बीजेपी के अगले सबसे बड़े मिशन 2024 की हैट्रिक के लिए जमावट एमपी की नई कैबिनेट में दिखाई पड़ रही है. नई कैबिनेट में क्षेत्रीय, जातीय और महिला प्रतिनिधित्व के संतुलन को साधने की पूरी कोशिश की गई है. कैबिनेट में नए चेहरों को जहां स्थान दिया गया है वहीं कई पुराने चेहरे भी रिपीट किए गए हैं.
कैबिनेट का फॉर्मेशन यही दिखा रहा है कि इरादा तो गुजरात पैटर्न पर पूरा नया कलेवर देने का था लेकिन 2024 की राजनीतिक मजबूरियों के कारण सफाई का मंसूबा पूरा नहीं हो सका, काम अधूरा ही रह गया है. शिवराज कैबिनेट के कई मंत्रियों को चुनाव में पराजित कर जनता ने ही सफाई की शुरुआत कर दी थी. जो मंत्री चुनाव जीत कर आए थे उनमें से कई चेहरों को कैबिनेट में स्थान नहीं दिया गया है. कुछ ऐसे चेहरे मंत्रिमंडल में अपनी जगह पाने में सफल हो गए जिनकी सफाई होना जरूरी लग रहा था.
अगर छवि और परफॉर्मेंस पैमाना होता तो शायद कुछ चेहरों को मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिल पाता. जिन वरिष्ठ नेताओं को स्थान नहीं दिया गया है उसे तो बीजेपी की शैली ही कहा जाएगा. बीजेपी अकेली पार्टी है जो नए नेतृत्व को विकसित करती है और एक समय के बाद पुराने नेताओं को जिम्मेदारियों से मुक्त करने का साहस भी दिखाती है.
कैबिनेट में शामिल मंत्रियों का अगर विश्लेषण किया जाएगा तो यह समझना मुश्किल होगा कि इसमें किस नेता को तवज्जो मिली है और किसे झटका मिला है. मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने केंद्रीय नेतृत्व की मंशा और इच्छा के अनुरूप ही सलाह मशविरा को तवज्जो दी होगी.
शिवराज कैबिनेट के जिन मंत्रियों को नए मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली है उनमें कुछ मंत्री ऐसे हैं जिन्हें उनका करीबी माना जाता था. ऐसे चेहरों को स्थान नहीं मिलने से यही संकेत जा रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व में 2024 की जमावट को ही सर्वोच्च प्राथमिकता दी है. ज्योतिरादित्य सिंधिया के कुछ ख़ास समर्थक भी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हो सके हैं. उनके कुछ समर्थकों को तो स्थान मिला है लेकिन सभी समर्थकों को स्थान दिलाने में वे सफल नहीं हुए हैं.
इसका मतलब है कि कांग्रेस से बगावत के बाद बीजेपी में शामिल हुए सिंधिया समर्थक अब बीजेपी के कार्यकर्ता हैं. भविष्य में उनके संबंध में जो भी फैसले लिए जाएंगे वे बीजेपी की रीति-नीति के अनुरूप ही होंगे. शिवराज सरकार के दौर में ऐसा वातावरण बना था कि सिंधिया समर्थकों के कारण ही सरकार बनी है. इसलिए उनके संबंध में निर्णय लेते समय पार्टी एक विशेष नजरिया अपनाती थी, जो अब समाप्त हो गया लगता है. ऐसी स्थिति पार्टी और सिंधिया समर्थक दोनों के लिए भविष्य में बेहतर होगी. इससे बीजेपी में नेताओं का एकीकरण होने में भी सहायता मिलेगी.
मंत्रिमंडल के गठन में क्षेत्रीय संतुलन को साधने की पूरी कोशिश की गई है. सभी अंचलों से मंत्री बनाए गए हैं. देश में जातीय राजनीति का बोलबाला इस मंत्रिमंडल में भी दिखाई पड़ रहा है. ओबीसी समुदाय के सबसे ज्यादा मंत्री बनाए गए हैं. अनुसूचित जाति और जनजाति को भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया गया है. संसद और विधानसभा में महिलाओं को रिजर्वेशन देने का नारी वंदन कानून बन चुका है. बीजेपी ने नई कैबिनेट में महिलाओं को भी अधिक प्रतिनिधित्व दिया है. पिछली कैबिनेट से ज्यादा महिला मंत्री नई कैबिनेट में बनाई गईं हैं.
महिलाओं का समर्थन बीजेपी को लगातार बढ़ता जा रहा है. मध्यप्रदेश के चुनाव में भी महिला मतदाताओं ने बीजेपी को बढ़-चढ़ कर समर्थन किया है. महिलाओं से जुड़ी योजनाओं को लेकर भी बीजेपी के पक्ष में बने माहौल की चुनाव में चर्चा रही. नई कैबिनेट का महिलाओं के प्रति कमिटमेंट 2024 में मध्यप्रदेश में बीजेपी को शत प्रतिशत सफलता दिला सकता है.
