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यमुना नदी तो ‘सफेद झाग’ हो गई

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Tue , 23 Oct

सार

पवित्र यमुना नदी इतिहास के पन्नों में खो गई है। वह अब या तो गंदा नाला है अथवा सफेद झाग का कोई गहरा गड्ढा..!!

janmat

विस्तार

देश की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण इस पराकाष्ठा तक पहुंच गया है कि यमुना नदी में पानी के स्थान पर ‘सफेद झाग’ बन गई  है। यह झाग प्रदूषित और जहरीला है। पवित्र यमुना नदी इतिहास के पन्नों में खो गई है। वह अब या तो गंदा नाला है अथवा सफेद झाग का कोई गहरा गड्ढा। यमुना किनारे औद्योगिक इकाइयों के कचरे का अपशिष्ट नदी में गिर रहा है। आखिर इन इकाइयों को वहां से हटाया क्यों नहीं गया? प्रदूषण के कणों से मिलकर कचरा सफेद झाग में तबदील हो रहा है। कई बार ऐसा एहसास होता है मानो यमुना नदी की सतह पर सफेद बादल बन गए हों, लेकिन यह झाग दिल्ली के खतरनाक और जानलेवा पर्यावरण का प्रतीक है। 

कहने को 8 सालों के दौरान यमुना की सफाई पर करीब 6856 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। यह राशि केंद्र सरकार ने बजट के तौर पर दिल्ली सरकार को दी है। राज्य सरकार ने 1000 करोड़ रुपए से अधिक का उपकर ‘प्रदूषण सेस’ भी दिल्लीवालों पर थोपा है। यह पूरी राशि कहां खर्च की गई, यमुना अब भी प्रदूषित और जहरीली क्यों है, तत्कालीन मुख्यमंत्री केजरीवाल ने सरेआम कहा था कि यमुना में डुबकी मारने की स्थिति न हो जाए, तो दिल्ली ‘आम आदमी पार्टी’ को वोट मत देना, करदाता का पैसा कहां फूंक दिया गया, इन तमाम सवालों के जवाब केजरीवाल एंड कंपनी को देने ही होंगे। 

दिल्ली के ‘गैस चैंबर’ में अदालतें भी मौजूद हैं। न्यायाधीश भी बसे रहने को अभिशप्त हैं। क्या वे ‘आप’ सरकार को तलब करके ये सवाल नहीं पूछेंगे? यह ‘सफेद झाग’ जानलेवा भी साबित हो सकता है। छठ पर्व की पूजा और स्नान के दिन बहुत दूर नहीं हैं। धार्मिक आस्था के लोग अब भी सफेद झाग की यमुना में अपने बच्चों का स्नान करवा रहे हैं। ऐसी तस्वीरें मीडिया में छपी हैं। या तो उन्हें सफेद झाग के जहरीले प्रभावों की जानकारी नहीं है अथवा वे धार्मिक तौर पर विवश हैं, लिहाजा उस सफेद झाग के संपर्क में हैं! ईश्वर न करे कि वे बच्चे बीमार हों, लेकिन कोई अनहोनी हो गई, तो क्या उसका अपराध दिल्ली सरकार पर चस्पा किया जाएगा?

सवाल यह है यह राजनीतिक जमात इतनी बेशर्म क्यों है कि यमुना की सफाई तक नहीं कराई जा सकी, जबकि सरकार को पर्याप्त बजट दिया गया था? करीब 10 साल तक केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने रहे और यमुना की निर्मलता और विरलता के जुमले उछालते रहे, अंतत: यमुना में जहरीला झाग पैदा हो गया। क्या लोकतंत्र में जवाबदेही की कोई गुंजाइश नहीं होती? 

राजधानी दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक बेहद खराब और गंभीर स्थिति में पहुंच चुका है। एक दर्जन से अधिक हॉट स्पॉट ऐसे हैं, जहां वायु का स्तर 300-400 या उससे अधिक हो गया है। देश की राजधानी की ‘हवा’ इतनी विषाक्त हो चुकी है कि आश्चर्य होता है। सांस घुटने लगा है, खांसी लगातार हो रही है, निमोनिया के केस भी आ रहे हैं, हार्ट अटैक अचानक होने लगे हैं। 

दिमागी बीमारियां भी उभर सकती हैं। जन्म लेने वाले शिशुओं के वजन कम हो सकते हैं। कुछ दीर्घकालीन बीमारियां भी पैदा हो सकती हैं। क्या राजधानी में जिंदगी जीना इतना दूभर होता है? चिकित्सक आगाह कर रहे हैं कि सांस से जुड़ी बीमारियां और उनके मरीज 30-40 प्रतिशत बढ़ चुके हैं, लेकिन सरकार फिर भी चिंतित नहीं है। 

राजनीतिक जमात बीमार नहीं पड़ती! बेशक इस मुद्दे पर ‘राजनीति’ जरूर होनी चाहिए, क्योंकि नए जनादेश की तारीख भी बहुत दूर नहीं है। पर्यावरण मंत्री गोपाल राय महज बयानबाज हैं या वह अभी बैठकें कर रहे हैं, समितियां गठित कर रहे हैं, अफसरों को निर्देश दे रहे हैं, एंटी स्मॉग गन तैनात करने के आदेश दिए जा रहे हैं, धूल के प्रदूषित कणों को नियंत्रित करने की कोशिशें भी जारी हैं, अंतत: सवाल यह है कि ये तमाम व्यवस्थाएं स्थायी रूप से क्यों नहीं की जा सकतीं, जबकि यह दिल्ली का निरंतर यथार्थ है कि वह प्रदूषण की राजधानी है? 

पराली से फैलने वाला प्रदूषण एक अन्य समस्या है। पंजाब और दिल्ली, दोनों जगह आम आदमी पार्टी की सरकारें हैं, लेकिन दिल्ली सरकार पंजाब को प्रदूषण फैलाने से रोक नहीं पाई है। इस संबंध में दिल्ली,पंजाब तथा हरियाणा सरकारों को एक साथ बैठकर समस्या का समाधान करवाना चाहिए।