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पूरा समागम शरीर, विचार, भाव, शुद्धि के प्रवाह का संगम

सार

श्रद्धालु महाकुंभ के अमृत स्नान का पुण्य ले रहे हैं, तो सियासत मृत्युकुंभ की गिद्ध दृष्टि प्रकट कर रही है. ग्रह नक्षत्र और ज्योतिषीय गणनाके हिसाब से पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक महाकुंभ की घड़ी थी. महाशिवरात्रि इसके साथ जुड़ गई है. अभी भी हर दिन लाखों श्रद्धालु देश के कोने-कोने से पहुंच रहे हैं..!!

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विस्तार

    बिना किसी निमंत्रण के कष्ट उठाकर कई किलो मीटर पैदल चलकर भी गंगा-जमुना-सरस्वती की त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगाने से कोई पीछे नहीं रहना चाहता. सनातन धर्म की चेतना में जागृति को तीर्थराज प्रयागराज के इस महाकुंभ से अमृत की बूंदे मिली हैं. यह चेतना बंधुत्व के विस्तार के साथ ही भारत में सनातन की ध्वजा को हिमालय की गरिमा प्रदान करेगा.

    महाकुंभ की तैयारी के साथ ही सनातन धर्म विरोधी सियासत भी शुरू हो गई थी. कभी बदइंतजामी के नाम पर, कभी ज्यादा बजट खर्च करने के नाम पर, कभी भगदड़ के नाम पर, तो कभी महाकुंभ में विधर्मियों के प्रवेश को प्रतिबंधित करने के नाम पर सियासत खेली गई. महाकुंभ सनातन और हिंदुत्व की राजनीति को बहुत लंबे समय तक प्रभावित करने वाला है, इसलिए विरोधी राजनीति करने वाले इसके विरुद्ध पॉलीटिकल स्टैंड लेकर अपने वोट बैंक को मैसेज देने का काम कर रहे हैं.

    महाकुंभ का प्रबंधन इससे बेहतर हो नहीं सकता था. मौनी अमावस्या के दिन भगदड़ के कारण हुई घटना निश्चित रूप से इस प्रबंधन पर एक कलंक कही जा सकती है, लेकिन पूरे महाकुंभ को इसी दाग से जोड़कर नहीं देखा जा सकता. जो लोग इसे दुर्घटना या बदइंतज़ामी की दृष्टि से ही देख रहे हैं, उनको सनातन धर्म और उसकी आस्थाके मर्म की अनुभूति नहीं है. 

    तीर्थराज प्रयागराज में गंगा-जमुना-सरस्वती के प्रवाह का संगम जीवन में पुण्य के लिए मौजूद है. महाकुंभ में संगम में अमृत स्नान का तो लाभ है ही, लेकिन केवल इसे स्नान की दृष्टि से ही नहीं देखा जा सकता. महाकुंभ के दिव्य अवसर को केवल बेकाबू भीड़ और सड़कों पर ट्रैफिक जाम की नजर से नहीं आंका जा सकता. महाकुंभ के पूरे समागम में सनातन और मनुष्यता का धर्म चारों तरफ प्रवाहित था. 

    पूरा समागम शरीर, विचार और भाव की शुद्धि के प्रवाह के रूप में देखा जा सकता था. पवित्र स्नान शरीर की शुद्धि का माध्यम है, तो पूजन और प्रार्थना विचार की शुद्धि का मार्ग है. महाकुंभ में भाव की शुद्धि के लिए हर तरफ साधना देखी जा सकती है. भाव शुद्धि में मैत्री, प्रेम, करुणा, दया, कृतज्ञता, सेवा, दान और तप का प्रवाह देखने लायक था. जो लोग सनातन की भाव सिद्धि की प्रेरणा महाकुंभ से नहीं ले सकते उन्हें ही बदइंतज़ामी और दुर्घटना प्रभावित कर सकती है. 

    जो लोग इसे मृत्युकुंभ कह रहे हैं, उन्हें भारतीय संस्कृति में मृत्यु की प्रतिष्ठा का ही ज्ञान नहीं है. कौन ऐसा राजनेता है जिसे अपनी मृत्यु की तिथि स्थान और समय का अनुमान है. संसार में मृत्यु ही केवल सत्य है, बाकी सब असत्य है. मृत्यु का स्थान समय और तरीका भी निश्चित . भारतीय संस्कृति के इस भाव को अगर स्वीकारा जाए तो हर मृत्यु धर्म-कर्म के अनुरूप ही है. हमारी संस्कृति तो आत्मा को अमर मानती है. मृत्यु शरीर की होती है, आत्मा तो पुनर्जन्म ले लेती है. इसलिए दुर्घटना में मृत्यु के नाम पर महाकुंभ को दूषित करने का कोई भी प्रयास ना केवल अक्षम्य है, बल्कि सनातन परंपरा के विरुद्ध है.

