लाल किले पर मध्य प्रदेश सरकार ने इतिहास रच दिया है. सम्राट विक्रमादित्य के सुशासन, न्याय, वीरता, दानशीलता को ऐतिहासिक महानाट्य के जरिए जीवंत कर दिया. समापन अवसर पर एमपी के सीएम डॉ. मोहन यादव कहते हैं कि, विक्रमादित्य महानाट्य बताता है, दुनिया में सबसे पहले लोकतंत्र कहां था..!!
सम्राट विक्रमादित्य, देश की गौरव गाथा हैं. महानाट्य के माध्यम से उनकी गौरव गाथा को उस स्थान पर जीवंत किया गया, जो भारत की स्वतंत्रता का प्रतीक बना. इसमें कोई दो राय नहीं है कि, अतीत के प्रेरक प्रसंग से भविष्य गढ़ने की ताकत और ऊर्जा मिलती है.
इसका मतलब है कि, इतिहास की सार्थकता तभी है, जब उससे भविष्य गढ़ा जाए. गढने का मतलब वर्तमान से है. कोई भी निर्माण न अतीत में और ना ही भविष्य में हो सकता है. निर्माण की क्षमता तो वर्तमान में ही है. वर्तमान में कर्म का जो भी महाकाव्य का रचा जा रहा है, वही इतिहास में महानाट्य बनेगा.
सम्राट विक्रमादित्य जब वर्तमान रहे होंगे तब उनके सुशासन, न्यायप्रियता और दानशीलता लोगों ने अनुभव की होगी. महानाट्य इतिहास के शास्त्रों पर आधारित होता है. मन और विचार भले ही अतीत और भविष्य में विचरण करते रहें लेकिन आंखें तो वर्तमान ही देखती हैं. आंखों देखा, सच ही सच होता है. अनुभूति से बड़ा सच कुछ भी नहीं होता.
सम्राट विक्रमादित्य का सुशासन इतिहास की वैचारिक खुशी तो दे सकता है लेकिन वर्तमान का सुशासन तभी खुशी देगा, जब वह न्यायपूर्ण, समतापूर्ण होगा. मानव मस्तिष्क की यह विशेषता है कि, वह फिल्म और नाटक के पात्र और अभिनय से भी जुड़ जाता है. उनकी भावनाओं से अपने को जोड़ लेता है. जबकि वह जानता है कि यह मात्र अभिनय है, वास्तविकता से उसका कोई संबंध नहीं है.
मध्य प्रदेश सरकार के महानाट्य के मंचन की परंपरा काफी सराही जा रही है. पीएम नरेंद्र मोदी ने भी इसकी सराहना की है. एमपी के वर्तमान मुख्यमंत्री सम्राट विक्रमादित्य के उज्जैनी से ही आते हैं. उज्जैन में सम्राट विक्रमादित्य के गुणों पर केन्द्रित सिंहासन बत्तीसी स्थापित है.
यह सभी कहानियां विक्रमादित्य के किसी एक गुण या पहलू को प्रदर्शित करती हैं. विक्रमादित्य की न्याय प्रियता, सत्यवादिता, दूरदर्शिता और प्रजावत्सलता जैसे गुणों की वर्तमान में सबसे अधिक जरूरत है. सिंहासन बत्तीसी भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है. सम्राट विक्रमादित्य पर बहुत साहित्य रचे गए हैं. उनकी लोक कथाएं प्रेरणा देती हैं. इसीलिए वर्तमान को भी इन प्रेरक प्रसंगों के परिपेक्ष्य में देखना जरूरी होता है.
सुशासन की बातें वर्तमान में भी शासक और शासन करते हैं. शासक और शासन के सुशासन के इश्तिहार नागरिकों की अनुभूति से कभी-कभी ही मेल खातें हैं. कोई ऐसा दिन नहीं जाता, जब लॉ एण्ड आर्डर को लेकर घटनाएं नहीं घटती हों? कानून का राज स्थापित करने में पुलिस प्रशासन की महती भूमिका है.
