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 देश को ज़रूरत है पारिवारिक चिकित्सकों की

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Wed , 22 Feb

सार

सामान्य चिकित्सक वाली व्यवस्था यूके की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा में रीढ़ की हड्डी है, जो स्थानीय निवासियों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा मुहैया करवाती है..!

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विस्तार

भारत में पहले वैदध्य एक पारिवारिक चिकित्सा  स्वास्थ्य व्यवस्था का अभिन्न अंग होता था, अब यह स्थान विभिन्न पद्धतियों में पारंगत चिकित्सकों ने ले लिया है । पश्चिमी देशों में, पारिवारिक चिकित्सक को आज भी स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। सामान्य चिकित्सक वाली व्यवस्था यूके की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा में रीढ़ की हड्डी है, जो स्थानीय निवासियों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा मुहैया करवाती है।

भारत में मेडिकल शिक्षा प्राप्त निकले स्नातक शहरों में पारिवारिक चिकित्सकों की भूमिका में हुआ करते थे तो गांवों में यही काम रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर का था। मेडिकल जगत में बहुत ज्यादा तरक्की होने के कारण अब किसी पारिवारिक चिकित्सक के पास केवल एमबीबीएस की डिग्री होना माकूल स्वास्थ्य सेवा देने में काफी नहीं माना जाता। इसलिए मरीज अब मामूली बीमारी में भी ज्यादातर विशेषज्ञ डाक्टरों का रुख करते हैं।

विशेषज्ञ डॉक्टर की महारत किसी खास विधा या बीमारी में होती है, लेकिन वे अतिरिक्त बीमारियों को संभाल नहीं पाते। मसलन, या तो वे समस्या को समग्रता के परिप्रेक्ष्य में समझ नहीं पाते या फिर वे मरीज को आगे किसी अन्य विशेषज्ञ के पास भेज देते हैं, लिहाजा इलाज में खर्च बढ़ोतरी हो जाती है।

आज देश को उच्च शिक्षित, उच्च कौशलयुक्त किंतु सामान्य अथवा पारिवारिक चिकित्सकों की है , जो फौरी प्राथमिक और यहां तक कि कुछ माध्यमिक स्वास्थ्य जरूरतों में अपने स्तर पर इलाज करने में सक्षम हों। पारिवारिक चिकित्सक से अपेक्षा है कि उसके पास विभिन्न रोगों की समझ हो ताकि हरेक उम्र और बीमारी के मरीज को बृहद स्वास्थ्य देखभाल दे पाए। जरूरत पड़ने पर वह मरीज को संबंधित विशेषज्ञ के पास भेज सकता है।युक्तम स्वास्थ्य देखभाल देने के आलोक में, यथेष्ट मानव-बल और बुनियादी ढांचा का होना जरूरी है। सालों तक, सरकार और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया दोनों ने अधिक संख्या में मेडिकल कॉलेज सुनिश्चित करने को कदम उठाए हैं। अब मेडिकल कालेजों संख्या 700 से अधिक हो गई है, और यह सब मिलकर हर साल एमबीबीएस कोर्स में 1 लाख से अधिक सीटों पर दाखिले की क्षमता रखते हैं। स्नातकोत्तर सीटों की संख्या भी बढ़कर लगभग 70,000 हो गई है।

हालांकि, विभिन्न विशेषज्ञ कोर्स में भी सीटों की गिनती बढ़ी है लेकिन एमडी (फैमिली मेडिसिन) कोर्स में सीटें बढ़ाने की कोई कोशिश नहीं की गई। प्रभावशाली वैश्विक स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवाने में पारिवारिक व सामान्य चिकित्सक वर्ग की भूमिका बहुत अहम है, जिससे कि सामान्य किस्म की बीमारी के इलाज के लिए विशेषज्ञों पर बेजा बोझ न पड़े। इसके अलावा, पारिवारिक चिकित्सक जरूरत पड़ने पर विशेषज्ञों के साथ तालमेल बनाकर अपने स्तर पर इलाज कर सकता है।

पारिवारिक चिकित्सक विधा (एमडी फैमिली मेडिसिन) में स्नातकोत्तर डिग्री होने की जरूरत का अहसास एमसीआई और नेशनल बोर्ड ऑफ एग्ज़ामिनेशन को सालों पहले हो गया था लेकिन दुर्भाग्यवश, इस मामले पर आगे काम नहीं हुआ। यह साल 2021 था जब एमसीआई ने मेडिकल कॉलेजों को फैमिली मेडिसिन विधा में एमडी कोर्स शुरू करने की अनुमति दी। इससे पहले एनबीई ने कुछ अस्पतालों में यह कोर्स चलाने का अनुमोदन कर दिया था। वर्ष 2011-22 के बीच एमसीआई बोर्ड ने इस मुद्दे पर विचार किया और एक सटीक पाठ्यक्रम तैयार करवाया और फैमिली मेडिसिन के लिए आवश्यक न्यूनतम मानकों को तय किया।

इसकी जानकारी सरकार को दे दी गई। यह सोचा गया कि पहले पहल मेडिसिन विभाग के अध्यापक बतौर समन्वयक पढ़ाई करवाएंगे और एमडी (फैमिली) रेज़िडेंट्स को पढ़ाने में अन्य संबंधित विधाओं के शिक्षकों को भी शामिल किया जाएगा ताकि शुरुआती दौर में अलग से विभाग बनाने की जरूरत न पड़े। यह भी सलाह दी गई कि एक विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम व पाठ्यक्रम उन एमबीबीएस डॉक्टरों के लिए हो, जो पांच साल से लगातार इलाज कर रहे हैं जिससे प्रशिक्षण अवधि में अमूमन दो साल बच पाएंगे। ऐसा होने पर, न केवल समाज में उनकी प्रतिष्ठा बढ़ जाती बल्कि पारिवारिक या सामान्य चिकित्सक रहते हुए, नया कौशल सीखकर उन्हें और अधिक प्रभावशाली इलाज करने की काबिलियत मिल जाती।

अब प्रभावशाली फैमिली मेडिसिन फिज़िशियन बनाने हेतु पाठ्यक्रम और न्यूनतम मानक तय करने पर पुनर्विचार करना चाहिए। अहम यह कि नियामकों को सुनिश्चित करना होगा कि फैमिली मेडिसिन में पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री हासिल करने वाले को डीएम (डॉक्टरेट ऑफ मेडिसिन) कोर्स करने में दाखिले की योग्यता खुद-ब-खुद मान्य न होने पाए। अन्यथा, यह प्रावधान एमडी (मेडिसिन) उत्तीर्ण न करने वालों के लिए पिछला रास्ता बन जाएगा क्योंकि एमडी (मेडिसिन) और एमडी (फैमिली मेडिसिन) दो अलग विधाएं हैं और इनका पाठ्यक्रम भी नितांत अहलदा है। इसलिए एमडी (फैमिली मेडिसिन) करने वाले डीएम कोर्स के लिए जरूरी योग्यता मानकों को पूरा नहीं करते।फैमिली मेडिसिन की पढ़ाई चुनने के लिए स्नातकों को प्रोत्साहित करने में यह कदम उठाना बहुत जरूरी है।