आज की सामाजिक आर्थिक व्यवस्था में विकास अवहनीय अनियोजित हो गया है उसी उस अनियोजित विकास के कारण उत्पन्न जहरीले रसायनों का डिस्पोजल भी आवहनीय और अनियोजित रूप से पुलिस के घेरे में किया जा रहा है..!!
इंदौर मेरी जन्मस्थली है 40 वर्ष पूर्व इंदौर से मै भोपाल गैस पीड़ितों हेतु काम करने के लिए भोपाल आई थी। जिस मालवा की रात को शबे रात के रूप में जाना जाता था आज सुबह उसकी सबसे काली सुबह हुई है। जहरीला कचरा डिस्पोजल के नाम पर मालवा के पर्यावरण को अत्यंत जहरीला करने की शुरुआत हो चुकी है। जनता के पीने का पानी जहरीला होने पर संभावित जनविरोध को दबाने के लिए पीथमपुर फिर पुलिस छावनी में तब्दील हो चुका है।
आज की सामाजिक आर्थिक व्यवस्था में विकास अवहनीय अनियोजित हो गया है उसी उस अनियोजित विकास के कारण उत्पन्न जहरीले रसायनों का डिस्पोजल भी आवहनीय और अनियोजित रूप से पुलिस के घेरे में किया जा रहा है।
कल सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल के जहरीले कचरे के निपटान के नाम पर पीथमपुर के पर्यावरण को जहरीला बनाने के विरोध की याचिकाओं को हाईकोर्ट जाने के लिए कहा है। यह तब हुआ जबकि हाईकोर्ट ने पूर्व में ही याचिकाओं को सरकार के पाले में डाल चुका है।
सरकार और कोर्ट के बीच थपेड़े खा रही जनता के जल जीवन के मुद्दे का हाइकोर्ट को संज्ञान लेकर उसके जीवन के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।
पीथमपुर में लाया गया यह कोई साधारण जहरीला कचरा नहीं है बल्कि इस सदी की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी अमेरिकी।कंपनी यूनियन कार्बाइड का अत्यंत जहरीला कचरा है।
इस अत्यंत जहरीले कचरे में पारा, आर्सेनिक जैसे भारी धातु और दासियों ज्ञात और अज्ञात घातक रसायन शामिल है। भोपाल का जहरीला कचरा कई ज्ञात और अज्ञात रसायनों का मिश्रण है। प्रत्येक केमिकल की निपटान प्रक्रिया भिन्न है किसी घातक जहरीले रसायनों के मिश्रण का सुरक्षित निपटान लगभग असंभव है।
सरकार एवं सीपीसीबी को यह स्पष्ट करना चाहिए कि 2010 की सरकारी रिपोर्ट के अनुसार भोपाल के यूसीआयएल।प्लांट में खुले।में एक टन मर्करी के अलावा 11 लाख टन जहरीला कचरा जो रिसाव द्वारा अब तक 25 लाख टन से ऊपर होने की संभावना है को भी पीथमपुर में ही जलाया जाएगा ?
यदि ऐसा नहीं।उस स्थिति में भोपाल का केवल 350 टन जहरीला कचरा पीथमपुर में जलाने का औचित्य क्या है ?
पीथमपुर और मालवा की जनता के भारी विरोध के बावजूद केंद्र में सत्ता के करीब रामकी एनवायरो के ट्रीटमेंट एंड डिस्पोजल फैसिलिटी TSDF में 2010 से अत्यंत जहरीले कचरे के लगातार ट्रायल पर ट्रायल किए जा रहे है। पूर्व में जहरीले कचरे के कई ट्रायल फेल हो चुके हैं। 10, 10 टन के इन कई ट्रायल से ही क्षेत्र का कुओं आदि का भूगर्भीय जल विषाक्त हो चुका है जो पीने के नहीं नहाने आदि के योग्य भी नहीं है।
रामकी कंपनी के पास एक बड़े क्षेत्र की कृषि भूमि बंजर हो चुकी है और वहां के किसान अन्य स्थानों पर मजदूरी कर रहे है। एक संस्था द्वारा2025 में क्षेत्र के पानी की जांच में पानी में भोपाल के जहरीले रसायन ट्रायक्लोरोबेंजीन व डॉक्लोरोबेंजीन आदि पाये गये हैं। केवल 10 टन कचरे का ये दुष्परिणाम है तब 337 टन जहरीले कचरे का क्या परिणाम होगा। यह विचार करने योग्य है।
सरकार व अदालत द्वारा 2015 के ट्रायल को सफल बताया गया है परंतु रसायन वैज्ञानिकों द्वारा सीपीसीबी की ट्रायल की पद्धति पर ही गंभीर सवाल उठाये है। इंसीनेटर द्वारा जहरीला कचरा जलाना अपने आप में ही पुरानी और आउटडेटेड पद्धति है। कई वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार
दुनिया में जहां कचरा जलाने हेतु इंसीनेटर लगे है वह पर कैंसर का प्रमाण कई गुना बढ़ा हुआ पाया गया है।
