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मैसेज रोमांटिक, अनुभव रियलिस्टिक

सार

मध्य प्रदेश का नया बजट विधानसभा में पेश कर दिया गया है. परंपरानुसार सरकारी पक्ष इसे गतिशील और विकसित मध्य प्रदेश का संकल्प बता रहा है, तो प्रतिपक्ष बजट को बातों का बताशा निरूपित कर रहा है. बजट पर प्रतिक्रियाओं की परंपरा चली आ रही है. सरकारें  इसकी तारीफ करती है तो विपक्ष आलोचना..!!

janmat

विस्तार

    वित्त मंत्री ने इस बजट को अंधेरे में चिराग बताया है. राज्यों के बजट के मैसेज हमेशा रोमांटिक होते हैं लेकिन अनुभव ही रियलिस्टिक होते हैं. राज्यों के वित्तीय हालात ऐसे हो गए  हैं कि,बजट केवल एक प्रशासनिक प्रक्रिया तक सीमित हो गया है. यह दस्तावेज सरकार के कमिटेड खर्च, ऐस्टीमेटेड क़र्ज़ और चलती योजनाओं पर बढ़े हुए आंकड़ों का कलेक्शन बन जाता है.

    बजट में अगर कुछ दिखता है तो सरकार की दिशा, जो पांच साल बाद होने वाले चुनाव में वापसी की भूमिका तैयार करती रहती है. बजट भाषण में वित्त मंत्री इस बात पर बहुत जोर दे रहे थे, कि बजट में कोई नया कर नहीं लगाया गया है. किसी भी राज्य सरकार के पास अब कर लगाने की शक्तियां बहुत सीमित हैं.  करारोपण जीएसटी के अंतर्गत आ गया है. पेट्रोल, डीजल पर पहले से ही राज्य का वेट इतना ज्यादा है, कि उसमें करारोपण सरकार के लिए महंगा सौदा हो सकता है.

    कमलनाथ की सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर 5% वेट टैक्स कम करने का चुनावी वादा किया था, लेकिन सरकार बनने के बाद वेट घटाने की बजाय बढ़ा दिया गया था. मध्य प्रदेश में यह टेक्स अभी भी अत्यधिक है. इसलिए बजट में कोई भी कर नहीं लगाने को सरकार की उपलब्धि के रूप में इंगित करने का भाव बेमानी सा लगता है. 

    राज्यपाल ने अपने अभिभाषण में पहले ही कह दिया था, कि राज्य की कोई योजना बंद नहीं की जाएगी. बजट प्रस्ताव भी यही प्रमाणित कर रहे हैं. सारी योजनाओं में हर साल राशियाँ बढाकर प्रावधान किए जाते हैं, वहीं इस बजट में भी किया गया है. लाड़ली बहना योजना में प्रतिमाह दी जाने वाले राशि में चुनावी वायदे के मुताबिक बढ़ोत्तरी की आशा  इस बजट में भी पूरी नहीं हुई है. अभी तक जो मिल रहा है, वही मिलता रहेगा. अगर इसमें वृद्धि की कोई संभावना होगी तो फिर चुनावी साल में ही इस पर कोई निर्णय लेना संभावित होगा.

    शासकीय कर्मचारियों को भी बजट में झुनझुना दिखाया गया है. औद्योगिक निवेश को लेकर ग्लोबल इन्वेस्टर समिट की उपलब्धियां को बजट में भी लाया गया है. शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, खेती किसानी, नगरीय विकास और अधो-संरचना के क्षेत्र में बजट प्रावधानों को बढाकर तालियों की गड़गड़ाहट बटोरने की कोशिश की गई है.