    महाकुंभ में 50 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं ने अमृत स्नान कर लिया है, जो श्रद्धालु वहां नहीं जा पाए हैं, उनके पास तक भी गंगा का अमृत जल परिचितों रिश्तेदारों के माध्यम से पहुंचा होगा. भारत का कोई ऐसा कोना नहीं होगा, कोई ऐसा सनातन धर्मी नहीं होगा, जो गंगाजल की अमृत बूदों से उपकृत नहीं हुआ होगा. पूरे महाकुंभ को केवल बेकाबू भीड़ और ट्रैफिक जाम से ही प्रचारित किया जा रहा है, जबकि पूरे महाकुंभ के दौरान सनातन धर्म के सभी अखाड़े साधु-संत और तपस्वी वहां मानव धर्म के गुणों को जी रहे थे. 

    प्रबंधन शासन का जरूर था, लेकिन महाकुंभ में उपस्थित हर श्रद्धालु एक दूसरे की मदद कर रहा था. मैत्री का भाव सनातन की सबसे बड़ी उपलब्धि है. इंसानियत सामाजिक न्याय और समानता के साथ आपसी प्रेम और भाईचारा पग-पग पर दिखाई पड़ रहा था. किसी श्रद्धालु को कष्ट होता दिखाई पड़ा, तो दूसरा श्रद्धालु मदद करते दिखा.  हर श्रद्धालु दूसरे की मदद और सहयोग कर रहा था. करोड़ों लोगों को भोजन, साधुओं के अखाड़ों और  आश्रमों में ही नहीं हो रहा था, बल्कि सर पर बोझ उठाए श्रद्धालु कष्ट सहकर भी अपने भोजन करने के पहले दूसरों को भोजन कराने की परंपरा निभा रहे थे. अन्न क्षेत्र तो ऐसे चल रहे थे, कि बुला-बुलाकर श्रद्धालुओं को भोजन कराया जा रहा था.

    दान दाताओं का तो जैसे वहां कुंभ लगा हुआ था. कई दान दाता तो दिखाई भी नहीं पड़ रहे थे. तरह-तरह के दान बुला-बुलाकर दिए जा रहे थे. जो सेवा देखना चाहता था, उसके लिए तो महाकुंभ जैसे स्वर्णिम अवसर था. चाहे बिछड़े लोगों को सही स्थान पर पहुंचाने की सेवा हो चाहे बीमार को इलाज के लिए अस्पताल पहुंचाने की सेवा हो और चाहे भूखे को खाना खिलाने की सेवा हो, हर व्यक्ति इसमें हाथ बंटाने के लिए लालायित दिखाई पड़ता था.

    महाकुंभ परमात्मा के प्रति कृतज्ञता का जीवंत प्रतीक बना हुआ था. गंगा की आरती हर घाट पर श्रद्धालुओं का मन हो रही थी. सूर्य और वायु की आराधना हर महाकुंभ के श्रद्धालु ने निभाई. परम शक्ति के प्रति कृतज्ञता ही मनुष्य की दिव्यता है, किसी डिवाइन ताकत ने महाकुंभ को दिव्य और सनातन गर्व के रूप में स्थापित किया है. करोड़ों लोगों की उपस्थिति और कोई बीमारी नहीं फैली सेनीटेशन बना रहा. यह भी महाकुंभ की बड़ी उपलब्धि है.

    धर्म कोई सौदा नहीं है, धर्म स्वयं को जानने का मार्ग है. जीवन के रहस्य को समझने के लिए स्वयं को और अहंकार को मिटाना पड़ता है, जो भी वीआईपी के अहंकार में है, जो राजनीतिक दल के नेता के घमंड में है, जो ब्य़ूरोक्रेसी के अभिमान से ग्रसित हैं, वह कभी महाकुंभ के भाव शुद्धि के प्रवाह को आत्मसात नहीं कर सकते हैं.

    अगला महाकुंभ प्रयागराज में बारह साल बाद आएगा. 2027 में नासिक में कुंभ होगा और 2028 में मध्य प्रदेश के उज्जैन में सिंहस्थ का दिव्य आयोजन होगा. महाकुंभ के अमृत से जागृत सनातन चेतना, शरीर, विचार और भाव शुद्धि के प्रवाह को भारत और विश्व में  फैलाएगा. इससे निश्चित रूप से समाज में सद्भाव बढ़ेगा. सनातन के प्रति प्रतिबद्ध राजनीतिक ताकतें निश्चित रूप से विधर्मी सियासत के निशाने पर रहेंगी.

    जब-जब चुनौती आई है, तब-तब सनातन मजबूत हुआ है. सनातन की जो चेतना जगी है, उसको अब अपने धर्म और लक्ष्य से डिगाना किसी के लिए भी संभव नहीं रहेगा.