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धीमी विकास दर और महंगाई की चुनौती

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Tue , 21 Dec

सार

ऐसे में इस समय देश में धीमी विकास दर और महंगाई की चुनौती का परिदृश्य उभरकर दिखाई दे रहा है..!!

janmat

विस्तार

भारतीय रिजर्व बैंक के नव नियुक्त 26वें गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा कि वह महंगाई नियंत्रण और विकास दर के बीच उपयुक्त संतुलन बनाने की डगर पर आगे बढ़ेंगे, साथ ही अर्थव्यवस्था के लिए सर्वोत्तम काम करने की कोशिश करेंगे। 

12 दिसंबर को घोषित आंकड़ों के अनुसार खुदरा महंगाई दर घटकर 5.8 प्रतिशत रह गई है, फिर भी यह रिजर्व बैंक के महंगाई के तय दायरे से अभी काफी ऊपर बनी हुई है। ऐसे में इस समय देश में धीमी विकास दर और महंगाई की चुनौती का परिदृश्य उभरकर दिखाई दे रहा है। बीते दिनों राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 5.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि इसके पहले अप्रैल से जून की पहली तिमाही में 6.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। 

इस सुस्त विकास दर के परिदृश्य से प्रभावित हुए बिना हाल ही में 6 दिसंबर को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक में विकास दर बढ़ाने के लिए ब्याज दर में कमी नहीं करते हुए महंगाई नियंत्रण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। उल्लेखनीय है कि रिजर्व बैंक ने लगातार 11वीं बार ब्याज दर यानी नीतिगत दर (रेपो) में कोई बदलाव नहीं किया और इसे 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा। रेपो वह ब्याज दर है जिस पर कमर्शियल बैंक अपनी तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए केंद्रीय बैंक से कर्ज लेते हैं। आरबीआई मुद्रास्फीति को काबू में रखने के लिए इस दर का उपयोग करता है।

अर्थव्यवस्था में नकदी बढ़ाने के मकसद से रिजर्व बैंक ने कैश रिजर्व रेश्यो (सीआरआर) को 4.5 प्रतिशत से घटाकर चार प्रतिशत कर दिया। इस कदम से बैंकों में 1.16 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त नकदी उपलब्ध होगी। इससे बैंकिंग क्षेत्र में नकदी की स्थिति में सुधार होगा। ज्ञातव्य है कि सीआरआर के तहत कमर्शियल बैंकों को अपनी जमा का एक निर्धारित हिस्सा कैश रिजर्व के रूप में रिजर्व बैंक के पास रखना होता है। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक में आरबीआई ने मौजूदा स्थिति को देखते हुए चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी ग्रोथ के अनुमान को 7.2 प्रतिशत से घटाकर 6.6 प्रतिशत कर दिया है। आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष में खुदरा महंगाई के अनुमान को भी 4.5 प्रतिशत बढ़ाकर 4.8 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। 

रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर शक्तिकांत दास ने दिसंबर 2024 की मौद्रिक नीति के निर्णय के परिप्रेक्ष्य में कहा था कि निकट भविष्य में, कुछ नरमी के बावजूद, खाद्य कीमतों पर दबाव बने रहने से चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में मुख्य महंगाई के ऊंचे स्तर पर बने रहने की संभावना है। उन्होंने कहा था कि महंगाई के मद्देनजर वैश्विक अर्थव्यवस्था में अभी बांड प्रतिफल में वृद्धि, जिन्स कीमतों में उतार-चढ़ाव और बढ़ते भू-राजनीतिक जोखिम जैसी कई तरह की बाधाएं हैं। साथ ही आयात शुल्क में वृद्धि और वैश्विक कीमतों में वृद्धि के बाद घरेलू खाद्य तेल की कीमतों की बदलती दिशा पर बारीकी से नजर रखने की जरूरत है। 

दास ने कहा था कि रिकॉर्ड खरीफ उत्पादन के अनुमान से चावल और तुअर दाल की बढ़ी हुई कीमतों में राहत मिलेगी। सब्जियों की कीमतों में भी सुधार की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि आगे चलकर, खाद्य मुद्रास्फीति के दबाव को कम करने के लिए एक अच्छा रबी सीजन महत्वपूर्ण होगा। प्रारंभिक संकेत पर्याप्त मिट्टी की नमी और जलाशय के स्तर की ओर इशारा करते हैं, जो रबी की बुवाई के लिए अनुकूल है। ऐसे में चालू वित्त वर्ष 2024-25 की चौथी तिमाही में विकास दर बढऩे की उम्मीद है। नि:संदेह आरबीआई के द्वारा मौद्रिक नीति समीक्षा के तहत महंगाई नियंत्रण को सर्वोच्च प्राथमिकता दिया जाना सही कदम है।

