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वायदों के असली इरादे, खुद की मुफ्तखोरी

सार

चुनावी वचन पत्रों में मुफ्तखोरी की बमबारी आतंकवाद की बमबारी से भी ज्यादा खतरे का आभास दे रही है. युद्ध में तो दुश्मन को टारगेट कर हमला किया जाता है और जनता गफलत में मारी जाती है लेकिन मुफ्तखोरी के राजनीतिक आतंकवाद में कोई नहीं बचता है. अंततः मुफ्तखोरी की बमबारी से बेचारी जनता ही लहूलुहान होती है. मुफ्तखोरी के वायदों के असली इरादे जनसेवा नहीं बल्कि खुद की राजनीतिक मुफ्तखोरी का महल तैयार करना है.

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विस्तार

राजनीतिज्ञों के ठाठ-बाट और आलीशान जीवनशैली का लोभ ही चुनावी जीत के लिए सब कुछ दांव पर लगाने के लिए तैयार कर देता है. वायदे तो कभी पूरे होते नहीं हैं वायदे पूरे करने के वायदे करते-करते सरकारें और जीवन गुजर जाता है. वायदों का सबसे पहले लाभ तो राजनीति को ही होता है जिस भी राजनीतिक दल के मुफ्तखोरी के चुनावी कांटे में जनता फंस जाती है उस राजनीतिक दल की शासन यात्रा कई पीढ़ियों के लिए धन संपत्ति एकत्रित करने के महासमर का शंखनाद कर देती है.

रोजगार बढ़ाने के वायदे बेरोजगारी बढ़ने का कारण बन जाते हैं. महंगाई कम करने का संकल्प महंगाई का ही दिग्दर्शन कराते हैं. टैक्स कम करने के वायदे किए जाते हैं और बाद में सरकार के आर्थिक संकट को दूर करने के लिए टैक्स बढ़ा दिए जाते हैं.

विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के वचनपत्र की हर लाइन स्वर्णिम मध्यप्रदेश के अमृतवचन का वायदा कर रही है. कई वायदे तो ऐसे किए गए हैं जो वर्तमान संवैधानिक प्रावधानों में संविधानसम्मत नहीं हैं लेकिन फिर भी जनादेश की मछली फसाने के लिए कांटे में मुफ्तखोरी का आटा लगाकर डाल दिया गया है. कांग्रेस ने वचनपत्र में पिछड़े वर्गों को भर्ती के साथ ही पदोन्नतियों में भी 27 प्रतिशत आरक्षण देने का वचन दिया है. अनुसूचित जाति और जनजाति को संविधान के अंतर्गत दिया गया पदोन्नति में आरक्षण तो पिछले 5 साल से अदालत की रोक के कारण अटका हुआ है लेकिन ओबीसी को प्रमोशन में रिजर्वेशन का कोई कांस्टीट्यूशनल प्रावधान नहीं है फिर भी वचनपत्र में वादा दे दिया गया है. 

ऐसे ना मालूम कितने वायदे किए गए हैं जिसमें कहा गया है कि केंद्र शासन को प्रस्ताव भेजा जाएगा. राज्य सरकारें जातिगत जनगणना नहीं करा सकती हैं. बिहार सरकार ने इसे जातिगत सर्वेक्षण का नाम दिया लेकिन क्योंकि राहुल गांधी जातिगत जनगणना ही कह रहे हैं इसलिए कांग्रेस के वचनपत्र में जातिगत जनगणना करने का वचन दे दिया गया है.

असंतुष्टों को साधने के लिए विधान परिषद बनाने का भी वायदा किया गया है. यह वादा कांग्रेस कब से कर रही है, शायद उसे भी याद नहीं होगा. इसलिए हर बार नए वायदे के रूप में इसे शामिल कर दिया जाता है. संसदीय लोकतंत्र मुफ्तखोरी की सियासत के कारण अभी भी ऊपर नीचे सांसे ले रहा है. विधान परिषद का भार सहने की वित्तीय स्थिति मध्यप्रदेश में तो शायद नहीं बन पाएगी. 

एमपी के दोनों मुख्य दलों भाजपा और कांग्रेस में मुफ्तखोरी की योजनाओं पर युद्ध जैसा माहौल बन गया है. कौन किसको मुफ्तखोरी की नई-नई बमबारी में घायल कर दे, इसके लिए दोनों तरफ से मुद्दे और वायदे फेंके जा रहे हैं. सत्ता में चाहे बीजेपी आए या कांग्रेस, कमाई का एक तिहाई तो मुफ्त वायदों को पूरा करने में ही जाएगा.
 