अमेरिकी एजेंसी FPA द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार जहरीले कचरे के अवशेष लैंडफिल।में डालना पर्यावरण के लिए किसी भी प्रकार से सुरक्षित नहीं है जहरीला कचरा निष्पादन के बाद लैंडफिल में डाले गए अवशेष का सीपेज अवश्यंभावी है इससे पर्यावरण को स्थाई नुकसान होगा।
हाइकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट द्वारा जहरीला कचरा जलाने हेतु आधार मानी गई
पीथमपुर TSDF में भोपाल वेस्ट डिस्पोजल की पूरी प्रक्रिया सीपीसीबी की 2013 एवं 2015 की रिपोर्ट पर आधारित है वैज्ञानिकों के अनुसार इन सीपीसीबी रिपोर्ट में बहुत सारे महत्वपूर्ण गैप्स है कचरा निष्पादन में अवहनीय अनसस्टेनेबल प्रक्रिया अपनाई गई है तथा कचरा निष्पादन की सीपीसीबी की रिपोर्ट में अति महत्वपूर्ण तथ्यों को उजागर नहीं किया गया है।
सीपीसीबी की 2015 की रिपोर्ट के अनुसार भोपाल के 350 मीट्रिक टन जहरीले कचरे के विभिन्न घटकों में में न्यूरो टॉक्सिन या दिमाग को प्रभावितं करने वाली मर्करी या पारे बहुत अधिक मात्रा पाई गई है जिसके सुरक्षित निष्पादन की तकनीक हमारे देश में उपलब्ध नहीं है। भोपाल के जहरीले कचरे में पारे की मात्रा सामान्य या बेस वैल्यू से करीब 700 से 900 गुना अधिक है। भोपाल के कचरे में एलिमेंटल मर्करी इन एक्सवेटेड वेस्ट या मिट्टी (152 to754mg/kg) सामान्य से 700 गुना से ज्यादा सेमी प्रोसेस्ड रेसीड्यू (162.02 to 904mg /kg) सामान्य से 900 गुना, रिएक्टर रेसीडीयू (261 to 615 mg/ kg) सामान्य से करीब 600गुना, नेपथोल रेसिडियू 151.68 to201mg/kg सेविन 2 रेसीड्यू 41.66 to45.22mg/ kg जहरीली कचरा निपटान परअंतरराष्ट्रीय बेसल।
मीनामाता और स्टॉकहोम कन्वेंशन ऊंची मात्रा में पारा मर्करी आदि हैवी मेटल और POP ( परसिस्टेंट ऑर्गेनिक ) उत्पन्न करने वाले ऊंची मात्रा वाले प्रदूषकों को जलाने की अनुमति नहीं देता है। भारत के इन सब कन्वेंशन में हस्ताक्षर कर्ता होने के बावजूद सीपीसीबी इन पर अमल नहीं कर रहा है।
2015 की रिपोर्ट में पारे को डिस्पोज करने की प्रक्रिया और डिस्पोजल में पारे की मात्रा का उल्लेख भी नहीं है। पारे व अन्य हैवी मेटल के फिल्टर की क्वालिटी, फिल्टर के डिस्पोजल एवं लैंडफिल के निर्माण का विवरण भी नहीं दिया गया है।
2015 की सीपीसीबी रिपोर्ट में डिस्पोजल् के बाद तल की भस्म की रिपोर्ट भी नहीं दी गई है। 2015 की सीपीसीबी रिपोर्ट के अनुसार ट्रायल के दौरान पीथमपुर TSDF में बड़े पर्यावरण प्रदूषक सल्फर का बड़ी मात्रा में उपयोग करना जो कि विभिन्न प्रक्रियाओं गुजरकर से लैंड फिल में ही जायेगा पर्यावरण के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ है।
2015 की सीपीसीबी रिपोर्ट में डाइऑक्सिन एवं फ्यूरन के कितने सैंपल लेकर किस लैब में टेस्ट कराया यह नहीं बताया गया है।ज्ञात हो कि वर्ष 2015 में 1200 डिग्री पर जहरीला कचरा जलाने के बाद भी कुल कचरे में से 12.45% ही जला है इसका अर्थ है कि बाकी जहरीला कचरा अनजला ही लैंडफिल में डाला गया है जो कि बहुत खतरनाक है। लैंडफिल में जहरीले त कचरे के अवशेष की जांच भी नहीं की गई की वो कचरा लैंडफिल में डालने के योग्य था भी या नहीं !
सुप्रीमकोर्ट एवं हाईकोर्ट द्वारा आधार माने गए 2015 के ट्रायल के दौरान 10 टन कचरे के लिए 8000 लीटर डीजल का उपयोग किया गया जबकि 337 टन भोपाल के कचरे के लिए लाखों टन डीजल की जरूरत होगी। डीजल फ्यूम प्रदूषण फैलाने के साथ जहरीले कचरे के सभी निष्कर्षों।को प्रभावित करेगा। पीथमपुर TSDF में भोपाल के कचरा निपटन की यह पूरी प्रक्रिया मालवा क्षेत्र के पर्यावरण में घातक रसायनों के प्रदूषण को कई गुना बढ़ा देगी।