75 वां गणतंत्र दिवस 31 जनवरी को हो जाएगा पूर्ण, कहने को बहुत कुछ मिला तो पाने को बहुत कुछ बाकी..!!
हमारे देश भारत का 75 वां गणतंत्र दिवस पर्व कल यानी 31 जनवरी को पूर्ण हो जाएगा। भले ही हम गणतंत्र के कई लक्ष्य हासिल न कर पाये हों, लेकिन फिर भी हमारी उपलब्धियां गर्व करने लायक तो है ही।
पाताल से आकाश तक उपलब्धियां गगनभेदी हैं। हमने चांद पर एक दुर्लभ अभियान को सफल बनाकर दुनिया को चौंकाया है। आदित्य मिशन सूरज से बात कर रहा है। अंतरिक्ष में हमारा उपग्रह आकाशगंगा के रहस्यों की गुत्थी सुलझाने में लगा है। कहने को बहुत कुछ मिला है तो पाने को बहुत कुछ बाकी है। वैसे किसी गणतंत्र में गण पर तंत्र का हावी होना हम सबकी चिंता का विषय होनी चाहिए।
यह सत्य है कि इस गणतंत्र को दुनिया का खूबसूरत जनतंत्र बनाने में हम चुके हैं। यह हमारे लिये भी यह मंथन का समय है कि देश का गण कितना जागरूक रहा अपने लोकतांत्रिक अधिकारों में से क्या कुछ हासिल किया। हमने मौलिक अधिकार तो चाहे, लेकिन मौलिक कर्तव्यों की जिम्मेदारी कितने लोगों ने निभायी? विश्वास तो हमारे नीति-नियंताओं ने भी खोया है।
जनता उनकी बातों पर विश्वास करने से बचती आई है। तभी तो नेता वायदों का भरोसा खोने के बाद मुफ्त की रेवड़ियों और गारंटियों की बात करने लगे हैं। उन्हें लगने लगा है कि ‘वायदा’ शब्द अपने अर्थ खो चुका है। अब सवाल गण के लिये भी है कि मुफ्त की गारंटियों का फैशन क्यों जोर-शोर से चल रहा है। कभी दक्षिण भारत से महिला वोटरों को लुभाने के लिये साड़ी-मिक्सी देने, सस्ता गेहूं चावल देने की खबरें आती हैं। अब तो यह सारे देश का फैशन हो चला है। फ्री पानी और फ्री बिजली मतदाताओं के वोट देने न देने के निर्णय को तय करते हैं तो यह स्वस्थ गणतंत्र का लक्षण तो कतई नहीं है।
जिन राज्यों सरकारों ने विकास के दूरगामी लक्ष्यों से हटकर तात्कालिक लाभ देने की नीतियां बनायी वे आज बीमारू राज्यों की लाइन में शामिल हो रहे हैं। हम नहीं सोचते कि कुदरत के अलावा हमें जो कोई कुछ मुफ्त देता है, उसकी हमें बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। लालच देकर कमजोर नेता हम पर शासन करने लायक बन जाते हैं।
वैसे भी फ्री का माल तो देश के ईमानदार करदाताओं के आयकर से जाता है, जिनकी तनख्वाह आयकर विभाग के सामने हरदम एक खुली किताब है। कारोबारी लोग तो आयकर से बचने के सौ रास्ते निकाल लेते हैं। सीए संस्कृति उन्हें आयकर से बचने के हजार तरीके सिखाती है। अगर देश में सब लोग ईमानदारी से अपनी आय पर कर देने लगें तो देश की गरीबी निश्चय ही दूर हो जाए। आज सड़कों पर नयी कारों के सैलाब हैं, प्रापर्टी खरीद में बूम हैं और शेयर बाजार कुलांचे भर रहा है, लेकिन आयकर दाता उस अनुपात में नहीं बढ़ रहे हैं?
पिछले दिनों करोड़ों लोगों के गरीबी की रेखा से बाहर होने के दावे आये। सवाल यह है कि जब करोड़ों लोगों को गरीबी के दलदल से बाहर निकाला गया है तो आज देश के अस्सी करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज क्यों देना पड़ रहा है? कोरोना काल में तो मुफ्त अनाज बांटना समझ में आता है, तब महामारी ने करोडों लोगों का रोजगार छीन लिया था। लोग दाने-दाने को मोहताज थे। करोड़ों लोग अपनी जमीन से उखड़े थे। सरकारें आत्मनिर्भर बनाने की योजनाएं लायें ताकि लोग रोजगार पा सकें, अपने काम-धंधे शुरू कर सकें और आर्थिक विकास में भी योगदान दे सकें।
बेरोजगारी इस समय का बड़ा संकट है। युवा विदेश जाने की होड़ में लगे हैं। अब तो सरकारें युवाओं को विदेश भेजने के लिये खुद प्रोत्साहित करने लगी हैं। पंजाब में यह संकट बड़ा है। पर्याप्त योग्यता न होते हुए भी विदेश जाने की धुन सवार है। हमारे बच्चे दलालों की दलदल में फंसकर अपना पैसा भी गंवा रहे हैं। कौशल विकास में दक्ष लोगों का विदेश जाना समझ में आता है, लेकिन आधुनिक शिक्षा और तकनीकी ज्ञान के बिना विदेश में कहां से अच्छे रोजगार मिलेंगे। सारी दुनिया जानती है कि इस्राइल व हमास युद्ध के कारण वहां हर आदमी जान हथेली पर लेकर चल रहा है।
रोज सैकड़ों लोगों के मरने की खबरें आ रही हैं। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति देखिए कि ऐसे हालात में भयानक जोखिम उठाते हुए हमारे बच्चे इस्राइल आदि देशों में नौकरी करने के लिये जा रहे हैं। यह जानते हुए भी कि जीवन पर बड़ा संकट आ सकता है। इस्राइल में हमास, हिजबुल्ला व ईरान समर्थक हूती विद्रोही हर समय हमले कर रहे हैं। दुख होता है जब चतुर्थ श्रेणी के पद के लिये पीएचडी, एम.ए. और अन्य उच्च शिक्षित युवक आवेदन करते हैं।
पिछले दिनों देश राममय हुआ। निस्संदेह, राजनीतिक दलों की महत्वाकांक्षा और एजेंडे को अलग रख दें, तो राम मंदिर भारतीय अस्मिता का पर्याय रहा है। पांच सदियों की कसक को पूरा होते देख एक उत्साह का संचार होना लाजिमी था। यह हमारे लिये धैर्य व संयम का समय है। इसे किसी की हार या जीत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। यह भारतीय गणतंत्र की खूबसूरती ही है कि सदियों पुराने जन्मभूमि के विवाद को हमने न्यायालय के जरिये सुलझा लिया। सभी पक्षों ने न्यायालय के फैसले का सम्मान किया। वहां आज राम मंदिर आकार ले चुका है। मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है। अब हमें आगे भविष्य की ओर देखना है।