• India
  • Fri , Oct , 25 , 2024
  • Last Update 12:48:AM
  • 29℃ Bhopal, India

प्रस्ताव की खुशी परिणाम का गम

सार

इन्वेस्टर्स समिट में मिल रहे निवेश प्रस्ताव मध्य प्रदेश को खुशियों का खजाना दिखा रहे हैं. हर राज्य, हर सरकार, हर मुख्यमंत्री की इन्वेस्टर्स समिट प्राथमिकता होती है.ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट से प्रारंभ यह आयोजन रीजनल समिट तक पहुंच गया है..!!

janmat

विस्तार

    पहले तो साल में एक ही समिट हुआ करती थी. अब तो दस महीने के कार्यकाल में ही पांच रीजनल समिट प्रदेश में हो चुकी हैं. इसी समय में मुंबई, कोयंबटूर, बैंगलोर और कोलकाता में निवेश अवसरों पर इंटरएक्टिव सत्र भी हो चुके हैं.हर आयोजन में राज्य के मुख्यमंत्री शामिल रहे हैं. 

    मध्य प्रदेश में इंडस्ट्रियल विकास के पाथेय मोहन पर निवेशकों का सम्मोहन दिखाई पड़ रहा है. कहां साल में एक इन्वेस्टर्स समिट और कहां दस महीने में पांच रीजनल समिट हो गई हैं. फरवरी में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का भी ऐलान हो गया है. इन्वेस्टर्स समिट में ग्लोबल और रीजनल का नाम का ही अंतर हो सकता है. बाकी उद्योगपति तो एक समान ही होते हैं.

    निवेश प्रस्ताव को अगर उपलब्धि के रूप में देखा जाए, तो मध्य प्रदेश भारत का सबसे अग्रणी राज्य होगा. इन्वेस्टर्स समिट के आयोजन में मध्य प्रदेश, गुजरात से भी आगे दिखाई पड़ेगा, जबकि इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट के मामले में देश में गुजरात का कोई मुकाबला अब तक तो नहीं हो सका है.

    मध्य प्रदेश में इन्वेस्टर समिट की शुरुआत दिग्विजय सिंह के कार्यकाल से हुई थी. पहली समिट खजुराहो में आयोजित की गई थी. उसके बाद शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में, तो हर साल ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन होता रहा है.

    हर समिट के बाद सरकारी प्रेस नोट में, इस समिट में मिले निवेश प्रस्तावों का बखान किया जाता है. मोटे अनुमान के अनुसार शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री कार्यकाल में ही संपन्न इन्वेस्टर्स समिट में तीस लाख करोड़ से ज्यादा के निवेश प्रस्ताव मिले होंगे. 

    डॉ. मोहन यादव की सरकार में अब तक जो इन्वेस्टर्स समिट हुई हैं, उसके जो आंकड़े सामने आए हैं उसके अनुसार ढाई लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं. लगभग यही एवरेज शिवराज के कार्यकाल में भी हर साल निवेश प्रस्तावों का रहा है.

    मध्य प्रदेश निवेश प्रस्तावों की उपलब्धियों पर खुशी मनाए या परिणाम पर गम का इजहार करे यह बहुत दुविधा है. सरकारें निवेश प्रस्तावों की तो, पूरी ताकत से मुनादी करती हैं, लेकिन उन प्रस्तावों के परिणाम पर छुटपुट पटाखेबाजी के अलावा कुछ भी नहीं बतातीं.

    इन्वेस्टर्स समिट के आयोजन पब्लिसिटी और हॉस्पिटैलिटी पर जो जन-धन व्यय हुआ होगा, उसे पर भी सियासी आरोप-प्रत्यारोप लगते हैं. मध्य प्रदेश में इंडस्ट्रियल विकास की सभी संभावनाएं मौजूद हैं. राजनीतिक दृढ़ इच्छाशक्ति भी देखी जा सकती है, लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात ही दिखाई पड़ते हैं.

    पूंजी निवेशक का पहला टारगेट प्रॉफिट है. प्रॉफिट के लिए लागत कम होना चाहिए. गवर्नेंस इंडस्ट्रियल फ्रेंडली होना चाहिए. मध्य प्रदेश में ब्यूरोक्रेटिक गवर्नेंस इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट को भी सामान्य प्रक्रिया के अंतर्गत ही लेता है.

    इस संबंध में एक उद्योगपति से चर्चा के दौरान यह बताया गया, कि गुजरात में जब भी कोई निवेशक अपना प्रस्ताव देता है, तो उस प्रस्ताव के लिए सरकारी स्तर पर एक नोडल अधिकारी सुनिश्चित कर दिया जाता है. उस निवेशक को भविष्य में सरकार के अलग-अलग विभागों में संपर्क करने की आवश्यकता नहीं होती. नोडल अधिकारी ही सारी सरकारी मंजूरी दिलाने का काम करता है. मध्य प्रदेश में तो ऐसा दिखाई नहीं पड़ता है. कागज़ों पर भले ही व्यवस्था बनाई गई हो, लेकिन ज़मीन पर इसका अभाव है. 

     ब्यूरोक्रेटिक शैली सरकारी ढंग से काम करती हुई, ही दिखाई पड़ती है. निवेशक को कोई भी मंजूरी प्राप्त करना हिमालय पर चढ़ने जैसा काम होता है. इसीलिए प्रस्ताव तो बहुत बड़ी संख्या में दिखाई पड़ते हैं, लेकिन जमीन पर परिणाम दिखाई नहीं पड़ता.

