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पृथक-पृथक ढंग से विद्रूप होती ऋतुयें

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Thu , 31 Jan

सार

आधुनिक सुख-सुविधाओं और नवोन्नत तकनीकों-प्रौद्योगिकियों से युक्त अमेरिका जैसा देश अग्नि-आपदा के सामने निरुपाय व असहाय प्रतीत होता है, इस आग को लगे हुए एक सप्ताह से अधिक समय हो चुका है। लाखों लोग अपना जलता, राख होता हुआ घरबार छोडक़र पलायन कर चुके हैं, अग्नि के प्रचंड प्रसार की समयावधि में पलायन हुआ तो खाली घरों, भवनों, संरचनाओं, परिसरों, कार्यालयों में लूटपाट की घटनाएं भी हुईं..!!

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विस्तार

यह साल अर्थात् दो हजार पच्चीस मौसम की विचित्र-विचित्र हलचलों के कारण भयभीत कर रहा है। शुरुआत में ही तिब्बत में भूकंप आया। अमेरिका के बड़े महानगर कैलिफोर्निया के धनाढ्य प्रांत लॉस एंजिलिस की वनाग्नि ने भी जनवरी के प्रथम सप्ताह में व्यापक विनाश कर दिया है। इस विनाशलीला में अब तक 24 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। सोलह लोग लापता हैं। हजारों एकड़ वनक्षेत्र, आवास क्षेत्र, चल-अचल संपत्तियां जलकर भस्म हो गई हैं। 

आधुनिक सुख-सुविधाओं और नवोन्नत तकनीकों-प्रौद्योगिकियों से युक्त अमेरिका जैसा देश अग्नि-आपदा के सामने निरुपाय व असहाय प्रतीत होता है। इस आग को लगे हुए एक सप्ताह से अधिक समय हो चुका है। लाखों लोग अपना जलता, राख होता हुआ घरबार छोडक़र पलायन कर चुके हैं। अग्नि के प्रचंड प्रसार की समयावधि में पलायन हुआ तो खाली घरों, भवनों, संरचनाओं, परिसरों, कार्यालयों में लूटपाट की घटनाएं भी हुईं। ऐसी घटनाओं की ओट से लुटेरों के रूप में विद्यमान मनुष्यों का आकलन किया जाए तो इनके बारे में यही अनुभव होता है कि इनमें विपदावधि में भी प्रकृति और मनुष्यता के लिए संवेदना नहीं उभरी। अमेरिका विश्व का सर्वाधिक शक्तिशाली देश है। उसके पास जीवन जीने व संभालने के सबसे आधुनिक एवं उन्नत साधन हैं। उसके पास देश व लोगों की रक्षा-सुरक्षा के लिए अत्याधुनिक मशीनें हैं।

इसके बाद भी पूरा अमेरिका अपने एक महत्त्वपूर्ण नगर लॉस एंजिलिस में अपेक्षानुरूप अग्निदहन रोक पाने में विफल सिद्ध हुआ है। यह घटना जगत की संपूर्ण मानवजाति को यही शिक्षा देती दिख रही है कि प्रकृति व पर्यावरण का अत्यधिक अनुचित दोहन रोक दो, बंद कर दो। आश्चर्य ये है कि संपूर्ण विश्व में जब अधिसंख्य क्षेत्र शीतऋतु के प्रभाव में हैं और अमेरिका में भी शीताधिकता परिव्याप्त है, उस समयावधि में लॉस एंजिलिस के समीपस्थ पर्वत श्रृंखलाओं के वनों में आग लगना और इसका विनाशक बनकर फैलना, वैज्ञानिक विश्व की समझ से परे है। यह आग क्यों लगी, इसका ठोस कारण अभी तक ज्ञात नहीं हो पाया है। आग के तेजी से भडक़ने और फैलने का एकमात्र कारण तो तेज चलती हवा के रूप में स्पष्ट दिखाई देता है, किंतु यह भी आश्चर्य से कम नहीं कि ऐसी हवा इस मौसम में क्यों चल रही है। प्राय: इस मौसम में न तो ऐसा अग्निकांड ही अभिलेखित आधुनिक दुनिया में पहले कभी हुआ और न ही कभी ऐसी हवाएं चलीं, जिनके कारण वनाग्नि ने लाखों लोगों के आवास सहित उनका पूरा भौतिकीय जनजीवन ही ध्वस्ताधूत कर दिया हो। 

