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सबसे महंगा वोट बैंक, देश के लिए ख़तरा

सार

​​​​​​​दिल्ली चुनाव में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा गर्माया हुआ है. दिल्ली पुलिस घर-घर घुसपैठियों की पहचान कर रही है. कई घुसपैठियों को डिपोर्ट कर दिया गया है. छानबीन चल रही है तो घुसपैठ के समर्थक भी वोट बैंक तलाश रहे हैं..!!

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विस्तार

    भारत में घुसपैठ राष्ट्रीय संकट बन गई है. सीमावर्ती जिलों में तो घुसपैठ के कारण जनसांख्यिकी बदल गई है. दुनिया के कई देशों में घुसपैठ की समस्या है. अमेरिकी चुनाव में तो घुसपैठियों को बाहर करने का मुद्दा जीत का कारण बन गया. यूरोप के कई देश घुसपैठ से पीड़ित है.

    भारत में घुसपैठ को बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिम-घुसपैठ कहा जा सकता है. भारत से निकले पड़ोसी देश मुस्लिम देश बने थे. इन देशों के हालात प्रगति की दौड़ में आगे जाने के बदले पीछे जाने की रेस में आगे निकल रहे हैं. बांग्लादेश के निर्माण के समय भारत की सेना ने अपना लहू बहाया था. युद्ध में शरणार्थी से घुसपैठ की शुरुआत हुई, जो अब वोट बैंक बन गया है. 

    आजादी के समय विभाजित हिस्से में रह रहे हिंदुओं से भारत सरकार ने वायदा किया था कि, जब भी वह भारत में आएंगे तब उन्हें नागरिकता दी जाएगी. यह संवैधानिक वादा वोट बैंक की राजनीति में ऐसा भुलाया गया कि, अब नागरिकता संशोधन कानून (CAA) लागू करने का भी विरोध होने लगा.

    पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए कानून वर्ष 2019 में बन चुका है. लेकिन राजनीतिक गतिरोध में घुसपैठ वाले राज्यों में यह लागू नहीं हो पा रहा है. घुसपैठ का सबसे बड़ा केंद्र बंगाल बना हुआ है. इस राज्य में तो सीमावर्ती जिलों में घुसपैठ का आलम यह है कि, अब वहां घुसपैठियों के समर्थन से चुनाव में जीत सुनिश्चित हो रही है.

    भारत में घुसपैठ ज्यादातर मुस्लिम समुदाय की ओर से हो रही है. इसलिए वोट बैंक की राजनीति में बीजेपी विरोधी शक्तियां इनका लाभ उठा रही हैं. आजादी के समय जो संवैधानिक वादा था, उसको पहले की सरकारों ने तो पूरा नहीं किया. जब बीजेपी की सरकार में इन देशों के हिंदू अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का कानून बनाया तो उसका विरोध शुरू कर दिया गया. बांग्लादेशियों के अलावा म्यांमार से रोहिंग्या मुसलमान भी भारत में घुसपैठ कर रहे हैं.

    अब तो लगभग यह साफ-साफ दिखाई पड़ रहा है कि, घुसपैठ को राजनीतिक समर्थन के लिए ही एनआरसी का विरोध किया गया एनआरसी के खिलाफ जितना आक्रामक राजनीतिक आंदोलन एनजीओ के नाम पर खड़ा किया गया, वह वोट बैंक की राजनीति को ही पोषित करने का प्रयास था. असम सहित पूर्वोत्तर के राज्यों में भी घुसपैठ की समस्या है. जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ ने तो आतंकवाद की जड़ों को मजबूत किया. इस राज्य में धारा 370 समाप्त होने के बाद घुसपैठ रोकी जा सकी, तभी आतंकवाद पर काबू पाया जा सका है. 

    घुसपैठ और आतंकवाद साथ-साथ चलते हैं. घुसपैठिए जब अपनी तादाद और ताकत मजबूत कर लेते हैं तो फिर आतंकवाद उनका स्वाभाविक गुण बन जाता है. कश्मीर के इस्लामीकरण के पीछे घुसपैठ भी एक बड़ा कारण माना जा सकता है. इसके बाद राज्य में कश्मीरी पंडितों और हिंदुओं के एलिमिनेशन के लिए जो कुछ हुआ, वह सबके सामने है. 