वस्तुत: पिछले दो महीनों अक्टूबर-नवंबर 2024 में महंगाई दर के बढऩे की स्थिति आश्चर्यचकित करने वाली रही है। 

पिछले माह आरबीआई ने 2 से 11 नवंबर, 2024 को परिवारों को महंगाई को लेकर कैसी उम्मीदें हैं, इस विषय पर सर्वेक्षण कराया था। आरबीआई के सर्वेक्षण से यह अंदाजा मिलता है कि सितंबर 2024 के चरण की तुलना में नवंबर के सर्वेक्षण में शामिल प्रतिभागियों में एक बड़े वर्ग को ऐसा लगता है कि नए साल 2025 में कीमतें और महंगाई दोनों ही बढ़ेंगी। यह बढ़ोतरी मुख्य तौर पर खाद्य वस्तुओं और घर से जुड़े खर्चों के बढ़ते दबाव की वजह से होगी। 

इस बीच उपभोक्ता आत्मविश्वास सर्वेक्षण से यह अंदाजा मिला है कि सर्वेक्षण के प्रतिभागियों की मौजूदा कमाई की धारणा में भले ही कमी आई हो, लेकिन उन्हें इस बात की बड़ी उम्मीद है कि भविष्य में आमदनी बढ़ेगी, रोजगार की स्थिति में भी सुधार आएगा। परिवारों को ऐसा लगता है कि एक साल की अवधि के दौरान बेहद जरूरी और गैर-जरूरी खर्च बढ़ेंगे। हालांकि उन्होंने आगे के वर्ष के लिए कीमतों को छोडक़र प्रमुख आर्थिक मापदंड के लिए अधिक आशावादी होने के संकेत दिए हैं। 

यहां यह उल्लेखनीय है कि पिछले माह 15 नवंबर को वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने अपनी रिपोर्ट में भारत में महंगाई और विकास के बीच संतुलन बनाए रखने की सराहना की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि महंगाई में कम अवधि की तेजी के बावजूद आने वाले महीनों में महंगाई दर रिजर्व बैंक के द्वारा निर्धारित लक्ष्य की ओर पहुंचेगी, क्योंकि ज्यादा बोआई और पर्याप्त अनाज भंडार के कारण कीमतों में कमी आएगी। 

चूंकि भू-राजनीतिक तनावों और मौसम की स्थिति खराब होने पर महंगाई दर बढऩे का जोखिम भी बना हुआ है, अतएव इसी कारण नीतिगत ढील को लेकर रिजर्व बैंक सावधानी बरत रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में महंगाई के बीच भी अर्थव्यवस्था अच्छे दौर में है। रेटिंग एजेंसी ने वर्ष 2024 में भारत की वृद्धि दर 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। उसके बाद 2025 और 2026 में क्रमश: 6.6 प्रतिशत और 6.5 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान है।

इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि इस समय जब खाद्य पदार्थों की तेजी से बढ़ती महंगाई के नियंत्रण और विकास की जरूरतों के बीच उपयुक्त तालमेल किया जा रहा है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के द्वारा 12 नवंबर को प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर 2024 में खुदरा महंगाई दर बढक़र 6.21 प्रतिशत हो गई। यह महंगाई का 14 महीने का उच्चतम स्तर है। 

इससे पिछले महीने सितंबर में खुदरा महंगाई दर 5.49 प्रतिशत दर्ज की गई थी तथा अगस्त में 3.65 प्रतिशत थी। नि:संदेह खाद्य पदार्थों की महंगाई रोकने के लिए सरकार के द्वारा तात्कालिक उपायों के साथ दीर्घकालीन उपायों पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी होगा। इस समय ग्रामीण भारत में जल्द खराब होने वाले ऐसे कृषि उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला बेहतर करने पर प्राथमिकता से काम करना होगा, जिनकी खाद्य महंगाई के उतार-चढ़ाव में ज्यादा भूमिका होती है। ऐसे में सरकार को खाद्य उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ कृषि उपज की बर्बादी को रोकने के बहुआयामी प्रयासों के तहत खाद्य भंडारण और वेयरहाउसिंग की कारगर व्यवस्था की डगर पर बढऩा होगा।