    मध्य प्रदेश में जो पुराने इंडस्ट्रियल एरिया बने हुए हैं, उनमें जो इंडस्ट्रीज पहले से उत्पादन कर रही हैं, उनमें विस्तार बातों में ज्यादा दिखाई पड़ता है. जमीन पर उसका असर दिखाई नहीं पड़ता. कोई भी निवेशक अपनी परिवहन लागत न्यूनतम रखना चाहता है. उद्योग की रनिंग कॉस्ट भी तुलनात्मक रूप से मध्य प्रदेश में ज्यादा लगती है. यहां बिजली की दरें भी तुलनात्मक रूप से लाभकारी नहीं कही जातीं.

    डॉ. मोहन यादव ने रीजनल इन्वेस्टर्स समिट की शुरुआत की है. अभी तक ग्वालियर, जबलपुर, उज्जैन, सागर में यह समिट हो चुकी है. रीवा में आज रीजनल समिट संपन्न हुई है. रीजनल समिट में एमएसएमई को प्राथमिकता देना चाहिए. ऐसी समिट में भी अगर ग्लोबल समिट के ही पार्टनर इंडस्ट्रीज शामिल होंगे तो फिर रीजनल लेवल पर जाकर इंडस्ट्रियल विकास की परिकल्पना साकार करने में कठिनाई होगी.

    हर राज्य की इन्वेस्टर्स समिट के आयोजन के लिए CII पार्टनर होती है. मध्य प्रदेश की समिट में भी यही संस्था नेशनल पार्टनर है. नॉलेज पार्टनर के रूप में EY संस्था काम कर रही है. अब तक मध्य प्रदेश में जितनी भी इन्वेस्टर्स समिट हुई हैं, उनमें अधिकांश में इन्हीं संस्थाओं की पार्टनरशिप रही है. ॉ

    सरकार बदल जाती है, मुख्यमंत्री बदल जाते हैं, लेकिन पार्टनर संस्था में कोई बदलाव नहीं आता. इसका मतलब है, कि पूरी वर्किंग ब्यूरोक्रेटिक प्रोसेस से ही चलती है. रीवा की समिट को रीजनल इंडस्ट्री कान्क्लेव नाम दिया गया है.

    वाइब्रेंट गुजरात की तर्ज पर द वाइब्रेंट विंध्य की ब्रांडिंग की गई है.विध्य प्रदेश पुराने मध्य प्रदेश में एक राज्य हुआ करता था. विंध्य प्रदेश में विकास की संभावनाएं अद्भुत हैं. प्राकृतिक रिसोर्स भी कम नहीं हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है, कि पिछले वर्षों में विंध्य प्रदेश में इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ा है.

    रीवा में एयरपोर्ट का उद्घाटन पिछले दिनों ही पीएम नरेंद्र मोदी ने किया है. इस एयरपोर्ट के आ जाने के बाद विंध्य प्रदेश में निवेश को गति मिलने की पूरी उम्मीद है. जरूरत केवल इस बात की है, कि दिखावे से ज्यादा धरती के प्रति धरती पुत्रों को अपना सर्वस्व देने की भावना पर काम करना होगा.

    राजनीतिक स्थायित्व हमेशा विकास को गति देता है.मध्य प्रदेश की खुशनसीबी है, कि इस राज्य के लोगों ने राजनीतिक स्थायित्व को प्राथमिकता दी है. 2003 के बाद15 महीने का कार्यकाल छोड़ दिया जाए तो बीजेपी की ही सरकार शासन चला रही है.

    कम से कम अब यह तो नहीं कहा जा सकता, कि सरकार में रहने का मौका नहीं मिला. इसलिए विकास के मामले में कोई भी दल कुछ नहीं कर पाया. कांग्रेस लंबे समय से मध्य प्रदेश में सत्ता पर काबिज रही है. बीजेपी ने भी एक लंबी अवधि तक शासन चलाने का अनुभव प्राप्त कर लिया है. अब आरोप-प्रत्यारोप और दोषारोपण से मध्य प्रदेश का विकास प्रभावित नहीं होना चाहिए.

    शिवराज सिंह चौहान के बारे में ऐसा कहा जाता था, कि वह जनता के बीच ज्यादा समय देते हैं. अब ऐसा लगता है, कि डॉ. मोहन यादव उनसे भी आगे निकल गए हैं. अगर इस बात का एनालिसिस किया जाएगा, कि दस महीनों में वर्तमान मुख्यमंत्री ने राज्य में कितने दौरे किए हैं, तो वह पिछले मुख्यमंत्री के दस महीने के कार्यकाल से ज्यादा ही निकलेगा.

    सक्रियता में तो कोई कमी नहीं दिखाई पड़ती. कमी कसावट की लगती है, ब्यूरोक्रेटिक कमिटमेंट की लगती है, प्राकृतिक संसाधनों से धनी मध्य प्रदेश में रहने वाले गरीब लोगों की सक्रियता में कमी लगती है. कमी मुफ्तखोरी की योजनाओं से सत्ता संधान की लगती है. 

    संसाधन भरपूर हैं, अवसर भरपूर हैं, फिर भी मध्य प्रदेश क्यों मजबूर है? अगर लाभ की संभावना हो, तो बिना किसी बुलावे के, बिना किसी सहारे के निवेश की बहार आ जाएगी. पाथेय मोहन से निवेशकों में दिखता सम्मोहन मध्य प्रदेश के लिए मोह पैदा करेगा, ऐसी उम्मीद है.