    भारत का इतिहास घुसपैठ,आक्रांता, व्यापारी और शरणार्थी बनकर आए लोगों से भरा पड़ा है. जिस देश ने इतिहास से सबक नहीं लिया, उस देश का भूगोल बिगड़ना स्वाभाविक है. भारत में मुगल साम्राज्य और अंग्रेजों की गुलामी घुसपैठ की मानसिकता के दुष्परिणाम ही थे. 

  घुसपैठ राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए खतरा है. वोट बैंक का एजेंडा होने के कारण घुसपैठ को प्रोटेक्शन भी दिया जाता है. अमीर देशों  में तो घुसपैठ कुछ अन्य कारणों से होती होगी लेकिन भारत में घुसपैठ जनसांख्यिकी बदलाव के लिए ही हो रही है.

   घुसपैठ का मामला हिंदू, मुस्लिम राजनीति का एजेंडा बन गया है. बीजेपी, घुसपैठ को रोकना चाहती है तो उसके विरोधी घुसपैठ को भाजपा के खिलाफ़ चुनावी हथियार के रूप में उपयोग करना चाहते हैं. जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य में जम्मू क्षेत्र में बीजेपी को बहुमत मिलना और कश्मीर के क्षेत्र में एक भी सीट नहीं मिलना, यही साबित करता है कि, मुस्लिम सियासत बीजेपी के सर्वथा खिलाफ़ है.

    घुसपैठ के कारण जिन भी राज्यों की डेमोग्राफी में बदलाव आया है, वहां राजनीतिक हालातो में भी बदलाव देखा जा सकता है. बंगाल में ममता बनर्जी का राजनीतिक मुकाबला इसीलिए शायद संभव नहीं हो पा रहा है क्योंकि वहां की बदली हुई डेमोग्राफी में घुसपैठियों का पूरा समर्थन उनको मिल रहा है. जिसके कारण उन्हें चुनाव में पराजित करना मुश्किल साबित हो रहा है.

    घुसपैठ से प्रभावित प्रमुख राज्य चाहे कश्मीर,बंगाल, झारखंड या दिल्ली हो सभी जगह बीजेपी के विरोधी दलों की सरकारें हैं. असम और पूर्वोत्तर में बीजेपी सत्ता में जरूर है, लेकिन वहां भी घुसपैठ की समस्या बनी हुई है. घुसपैठियों की संख्या वोट बैंक की नजरिए से एक विशेष समुदाय की संख्या में जुड़ जाती है तो निर्णायक साबित होती है.  घुसपैठ का समाधान शायद इसीलिए संभव नहीं हो पा रहा है, कि केंद्र और राज्य सरकारों के बीच इस मुद्दे पर मतभेद है. केंद्र कोई नियम बनाती है तो राज्य सरकारें उन्हें लागू नहीं करती. 

    एनआरसी और सीएए के साथ भी ऐसा ही हो रहा है. चंद रुपयों के लिए राष्ट्रीय अस्मिता को दांव पर लगाने की मानसिकता देश में पहले से रही है. अंग्रेजों के समय जो भी अत्याचार हो रहे थे, वह कोई अंग्रेज सिपाही नहीं कर रहे थे, वह सब भारत के ही लोग थे जो बढ़-चढ़कर अंग्रेजी हुकूमत का साथ दे रहे थे. 

    घुसपैठियों को वोटर कार्ड, आधार कार्ड और सरकारी दस्तावेज अगर बन रहे हैं, तो यह ऐसी ही मानसिकता के कारण है, जो चंद रूपयों की खातिर राष्ट्र को भूल जाते हैं. घुसपैठ के लिए वोट बैंक की सियासत जिम्मेदार है. वोट बैंक के फायदे-नुकसान सरकारों के हाथ रोक देते हैं. चुनाव में घुसपैठ का एजेंडा सरकारों का कॉमन एजेंडा नहीं बन पाता. घुसपैठ विरोधी सरकारें भी विरोध की राजनीति की नकारात्मकता से डर जाती हैं. एनआरसी और सीएए  के इंप्लीमेंटेशन की धीमी गति में ऐसा ही दिखाई पड़ता है. 

    वोट बैंक की ख़तरनाक सियासत देश के लिए ख़तरा बनने लगे तो ऐसे ख़तरे को मिटाना ही राष्ट्रीय हित होगा. घुसपैठियों के वोटिंग राइट्स तो तुरंत समाप्त किए जाने चाहिए. घुसपैठ कभी भी प्रेम से नहीं होती. हिंसा ही घुसपैठ की स्वाभाविक परिणीति होती है.