अब लगातार हो रहे आतंकी हमलों ने आंतरिक सुरक्षा के लिये नये सिरे से चुनौती पैदा की है। जम्मू में रियासी, कठुआ और डोडा में चार दिनों में चार आतंकी हमले हुए हैं..!!
जम्मू -कश्मीर में फिर से खबरें गर्म हो रही हैं। पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड मतदान की चर्चा हो रही थी। अब लगातार हो रहे आतंकी हमलों ने आंतरिक सुरक्षा के लिये नये सिरे से चुनौती पैदा की है। जम्मू में रियासी, कठुआ और डोडा में चार दिनों में चार आतंकी हमले हुए हैं।
रविवार को रियासी में श्रद्धालुओं से भरी बस के चालक पर हुए हमले के बाद बस अनियंत्रित होकर खाई में गिर गई थी। जिसमें नौ श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। फिर कठुआ व डोडा में हुए आतंकी हमलों में एक जवान और दो आतंकवादी मारे गए हैं। इन घटनाओं में छह जवानों समेत पचास के करीब लोग घायल हुए हैं। कुछ गिरफ्तारियां भी हुई और हथियार भी बरामद हुए हैं। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए गुरुवार को प्रधानमंत्री ने गृहमंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल व सुरक्षा एजेंसियों के साथ बैठक की है।
इसमें आतंकवाद की नई चुनौती से मुकाबले की रणनीति पर विचार हुआ है। दरअसल, नई सरकार बनने की प्रक्रिया के दौरान हुए इन हमलों में पाक की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। चिंता की बात यह है कि एलओसी से लगते जम्मू के इलाके में आतंकवादी घटनाएं बढ़ी हैं। मारे गये दो आतंकवादियों के पास से पाकिस्तानी हथियार व सामान की बरामदगी बताती है कि पाकिस्तान सत्ता प्रतिष्ठानों की मदद से यह आतंक का खेल फिर शुरू किया जा रहा है। कहीं न कहीं दिल्ली में बनी गठबंधन सरकार को यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि पाक पोषित आतंकवादी जम्मू-कश्मीर में दखल दे सकते हैं। कहा जा सकता है कि राज्य में लोकतंत्र को मजबूत होते देख बौखलाहट में ये आतंकवादी हमले किये जा रहे हैं। दरअसल, केंद्रशासित प्रदेश का शांति-सुकून की तरफ बढ़ना आतंकवादियों की हताशा को ही बढ़ाता है। हाल के दिनों में रिकॉर्ड संख्या में पर्यटकों का घाटी में आना और लोकसभा चुनाव में बंपर मतदान सीमा पार बैठे आतंकियों के आकाओं को रास नहीं आया है।
वहीं इन हमलों का चिंताजनक पहलू यह है कि अब तक आतंकी घटनाओं का केंद्र दक्षिण कश्मीर आदि इलाके होते थे, अब की बार ये हमले जम्मू क्षेत्र में हुए हैं। जम्मू के इलाके में आतंकी घटनाओं में वृद्धि शासन-प्रशासन के लिये गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। इन हमलों में पाकिस्तान की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। उल्लेखनीय है कि रविवार को हुए हमले की जिम्मेदारी जहां लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी गुट टीआरएफ ने ली तो डोडा में हुए हमले की जिम्मेदारी पाक पोषित जैश-ए-मोहम्मद के एक गुट कश्मीर टाइगर्स नामक आतंकी संगठन ने ली है। बहरहाल, भारतीय सेना व सुरक्षा बल आतंकवादियों को भरपूर जवाब दे रहे हैं। लेकिन इस माह के अंत में शुरू होने वाली अमरनाथ यात्रा का निर्बाध आयोजन सुरक्षा बलों के लिये बड़ी चुनौती होगी। जिसको लेकर विशेष चौकसी बरतने की जरूरत है।
वहीं दूसरी ओर हाल के आतंकी हमले केंद्र सरकार व राज्य प्रशासन को भी आत्ममंथन का मौका देते हैं। केंद्र सरकार विचार करे कि अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद क्या वाकई घाटी में स्थिति सामान्य हो पायी है? हाल के लोकसभा चुनाव में हुआ बंपर मतदान क्या चरमपंथियों को संसद भेजने का उपक्रम था? क्या वजह है कि राज्य में लंबे समय से लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले दिग्गज राजनेता लोकसभा चुनाव में धराशायी हो गए? हाल के वर्षों में जम्मू-कश्मीर में सामान्य स्थिति बहाली को लेकर जो दावे किये जा रहे थे तो क्या जमीनी हकीकत ऐसी ही है?
देश के नीति नियंताओं को आत्ममंथन करना होगा कि क्यों कश्मीर का जनमानस राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ नहीं पा रहा है? क्या कश्मीरी लोगों में नई व्यवस्था में अपने अधिकारों की सुरक्षा व संपत्ति के अधिकारों को लेकर मन में संशय की स्थिति में वृद्धि हुई है? हमें यह तथ्य स्वीकारना चाहिए कि किसी भी राज्य में आतंकवाद का उभरना स्थानीय सहयोग के बिना संभव नहीं हो सकता। वहीं यह भी हकीकत है कि कश्मीरी जनमानस का दिल जीतना शक्ति से नहीं बल्कि उनके अनुकूल नीतियां बनाने व लोकतंत्र की बहाली से ही संभव है।