेवा भावना से ज्यादा सत्ता में हिस्सेदारी के बंटवारे पर फोकस करती है. महाराष्ट्र के गठबंधन जिसमें भाजपा को सर्वाधिक सीटें हैं, इसलिए गठबंधन की तकलीफ थोड़ी कम हो सकती है, लेकिन अगर सियासी समझदारी नहीं दिखाई गई, तो इतना बड़ा बहुमत भी जनादेश की अपेक्षाओं पर खरा उतर पाएगा, इस पर सवाल ही बने रहेंगे.
कटेंगे तो बटेंगे, एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे के चुनावी नारे विधायक दल की बैठक में भी सुनाई पड़े. इन नारों को चुनाव में भले ही नेगेटिव रूप में देखा गया हो लेकिन इनका फोकस हिंदुत्व एकता पर ही रहा है. लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र ने बीजेपी को चौंकाया था. तब से ही हिंदुत्व एकता को मजबूत करने के प्रयास चालू हुए थे. जो विधायक दल के लाइव मैसेज के साथ पूरा हुआ है.
महायुति सरकार को जनादेश की अपेक्षाओं पर खरा उतरना होगा. महाराष्ट्र विशेष कर फाइनेंशियल कैपिटल मुंबई को नई ताकत के साथ विकास का नया आकार देना होगा. इस गठबंधन की सफलता देश में गठबंधन की राजनीति को नई दिशा दे सकती है. अभी तक का अनुभव गठबंधन की राजनीति को धीरे-धीरे नीचे ही ले जा रहा है.
एक तरफ महाराष्ट्र का लाइव मैसेज है, तो दूसरी तरफ संभल पर राहुल गांधी का लाइव मैसेज है. लगभग एक समय पर दोनों मैसेज चल रहे थे.यह महज संयोग हो सकता है, लेकिन दोनों मैसेज सियासत की दो धाराओं का इशारा कर रहे हैं. संभल अल्पसंख्यकवाद की राजनीति की धारा को प्रतिबिंबित कर रही है, तो महाराष्ट्र हिंदुत्व अस्मिता के एकीकरण का संदेश दे रही है.
बीजेपी का पूरा फोकस हिंदू अस्मिता पर है. इस पार्टी को कम से कम मुस्लिम समर्थन तो नहीं मिलता. मुस्लिम समर्थन विपक्षी दलों को एक मुश्त मिलता रहा है. विपक्षी गठबंधन की गांठ ही मुस्लिम समर्थन के आधार पर मजबूत और ढीली होती रहती है.
संभल की घटना कानून का पालन होता तो टाली जा सकती थी. कानून पर भीड़ को प्रमुखता देने से ऐसी घटनाएं होती हैं. सामाजिक सद्भाव किसी भी समाज के लिए सबसे जरूरी है. समाज तो एकजुट रहना चाहता है, लेकिन शायद सियासत बांटने में ही अपना भविष्य लाशती है. बांटने से ही तो बहुमत या अल्पमत बनता है.
संभल की घटना पर सियासत को रोकने के लिए वहां के प्रशासन ने किसी भी राजनीतिक दल के नेताओं को वहां जाना प्रतिबंधित कर दिया है.पहले समाजवादी पार्टी के नेता रोके गए थे. फिर राज्य में कांग्रेस के नेताओं को रोका गया. अब राहुल गांधी भी संभल पर राजनीतिक संदेश देने के लिए गाजियाबाद बॉर्डर तक पहुंचे. कई घंटे तक अफरा-तफरी रही.
लोकसभा में नेता विपक्ष को क्या यह नहीं मालूम होगा कि प्रशासन द्वारा वहां किसी भी दल के नेता के जाने पर रोक लगा दी गई है? फिर भी वह वहां जाने का अगर प्रयास कर रहे हैं, तो इसका मतलब यह केवल सियासी अभिनय ही हो सकता है.
सियासत में बढ़ता ध्रुवीकरण समाज की चेतना को प्रभावित कर रहा है. कोई भी दल मैसेजिंग में पीछे नहीं रहना चाहता है. हिंदुत्व की वैचारिक धारा पर राजनीति का साहस केवल बीजेपी दिखा पा रही है. लेकिन अल्पसंख्यकवाद को अपनी राजनीति का आधार बनाने वाले दलों की संख्या बहुत ज्यादा है.
हर दल मानता है, कि अल्पसंख्यक उनके वोट बैंक हैं. वोट जिहाद जैसे विचार और एक्शन भी ऐसे सियासी सोच को बढ़ावा देता है. एक्शन का रिएक्शन होता है. यही सब भारतीय राजनीति में अब आमतौर पर हो रहा है.
इतिहास की गलतियां वर्तमान पर हावी हैं. गलतियों को मिटाने के सामाजिक और न्यायिक संघर्ष हर रोज बढ़ते जा रहे हैं. राजनीतिक और वैचारिक परिपक्वता जनमत तो समय-समय पर ताकत के साथ दिखाता है, लेकिन सियासी दल अपरिपक्वता पर ही भरोसा करने लगते हैं.
महाराष्ट्र में नेता चयन की प्रक्रिया ने राजनीतिक दलों के आंतरिक लोकतंत्र को भी नई ऊर्जा दी है. पूरी प्रक्रिया का लाइव संदेश जनादेश की मंशा के अनुरूप ही रहा है. चुनाव परिणाम के बाद इतना समय नेता चयन में लगने की आलोचना भी हुई. महाराष्ट्र सरकार के पास जितनी जनादेश की ताकत है, उतनी ही ताकत से अपेक्षाओं को भी पूरा करना होगा.
पीएम मोदी की मौजूदगी में आजाद मैदान में नई सरकार के शपथ समारोह ने राष्ट्र को महा संदेश दिया है. अडानी,अंबानी, बिरला के साथ ही खेल और फिल्मी हस्तियां इस समारोह का राष्ट्रव्यापी स्वरुप दे रही थी. महाराष्ट्र की ठिठकी राजनीति भगवाधारी ललकार के साथ अब नहीं रुकने का राज्य को संदेश देती दिखी.