व्यतीत कुछ वर्षों में अमेरिका का अग्निकांड सबसे विचित्र प्राकृतिक विपदा है। दुनिया को प्राकृतिक अस्थिरता, असंतुलन एवं असहजता से ग्रस्त करने के मूकदोषी तथाकथित वैज्ञानिकों के लिए अग्निदहन का यह प्रसंग शोध का विषय होना चाहिए। वे इस पर शोध करेंगे भी। वे ही क्यों, दुनिया के सभी वैज्ञानिक अपने-अपने हितों व स्वार्थ सिद्धियों के लिए इस संदर्भ में शोधपरक अवश्य बनेंगे। ऐसे ही वर्तमान से पहले की असंख्य आपदाओं, विपदाओं और अतिवृष्टियों पर भी अनेक शोध होते रहे हैं, किंतु उनसे दुनिया के जनजीवन का भविष्य प्राकृतिक रूप में सुरक्षित नहीं हो सका है। दिन-प्रतिदिन और यहां तक कि एक दिन में भी प्रहर-प्रतिप्रहर पृथ्वी, नभ, जल, वायु, अग्नि का प्राचीन संतुलित चक्र विकृत होता जा रहा है। प्रति वर्ष एक ही ऋतु पृथक-पृथक ढंग से विद्रूप हो रही है। 

हरेक वर्ष ऋतुओं का अपना स्वरूप ही प्रतिकूल ढंग से परिवर्तित हो रहा है। उधर अमेरिका में शीतऋतु में अग्निकांड हो रहा है, तो इधर चीन में शीतजन्य एक नया विषाणु वातावरण में फैल चुका है। सन् 2019 में चीन से प्रसारित कोरोना महामारी के बाद अब पुन: शीतऋतु के बदले हुए रूप में चीन में एक नया विषाणु फैल गया है। इसने वहां कई लोगों को रोगग्रस्त कर दिया है। वृद्धजन एवं बच्चे इससे अधिक प्रभावित हैं। इस कारण कई लोग अपने प्राण गंवा चुके हैं। दुनिया इसे चीन द्वारा फैलाया गया नया स्वास्थ्य संकट समझ रही है, किंतु संभवत: यह भी ऋतुविकृति का ही दुष्परिणाम प्रतीत हो रहा है। 

ऋतुओं की विकृतियों के उत्सर्जन, आवृत्ति और विघटन को पर्याप्त ढंग से समझने के लिए अभी अमेरिका, चीन या अन्य देशों के वैज्ञानिक व चिकित्सक सक्षम नहीं हैं। जैसे अमेरिका में फैली अग्नि के प्रामाणिक कारक अज्ञात हैं, वैसे ही चीन में नए विषाणु के उत्सर्जन के कारक भी अज्ञात ही हैं। इसी समयावधि में जापान भी भूकंप से प्रभावित हुआ है। वहां सुनामी आने की आशंकाएं भी प्रकट की जा रही हैं। वर्ष के आरंभिक माह में ही पूरी दुनिया में प्राकृतिक आपदाओं की अधिकता दिख रही है। शीत ऋतु में सामान्य व प्रचलित शीतजन्य कष्टों से तो जनजीवन घिरा ही हुआ है, साथ ही पर्यावरण की अप्रत्याशित और अबूझ विपदाएं भी जीवन को पूरी तरह असुरक्षित कर रही हैं।

ऐसे में कर्ताधर्ताओं, धन-संसाधन संपन्न व्यक्तियों, पूंजीपतियों, शासकों को ही नहीं बल्कि लोगों को भी निरंतर अपने हृदय का पक्ष सुनना होगा। अब जीवित श्वास लेते मनुष्यों को बुद्धिमत्ता से अधिक आत्मचेतना के साथ जीवन-जगत के बारे में सोचना होगा। बुद्धि के दुष्परिणाम दिनोंदिन भीषण रूप में सामने आ रहे हैं। दुनिया का भौतिक विज्ञान व वैज्ञानिक कितनी ही विद्वता, व्यावसायिकता एवं सकारात्मकता के साथ लोककल्याण की दिशा में अपने प्रयोग करें, किंतु हर बार अंतत: अभिशाप का विघटन ही लोकसमाज को झेलना पड़ता है। विज्ञान का वरदान पक्ष स्वप्नातीत हो चुका है। इसीलिए अब हृदय, आत्मा और संवेदना के साथ जीवन-यात्रा करने का समय आ चुका है। ऐसा करे बिना प्रकृति शांत नहीं होगी। यदि अभी इस समय से दुनिया मूलतत्त्वों से छेड़छाड़ न करने का संकल्प लेकर सादगी से जीवन जीना आरंभ करती है, तो ऐसे इस तरह चार-पांच सौ वर्षों तक जीने-रहने के अभ्यास के उपरांत कहीं जाकर प्राकृतिक संतुलन पुनस्र्थापित हो सकेगा। भारत में प्रकृति के पंचतत्त्वों को ईश्वर के संजीवित प्रतिनिधियों के रूप में पूजने का प्रचलन प्राकृतिक संतुलन के ध्येय हेतु सर्वोत्तम सार्वजनिक अभ्यास है। 

इन दिनों महाकुंभ में आस्थावान व्यक्तियों द्वारा ऐसा ही अभ्यास किया जा रहा है। युग की गति, घटी, घड़ी व स्थिति व्यक्तियों का आह्वान कर रही है कि महाकुंभ के प्रकाश-मार्ग से होते हुए धर्म, भक्ति एवं आस्था के सन्मार्ग पर प्रशस्त हों।