पुलिस पर हो रहे हमले आज चिंता का कारण बने हुए हैं. कोई भी त्यौहार शांति से निकलना मुश्किल ही होता है. राज्य के किसी न किसी कोने में पत्थरबाजी की ख़बरें अब आम हैं. मध्य प्रदेश तो फर्जी डॉक्टर की खदान मानी जाती है. दमोह में पकड़े गए फर्जी डॉक्टर का मामला अभी चल ही रहा है. एक भी मरीज की फर्जी डॉक्टर द्वारा जान ले ली जाए यह तो सुशासन का उदाहरण नहीं हो सकता है.
न्यायप्रियता, सुशासन का सबसे बड़ा लक्षण होता है. वर्तमान समय में सुशासन से न्यायप्रियता की अपेक्षा वही कर सकता है, जो उसके साथ प्रियता रखता है. प्रियता के कई माध्यम हो सकते हैं. आजकल तो ले-देकर काम निकालने की नीति सबसे ज्यादा कारगर बनी हुई है. सिस्टम में उगाही संस्थागत रूप ले चुकी है.
मध्य प्रदेश में परिवहन विभाग में करप्ट प्रैक्टिसेस एक पूर्व आरक्षक के निवास पर जांच एजेंसी के छापे के बाद सार्वजनिक चर्चा का विषय बना. करोड़ों रुपए जब्त किए गए. पचास किलो से अधिक सोना पकड़ा गया.
इसे कैसा सुशासन कहा जाएगा कि, करप्ट प्रेक्टिसेस वर्षों से चल रही थी और चर्चा में वह तभी आया जब एजेंसियों ने कार्रवाई की. इसका मतलब है कि, या तो सुशासन का पूरा सिस्टम इग्नोरेंट था या मिला जुला काम चल रहा था. छापों के बाद भी न्याय की कार्यवाई में जिस तरह के नजारे दिखाई पड़े हैं, वह भी सुशासन की पोल खोलने के लिए पर्याप्त कहे जा सकते हैं.
कोई भी शासन एक व्यक्ति नहीं चलाता एक पूरा सिस्टम होता है. मंत्री होते हैं, सेकेट्री होते हैं. सम्राट के शासन में भी होते हैं और लोकतंत्र के शासन में भी. सम्राट के शासन में तो मंत्री का पद पीढ़ी दर पीढ़ी चलता था. वर्तमान शासन व्यवस्था में तो मंत्री और सचिव कितने समय तक रहेगा इसकी कोई सीमा निर्धारित नहीं है.
पूरे समय ट्रांसफर की चर्चा होती है. ट्रांसफर लिस्ट निकलती है. कुछ उसमें शामिल होते हैं और फिर अगली लिस्ट की चर्चा चालू हो जाती है. सिस्टम में काम अफसर करते हैं लेकिन ट्रांसफर का ऐसा दौर चलता रहता है कि, कोई भी अफसर साल दो साल एक पद पर मुश्किल से ही रह पाता है. इसीलिए शायद प्रशासनिक सुधार में यह बात सामने आई कि, पुलिस प्रमुख और प्रशासन के प्रमुख का सेवाकाल न्यूनतम दो वर्ष होना चाहिए.
लोकतंत्र में दूरदर्शिता की बहुत ज्यादा गुंजाइश नहीं है. कार्यकाल पांच साल की सीमा में बंधा होता है. लक्ष्य केवल यही होता है कि फिर से कैसे चुनाव जीता जाए. वर्तमान में सुशासन चुनाव जीतने की भूमिका का सर्वोत्तम उपयोग ही कहा जा सकता है. सरकार पर कर्जों के हालात काबू से बाहर हो रहे हैं. फिर भी मुक्तखोरी की योजनाएं और खातों में नगद भुगतान चुनावी सुशासन का ही उदाहरण है.
विरासत से विकास सुनने में बहुत अच्छा लगता है लेकिन विकास केवल वर्तमान में है. विरासत अतीत है. अतीत प्रेरणा के लिए है, लेकिन विकास वर्तमान कर्मों का महाकाव्य होता है. यही महाकाव्य इतिहास का महानाट्य बनता है.
लोकतंत्र में तो सरकार बदलते, यहां तक की एक ही पार्टी की सरकार होने के बाद भी मुख्यमंत्री बदलने के बाद सुशासन के तरीके और योजनाओं के नाम भी बदल दिए जाते हैं. जहां बदलाव की इतनी गति हो, जहां बदले की संस्कृति हो, जहां निजी लाभ-हानि शासन की सद्गति हो, वहां वर्तमान ही जीवंत होता है.