मध्यप्रदेश के नागरिक तो इस बात से चिंतित हैं कि ना मालूम किस दल की ओर से मुफ्तखोरी का कौन सा मुद्दा बम के रूप में पटक दिया जाएगा. महिलाओं को लेकर तो दोनों दलों में ऐसा द्वन्द मचा हुआ है कि एक दूसरे से ज्यादा मुफ्त में देने का वचन दिया जा रहा है. किसान की कर्जमाफी और कमाई के वचन राजनीति में सत्यनारायण की कथा से बन गए हैं. बिजली और गैस सिलेंडर सस्ता देने के लिए तो ऐसे ऐसे वादे किए जा रहे हैं जैसे बाजार का नियंत्रण नेताओं के हाथ में आ गया है. 

राजनेताओं के ठाठबाट और उनके वास्तविक जीवन का अंदाजा लगाना है तो उनके घरेलू नौकरों का सर्वे किया जाना चाहिए. इन घरेलू नौकरों को कितनी विपरीत परिस्थितियों में रहना पड़ता है. समुद्र के किनारे होने के बाद भी यह गरीब लोग पानी के प्यासे रह जाते हैं. जो भी मानवीयता और मानव अधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता राजनीतिक दलों के वचनपत्रों में दिखाई पड़ती है, वह उनके जीवन पद्धति में मिलना दूभर होती है.
 
फ्री की सुविधाओं का ज्यादातर लाभ लोअर मिडिल क्लास को देकर लुभाया जाता है. मिडिल क्लास और अपर क्लास को तो बहुमत की राजनीति में टैक्सपेयर के रूप में ही उपयोगी माना जाता है. खराब और गड्ढों वाली सड़कों पर सबको चलना पड़ेगा. जब सरकारों के पास मुफ्तखोरी की योजनाओं के अलावा संसाधन ही नहीं बचेगा तो फिर अधोसंरचना और विकास की बुनियादी योजनाओं का पिछड़ना सुनिश्चित ही है.

कांग्रेस ने ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने का चुनावी वायदा करके मध्यप्रदेश के लिए दीर्घकालीन आर्थिक समस्या को जन्म दे दिया है. शिक्षाकर्मी, पंचायतकर्मी और सरकारी सेवाओं में कर्मी कल्चर का महापाप जिस सोच ने किया आज वही सोच रोजगार के ऐसे-ऐसे वायदे कर रही है जो कभी भी पूरे नहीं हो सकेंगे. राज्य की वित्तीय हालात जिस तरह बढ़ रहे है उनमें तो कांग्रेस की सरकार का दौर ही याद आ रहा है जब कर्मचारी और पेंशनरों को महंगाई भत्ते के किस्तें नहीं मिल पा रही थी. अब तो भविष्य में वेतन पर भी संकट आ जाए तो आश्चर्य नहीं होगा. 

हर राजनीतिक दल सरकार में खाली पदों को भरने का वादा तो करता है लेकिन पद कभी भी भरे नहीं जाते. इसका कारण यह है कि कोई भी सरकार इतनी आर्थिक क्षमता ही नहीं रख रही है कि वह खाली पदों को भरकर सरकार चलाने में सक्षम हो. एससी-एसटी के आरक्षित पदों का बैकलाग भरने के लिए कई दशकों से बैकलाग भर्ती अभियान चलाया जा रहा है लेकिन इन पदों की पूर्ति हो ही नहीं पाती है. प्रोपेगेंडा और असलियत में बहुत अंतर होता है.
 
कांग्रेस के वचन पत्र में भिक्षावृत्ति उन्मूलन के लिए सशक्त कदम उठाने का वचन दिया गया है. बाल भिक्षावृत्ति कराने वालों पर कठोर कानूनी कार्रवाई का भी वचन इसमें दिया गया है. मुफ्तखोरी को बढ़ावा देना  भिक्षावृत्ति की मानसिकता को ही मजबूती प्रदान करना है. कर्मठता को सपोर्ट करने के लिए सरकारी संसाधनों का उपयोग तो विकास के लिए जरूरी है लेकिन बिना मांगे हुए मतदाता की झोली में फ्री की योजनाएं या नकद पैसा डाल देना राजनीति का राज्य और राष्ट्र के साथ बहुत बड़ा अभिशाप ही कहा जाएगा.

राजनीति की मुफ्तखोरी के लिए राज्य में मुफ्तखोरी को बढ़ावा देना न केवल अनैतिक है बल्कि राज्य के लिए खतरनाक भी है. चुनावी घोषणा पत्रों और वचन पत्रों की विश्वसनीयता कभी भी नहीं रही है. सत्ता से प्यार के लिए मुफ्तखोरी का व्यापार राज्य के बंटाधार का कारण नहीं बनना चाहिए.