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अंत की खीझ, हमेशा देती सीख

सार

​​​​​​​एमपी के चुनाव में धृतराष्ट्र और सुदामा की एंट्री हो गई है. पुत्रमोह में अंधे राजनीतिक धृतराष्ट्र, मित्र को सुदामा बनाना चाहते हैं. नैतिकता की बातें बेईमान और पाखंडी अंतःकरण से ही निकल सकती है जिसका अंतःकरण शुद्ध होगा उसे सब में कृष्ण दिखाई पड़ेंगे..!!

janmat

विस्तार

धृतराष्ट्र और सुदामा की कदमताल छिंदवाड़ा को शिकार बनाने के लिए ही की जा रही हैं. छिंदवाड़ा में कांग्रेस छोड़ने वालों की रफ्तार की घबराहट धृतराष्ट्र के चेहरे पर देखी जा सकती है. सब कुछ छूटता देखकर विचलित राजनीति के दिग्गज कमलनाथ तो हमेशा सुदामा ही चाहते हैं. गरीबों को गरीब रखने में ही उनकी अमीरी दिखाई पड़ेगी. दीपक सक्सेना ने कांग्रेस के सभी पदों से जब से इस्तीफा दिया है कमलनाथ की राजनीतिक धुरी हिल गई है.

दीपक सक्सेना के पुत्र बीजेपी में शामिल हो गए हैं. ऐसी चर्चाएं भी चल रही है कि दीपक सक्सेना भी बीजेपी में शामिल हो जाएंगे. इन्हीं चर्चाओं से विचलित कमलनाथ दीपक सक्सेना के घर पहुंचते हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ दीपक सक्सेना को कमलनाथ सीख देते हैं कि पुत्रमोह में धृतराष्ट्र बनोगे या मित्रता में सुदामा रहोगे? कितना हास्यास्पद है कि जो नेता स्वयं पुत्रमोह में दशकों से धृतराष्ट्र की भूमिका में है वह दूसरे को पुत्र के हित में कुछ करने की धृतराष्ट्र से तुलना कर रहा है.

कांग्रेस की तो पूरी राजनीति ही धृतराष्ट्र नीति पर चल रही है. कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व भी इसी नीति पर चल रहा है. राहुल गांधी पुत्रमोह के कारण ही राजनीति में आए हैं. अब तो ऐसा लगने लगा है कि जैसे मजबूरी में उनसे राजनीति कराई जा रही है. उनके अंतःकरण को समझने की कोशिश ही नहीं की गई कि वह खुद क्या करना चाहते हैं.

बीजेपी कांग्रेस को परिवारवादी राजनीति का जनक ऐसे ही नहीं बताती है. पंडित जवाहरलाल नेहरू से चालू गांधी परिवार की पारिवारिक राजनीति इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, संजय गांधी, सोनिया गांधी से होते हुए प्रियंका गांधी और राहुल गांधी तक पहुंच गई है. मित्र का भावनात्मक शोषण करने के लिए सुदामा की बात करने वाले कमलनाथ को जब भी अवसर आया तब उन्होंने या तो पत्नी को या पुत्र को छिंदवाड़ा लोकसभा से सांसद बनाने का काम किया.

मध्यप्रदेश में कांग्रेस में जो भी स्थापित राजनीतिक परिवार हैं वह सभी पुत्रमोह से ग्रसित दिखाई पड़ते हैं. रविशंकर शुक्ला का परिवार तो छत्तीसगढ़ में है. मध्यप्रदेश में स्थापित राजनीतिक परिवारों में अर्जुन सिंह का परिवार और दिग्विजय सिंह का परिवार माना जाता है. इन दोनों परिवारों के राजनीतिक वारिस सियासत में रोल अदा कर रहे हैं.

मध्यप्रदेश में कांग्रेस के आज के हालात के पीछे राजनीतिक पंडित पुत्रमोह की नीति को ही कारण मानते हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया से लेकर सुरेश पचौरी तक कांग्रेस में जितनी भी टूट हुई है उस सब के पीछे पुत्रमोह की ही पृष्ठभूमि छिपी मानी जाती है.

जब कांग्रेस की राजनीति में धृतराष्ट्र नीति ही चल रही है तो फिर किसी से भी सुदामा बनने की अपेक्षा क्यों की जानी चाहिए? परिवारवाद की राजनीति तानाशाही की राजनीति ही कही जा सकती है. जहां भी तानाशाही का दौर है, वहां परिवार में ही नेतृत्व की अदला-बदली होती है. डेमोक्रेसी में जनादेश नेतृत्व निर्धारित करता है. परिवारवादी राजनीति द्वारा डेमोक्रेटिक लीडर को तानाशाह बताने की कोशिश शायद इसीलिए की जाती है कि लोकतंत्र का चीरहरण किया जा सके.

धृतराष्ट्र के सामने दुर्योधन ने जिस तरह से द्रोपदी का चीरहरण किया था वैसा ही चीरहरण लोकतंत्र का हो रहा है और यह सब सियासी धृतराष्ट्र नीति के कारण ही हो रहा है. द्रौपदी की रक्षा तो कृष्ण ने की थी, भारत के लोकतंत्र की रक्षा देश के मतदाताओं के हाथों में है. लोकतंत्र का चीर हरण करने की मानसिकता ही तानाशाह तानाशाह चिल्लाकर अपने कुकर्मों को ढकने की कोशिश करती है.

राजनीति के धृतराष्ट्र अगर जनादेश में पहचान लिए जाएंगे तो फिर लोकतंत्र के असली मालिक को सुदामा रहने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. लोकतंत्र के कृष्ण उसे सम्मान से जीवनयापन और समृद्धि तक निश्चित ही पहुंचने देंगे. अशुद्ध अंतःकरण पाखंड की राजनीति को पालित पोषित करती है.

कमलनाथ छिंदवाड़ा को अब तक अपना गढ़ मानते रहे हैं. अब छिंदवाड़ा के लोग उनका साथ छोड़ते जा रहे हैं. उनके निकटतम मित्र भी दूर जा रहे हैं. इसीलिए उन्हें सुदामा याद आ रहा है. जब वे राजनीति की सफलता की सीढ़ियां चढ़ रहे थे तब तो मित्रों, समर्थकों और शुभचिंतकों को सुदामा बनाए रखने में ही अपना भविष्य देख रहे थे.

कमलनाथ की संपत्ति में जिस तेजी से इजाफा हुआ है उस तेजी से अगर छिंदवाड़ा का विकास हुआ होता तो फिर वहां की स्थिति और हालात ऐसे नहीं होते. कमलनाथ के सांसद बेटे नकुलनाथ ने लोकसभा चुनाव के अपने एफिडेविट में जो संपत्ति बताई है वह 5 साल में 156 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ी है. छिंदवाड़ा में कौन सा ऐसा सुदामा है जिसकी संपत्ति का ग्रोथ रेट यह रहा हो? यह ग्रोथ  सैकड़ों करोड़ की है.

जीवन में सब कुछ जब खत्म होने लगता है, जो भी रेत का महल तैयार किया गया है जब वह ढहने लगता है तब भी अगर जीवन के सत्य को स्वीकार कर लिया जाए तो कल्याण ही होगा. कमलनाथ राजनीति की अपनी अंतिम लड़ाई में भी मित्रों के भावनात्मक शोषण के लिए सुदामा की सीख दे रहे हैं. सुदामा कृष्ण के मित्र होते हैं. जिनकी मित्रता पदों से है, कुर्सी से है, धन-संपत्ति और वैभव से है, उनके मुखारविंद से सुदामा की मित्रता का जिक्र भी शोभा नहीं देता है.