    राज्यों पर कर्ज लगातार बढ़ रहे हैं. मध्य प्रदेश में भी कर्ज की स्थिति चिंताजनक बनती जा रही है. राज्य सकल घरेलू उत्पाद से 30% की सीमा तक कुल कर्ज़ होने के करीब मप्र सरकार भी पहुंच गई है. प्रदेश सरकार का यह बजट 4.21 लाख करोड़ का है. राज्य पर कर्ज इससे भी अधिक होगा. सरकार ने माना है, कि राज्य जीएसडीपी से 29.5% तक कर्ज़ ले लिया है. राज्य सरकार के लिए हर साल सकल घरेलू उत्पाद से 3% की सीमा में ही कर्ज लेने की यह सीमा भी अब अंतिम कगार पर है. 

    राज्य सफल घरेलू उत्पाद रूपये 16 लाख 94 हजार 477 करोड़ बताया गया है. इसका तीस प्रतिशत लगभग पांच लाख चौसठ हज़ार करोड़ रूपये होता है. 

    राज्य का यह बजट अब तक का सबसे बड़ा बजट है, तो राज्य पर कर्ज भी अब तक का सबसे बड़ा ही कहा जाएगा. बड़ा बजट कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है. पूंजीगत परिव्यय में वृद्धि तो बताई जाती है लेकिन वास्तविकता में उसका प्रतिशत बढ़ती हुई महंगाई की तुलना में नगण्य ही होता है. सबसे बडे बजट के भाव को इस कहावत से समझा जा सकता है, ‘बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर, पंछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर’.

    राज्य के नए बजट में अधिकांशतः पहले से चल रही योजनाओं पर ही प्रावधान प्रस्तावित किए गए हैं. जो नए प्रावधान किए गए हैं, उसमें सीएम डॉ. मोहन यादव और उनके हिंदुत्व सोच की झलक दिखाई पड़ती है. इस बजट में गीता भवन बनाने के प्रावधान है. महाकाल की नगरी उज्जैन में सिंहस्थ के लिए धनराशि रखी गई है. ओंकारेश्वर में महालोक बनाने का भी प्रावधान किया गया है. आदि शंकराचार्य के एकात्म धाम और वेदांत के लिए भी बजट प्रावधान किया गया है.

    सीएम ने पद संभालने के बाद ही भगवान कृष्ण से जुड़े मध्य प्रदेश के स्थलों के विकास की घोषणा की थी. इसके लिए प्रस्तावित कृष्ण पाथेय के लिए भी बजट में प्रावधान किए गए हैं. मध्य प्रदेश के बजट में कृष्ण हैं, वृंदावन है, तो राम पथ वनगमन और चित्रकूट भी है. 

    आध्यात्मिक और सांस्कृतिक स्मारकों को भी बजट में जगह मिली है. यह सारे बजट प्रावधान बीजेपी की उसी रणनीति का संकेत है, जो पूरे देश में हिंदुत्व के रूप में स्थापित हुई है. राज्यों के हाल के चुनावो में इसी रणनीति पर  पार्टी को सफलता मिली है. बिहार और उत्तर प्रदेश में चुनावी आहट को देखते हुए हिंदुत्व को सरकारी स्तर मजबूती दी जा रही है. डॉ. मोहन यादव इस मामले में ज्यादा सतर्क दिखाई पड़ते हैं, जो चुनाव के बहुत पहले से विचारधारा और आरएसएस के संकल्पों के प्रति कमिटमेंट पर आगे बढ़ रहे हैं. 

     उपमुख्यमंत्री वित्त जगदीश देवड़ा ने अपने बजट प्रस्तावों को इन भावों के साथ सदन को सौंपा  है कि ‘आंकड़े नहीं, विश्वास लिखा है, हमने अब आकाश लिखा है'.

   विश्वास लिखा नहीं जाता बल्कि कमाया जाता है. विश्वास लिखना ही यह बताता है, कि जो लिखा गया है, उस पर लोगों को अविश्वास है. लिखने, सुनने, पढ़ने या मानने से जो विश्वास आता है, वह झूठ ही होता है. विश्वास की बात तो पूर्वाग्रह है. अनुभूति से आया विश्वास ही श्रद्धा बनता है.