एक गंभीर आपराधिक घटना के बाद किशोर न्याय बोर्ड द्वारा किशोर को मामूली परामर्श के बाद छोड़ना भी विवाद का विषय बना है..!
एक घटना - पुणे में अमीर बाप के बिगड़ैल अल्पवयस्क बेटे ने शराब के नशे में दो युवा इंजीनियरों को रौंदने के बाद जिस तरह आनन-फानन में जमानत हासिल की, उसने तमाम सवालों को भी जन्म दिया है । दुर्घटना की त्रासदी,इन सवालों की जड़ में न्यायिक विवेक भी आ गया है।
दुस्साहस देखिये कि दो करोड़ रुपये से अधिक महंगी विदेशी कार को सड़क पर यह किशोर दो सौ किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ा रहा था। उस धनी बाप के नशेड़ी बेटे को पुणे की सड़कों में रोकने वाला कोई नहीं था। उसने कई जगह दोस्तों के साथ शराब पार्टियां निबटाने के बाद अपनी पोर्श कार को इतनी अनियंत्रित गति से दौड़ाया कि मोटरसाइकिल सवार दो इंजीनियरों को मौत की नींद सुला दिया। संयोग से दोनों इंजीनियर मध्यप्रदेश के ही थे।
इस मामले में सोशल मीडिया पर आक्रोश का लावा तब फूटा जब 17 साल कुछ महीनों की उम्र वाले अभियुक्त को किशोर होने के नाते कुछ ही घंटों में जमानत दे दी गई। दो परिवारों के उम्मीदों के चिराग बुझ गए और किशोर न्यायालय ने अभियुक्त को कुछ निर्देश देकर ही छोड़ दिया ।
यह विषय रोष का विषय बना रहा है कि किशोर न्याय बोर्ड ने जमानत देते वक्त उसे महज दुर्घटना पर निबंध लिखने, 15 दिन तक ट्रैफिक पुलिस के साथ काम करने तथा मनोचिकित्सक से शराब की लत का इलाज कराने को कहा। इन शर्तों को सुनकर सोशल मीडिया पर गंभीर अपराधों में लिप्त किशोरों को वयस्कों की तरह दंड देने की मांग तेज हुई। फिर जब इस मामले में राजनीतिक प्रतिक्रिया तेज हुई तो अभियुक्त किशोर के अरबपति बिल्डर पिता और नाबालिगों को शराब परोसने वाले होटल के अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया।
सामाजिक जागरूकता की पहल रंग लायी और चुनावी माहौल में तुरत-फुरत कार्रवाई हुई। मुख्यमंत्री व उप मुख्यमंत्री की सख्त कार्रवाई के निर्देश से लोगों में सकारात्मक संदेश गया। साथ ही पीड़ित पक्ष में भी विश्वास जगा कि कानून काम करता है चाहे आरोपी कितना भी ताकतवर क्यों न हो। निस्संदेह, ऐसे मामलों में अभियुक्तों के साथ शून्य सहिष्णुता का संदेश जाना ही चाहिए।
इस घातक दुर्घटना के बाद सार्वजनिक विमर्श में यह सवाल फिर उठा कि गंभीर अपराधों में किशोरों की संलिप्तता होने पर वयस्कों के कानून के हिसाब से उन्हें सजा क्यों नहीं मिलती? सवाल यह है कि धनाढ्य बिल्डर ने क्यों किशोर पुत्र को बिना लाइसेंस के कार चलाने की अनुमति दी? क्यों बेटे को शराब पार्टी करने की इजाजत दी? क्यों होटल वालों ने किशोरों को शराब पीने की सुविधा दी? जब किशोर ने बार-बार जानबूझकर तमाम कानूनों का उल्लंघन किया तो उसे सामान्य कानून के तहत दंडित क्यों नहीं किया जाना चाहिए?
इसके बाद नये सिरे से किशोर न्याय अधिनियम में सुधार की बहस तेज हुई है । एक गंभीर आपराधिक घटना के बाद किशोर न्याय बोर्ड द्वारा किशोर को मामूली परामर्श के बाद छोड़ना भी विवाद का विषय बना है ।
सामाजिक व राजनीतिक दबाव के बाद पुणे पुलिस द्वारा की गई तुरंत कार्रवाई समय की जरूरत थी। जो कालांतर भविष्य में ऐसी त्रासदियों को टालने में मददगार हो सकती है। अपराध के अनुपात में दंड का निर्धारण किया जाना चाहिए।
देश के विभिन्न भागों में भी किशोरों द्वारा तेज रफ्तार वाहन चलाने के तमाम मामले प्रकाश में आते रहते हैं, जिसमें खतरनाक ड्राइविंग के चलते कई किशोरों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। ये घटनाएं यातायात कानूनों को सख्ती से लागू करने और किशोर अपराधियों को दंडित करने के लिये कानूनी ढांचे की समीक्षा की आवश्यकता पर बल देती हैं। निस्संदेह, देश की न्यायिक प्रणाली को इस तरह के मामलों में उचित प्रतिक्रिया देनी चाहिए।
सही मायनों में अपराधी की उम्र की परवाह किये बिना ऐसे घातक कृत्यों में कड़े दंड के जरिये मिसाल कायम की जानी चाहिए। इससे जहां जनता का विश्वास बहाल होगा,वहीं हमारी सड़कों पर किशोरों की लापरवाह ड्राइविंग से होने वाली मौतों को भी रोका जा सकेगा। निश्चित रूप से इससे दुर्घटनाओं में मारे लोगों के परिजनों को भी न्याय मिल सकेगा।