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आतंकवाद का नया कश्मीरी हिस्सा 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Fri , 08 Sep

सार

कश्मीर में जंगल कम और बर्फ के पहाड़ ज्यादा हैं, लिहाजा आतंकियों पर दूर से भी नजर रखी जा सकती है, जम्मू के लिए हमें नई, आक्रामक रणनीति बनानी चाहिए। कश्मीर घाटी में इतने सुरक्षा बल आज भी हैं कि आतंकी हरकत करने के घंटे-दो घंटे में आतंकियों को ढेर किया जा सकता है..!!

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विस्तार

और कश्मीर में बीते तीन सप्ताह के दौरान तीन आतंकी हमले हो चुके हैं। डोडा आतंकी मुठभेड़ में कैप्टन समेत चार सैनिक ‘शहीद’ हुए हैं। इससे पहले कठुआ में ‘पुलवामा का सारांश’ सरीखा हमला किया गया था, जिसमें 5 जवान शहीद हुए थे। बीते दो साल में 1 कर्नल, 3 कैप्टन, 5 मेजर समेत 10 अफसर कुर्बान करने पड़े हैं। हालांकि 2005 से 2021 तक जम्मू संभाग बिल्कुल शांत रहा। यह सेना प्रमुख से लेकर सत्ताधारी लोगों का मानना और दावा भी है, लेकिन अब जम्मू ‘आतंकवाद का नया कश्मीर’ बनता जा रहा है। 

पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल एवं उत्तरी कमान के प्रमुख जनरल रहे दीपेन्द्र सिंह हुड्डा का मानना है कि जम्मू संभाग के इस इलाके में मैदान कम और जंगल ज्यादा, घने हैं। डोडा में जहां आतंकी हमला हुआ, वहां पहाड़ के एक तरफ 200 वर्ग किमी का जंगल है, जबकि हमारा तलाशी अभियान सिर्फ 50 वर्ग किमी में ही चलता रहा है। कश्मीर में जंगल कम और बर्फ के पहाड़ ज्यादा हैं, लिहाजा आतंकियों पर दूर से भी नजर रखी जा सकती है। जम्मू के लिए हमें नई, आक्रामक रणनीति बनानी चाहिए। कश्मीर घाटी में इतने सुरक्षा बल आज भी हैं कि आतंकी हरकत करने के घंटे-दो घंटे में आतंकियों को ढेर किया जा सकता है। 

जम्मू में सुरक्षा बल अपेक्षाकृत कम हैं। आतंकी उसी का फायदा उठाकर भाग जाते हैं। जंगल इतने घने हैं कि हेलीकॉप्टर या ड्रोन से आतंकियों के सुराग नहीं लगाए जा सकते। बहरहाल यदि रणनीति बदलनी है, तो वह कब तक बदली जाएगी? अथवा हम शहादतों के आंकड़े गिनते रहेंगे? बेशक हमारे सुरक्षा बलों ने 2023 में 87 आतंकी और 3 जुलाई, 2024 तक 21 आतंकियों को ढेर किया है, लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है? आतंकी तो मरने के लिए या जेहाद की खातिर सीमा पार करके हमारे जम्मू-कश्मीर में घुसते हैं।उनके साथ मुठभेड़ में या आतंकी हमले में भारत के जो सैनिक ‘शहीद’ होते हैं, क्या उनका मूल्यांकन किया जा सकता है? क्या उनकी भरपाई की जा सकती है? एक लंबी, थकाऊ टे्रनिंग और लाखों रुपए खर्च करके औसतन एक सैनिक तैयार किया जाता है। आखिर शहादत का यह सिलसिला कब तक चलेगा?

क्या हमारे सैन्य ऑपरेशन आतंकियों और ‘कश्मीर टाइगर्स’ सरीखे आतंकी गुट को नेस्तनाबूद करने के मद्देनजर संचालित नहीं किए जा सकते? कठुआ वाला हमला भी इसी आतंकी गुट ने किया था। वह संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकी संगठन ‘जैश-ए-मुहम्मद’ का जम्मू-कश्मीर में एक फर्जी, नकली नाम है। ‘कश्मीर टाइगर्स’ के आतंकी पाकिस्तान में भर्ती होते हैं, वहीं प्रशिक्षण लेते हैं और ‘दिवालिया’ पाकिस्तान ही उन्हें पैसा देता है। सवाल है कि ऐसे संगठन को जम्मू-कश्मीर की सरजमीं पर ही चित्त क्यों नहीं किया जा सकता? इन आतंकियों के जो मददगार ‘स्थानीय जयचंद’ हैं, उन्हें भी ढेर क्यों नहीं किया जा सकता? क्या भारत सरकार ने सैनिकों के हाथ बांध रखे हैं? 

2021 से अब तक सेना और पुलिस के 52 जवान आतंकी हमलों में जान गंवा चुके हैं। इस पर संतोष किया जा सकता है कि 54 आतंकी भी ढेर किए गए हैं। इस पर क्या कहेंगे कि 70 से अधिक नागरिक भी मारे गए हैं। कश्मीर घाटी का ज्यादातर हिस्सा पाकिस्तान वाली नियंत्रण-रेखा से लगता है, लेकिन डोडा तो नियंत्रण-रेखा के करीब भी नहीं है, फिर वहां तक आतंकियों ने घुसपैठ कैसे की? जम्मू-कश्मीर में बहुत जल्द विधानसभा चुनाव होने हैं। कश्मीरी अपनी सरकार और प्रतिनिधि चुन सकेंगे। लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल होगी। उसके मद्देनजर आतंकवाद बढ़ा है। उसे कुचला जा सकता है।