नई कैबिनेट में जातीय संतुलन को शिद्दत के साथ साधा गया है. राज्य के प्रमुख समाजों को मंत्रिमंडल में स्थान दिया गया है. शिवराज सिंह चौहान जहां किरार समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे थे वहीं मोहन यादव ओबीसी समुदाय के महत्वपूर्ण यादव समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं. नए मंत्रिमंडल में किरार समाज के नेता को भी स्थान दिया गया है.
सुशासन किसी भी सरकार की प्राथमिकता होती है. मंत्रियों के परफॉर्मेंस और इमेज का पूरी सरकार की इमेज पर प्रभाव पड़ता है. अभी तक तो ऐसा होता रहा है कि मुख्यमंत्री का चेहरा ही सरकार का चेहरा माना जाता रहा है. राजनीति में ऐसी स्थितियां लगभग बन गई हैं कि राज्यों में CM और CMO ही सरकार के प्रतीक के रूप में काम करते हैं, यद्यपि मंत्रिमंडल की सामूहिक जिम्मेदारी होती है. मुख्यमंत्री का चेहरा सरकार के प्रतीक के रूप में भले ही स्थापित रहता है लेकिन मंत्रियों के परफॉर्मेंस पर सरकार की छवि निर्भर करती है.
मध्यप्रदेश में संगठन की दृष्टि से बीजेपी काफी मजबूत स्थिति में है. हाल ही के जनादेश ने यह साबित किया है कि भाजपा के साथ जनसमर्थन मजबूती से खड़ा है. 2024 में नई सरकार और कैबिनेट की कसौटी मध्यप्रदेश में शत प्रतिशत लोकसभा सीटें जीतना होगी. पूरी कैबिनेट को लोकसभा के चुनाव तक केवल लोकसभा की दृष्टि से ही कामकाज को आगे बढ़ाना होगा. लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद ही सरकार के संचालन की शैली और इमेज वास्तविक रूप में दिखाई पड़ेगी.
मंत्रिमंडल में कई अनुभवी नेता भी शामिल हैं. अनुभव और नए नेताओं के सामूहिक प्रयास सुशासन को गति दे सकते हैं. ब्यूरोक्रेसी से सुशासन की अपेक्षा के साथ ही नेतृत्व भी सुशासन के अनुरूप देना जरूरी होता है. ब्यूरोक्रेसी परिस्थितियों के अनुरूप अपने को ढाल लेती है. जैसे भी परिस्थितियों की उससे अपेक्षा की जाती है उसी के अनुरूप वह काम करने लगती है. रीढ़ वाली ब्यूरोक्रेसी अब बची नहीं है. ऐसी परिस्थितियों में जनप्रतिनिधियों द्वारा जनहित को प्राथमिकता और ईमानदारी से क्रियान्वित करने की कोशिश ही सुशासन को नई दिशा देती है.
जब भी नई सरकार बनती है तब पुरानी सरकार से तुलना स्वाभाविक रूप से होने लगती है. जो नेता मंत्री बनने से छूट जाते हैं, उनका दुखी होना स्वाभाविक है. जो लोग लंबे समय तक सरकारी पदों पर रह चुके होते हैं, जिन्हें कोई भी नया अनुभव लेने की जरूरत नहीं होती, वे भी पद जाने पर पद की कामना और लालसा में स्वयं के साथ-साथ पार्टी को कष्ट देने में भी कमी नहीं रखते हैं.
राजनीति में रिटायरमेंट एक अनिवार्यता है. भले ही ऐसे कानूनी प्रावधान न हों लेकिन सभी राजनीतिक दलों को स्वभाविक प्रक्रिया के अंतर्गत यह करते रहना चाहिए. बीजेपी इस बात के लिए प्रशंसा की पात्र है कि नए-नए नेतृत्व को विकसित करने में उसके द्वारा समय-समय पर कदम उठाए जाते हैं.
मध्यप्रदेश में मिले भारी भरकम जनादेश के कारण नई सरकार से जनता को भारी भरकम आशा भी है. नई कैबिनेट को जनअपेक्षाओं और जनभावनाओं के अनुरूप काम करते हुए जनादेश पर खरा साबित होने की चुनौती है. नेतृत्व नया है. कैबिनेट भी भले पूरी नई न हो लेकिन कार्यशैली तो नई होनी ही चाहिए. चेहरे बदलने से ज्यादा कार्यपद्धति और कार्यशैली बदलने से जनअपेक्षा की पूर्ति होती है. मध्यप्रदेश को नई कैबिनेट की नई कार्यशैली की प्रतीक्षा रहेगी.