पश्चिम और यूरोप की वर्चस्ववादी सत्ता के समानांतर अब ब्रिक्स की ताकतवर उपस्थिति भी है, लेकिन वह ‘पश्चिम-विरोधी’ नहीं है, ब्रिक्स नेतृत्व ने स्पष्ट किया है कि ब्रिक्स ‘गैर-पश्चिम’ समूह है, जिसमें करीब 450 अरब डॉलर की कुल अर्थव्यवस्था वाले देश हैं..!!
और अब ब्रिक्स 10 सदस्य देशों का समूह हो गया है, क्योंकि ईरान, मिस्र, इथियोपिया, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब को नई सदस्यता दी गई है। करीब 30-35 अन्य देश भी ब्रिक्स से जुडऩा चाहते हैं, जिनमें पाकिस्तान तो कुछ ज़्यादा उतावला है, लेकिन भारत ने उसकी संभावनाओं को खारिज करवा दिया है। यदि जी-7 पश्चिमी देशों का समूह है, तो ब्रिक्स ‘ग्लोबल साउथ’ का प्रतिनिधित्व करता है।
पश्चिम और यूरोप की वर्चस्ववादी सत्ता के समानांतर अब ब्रिक्स की ताकतवर उपस्थिति भी है, लेकिन वह ‘पश्चिम-विरोधी’ नहीं है। ब्रिक्स नेतृत्व ने स्पष्ट किया है कि ब्रिक्स ‘गैर-पश्चिम’ समूह है, जिसमें करीब 450 अरब डॉलर की कुल अर्थव्यवस्था वाले देश हैं। दुनिया की करीब 45 प्रतिशत आबादी ब्रिक्स के दायरे में है, लिहाजा अब इसकी सामूहिक ताकत को समझा जा सकता है। जी-7 और ब्रिक्स के कुछ सदस्य जी-20 में भी शामिल हैं, लिहाजा ये समूह परस्पर सहयोगी हो सकते हैं, दुश्मन नहीं हो सकते। रूस में सम्पन्न ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का बुनियादी थीम था-वैश्विक विकास और सुरक्षा के लिए ‘बहुपक्षीयवाद’ को मजबूत करना। प्रधानमंत्री मोदी ने भी यह मुद्दा बार-बार उठाया और ब्रिक्स के विस्तार का भी आग्रह किया।
रूस के ही एक गणराज्य की राजधानी कजान में ब्रिक्स का सम्मेलन कामयाब रहा, यह अपने आप में महत्वपूर्ण निष्कर्ष है। रूस यूक्रेन के साथ युद्ध में संलिप्त है, फिर भी वहां कोई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन करना वाकई आश्चर्यजनक है। बहरहाल कजान सम्मेलन के बाद जो साझा घोषणापत्र जारी किया गया, उसमें कुछ मुद्दे पश्चिमी देशों की ‘दादागीरी’ के खिलाफ हैं और उनके चरित्र को भी चुनौती देते हैं। मसलन, अमरीका ने अकेले रूस पर करीब 20,000 प्रतिबंध थोप रखे हैं। ईरान पर भी पाबंदियां हैं। ब्रिक्स ने ऐसी आर्थिक, व्यापारिक और जबरन पाबंदियों को नकारा है। प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद पर, कुछ बड़े देशों के, दोहरे रवैये की निंदा की है।
उन्होंने किसी का भी नाम नहीं लिया, लेकिन दुनिया उन्हें जानती है। ब्रिक्स घोषणापत्र में आतंकवाद को भी शामिल किया गया है और साझी लड़ाई का आह्वान भी किया गया है, लेकिन आतंकवाद पर ही ब्रिक्स के कुछ देशों में, द्विपक्षीय स्तर पर, विरोधाभास भी हैं। सामूहिक स्तर पर उन्हें बेमानी माना गया है। संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद में व्यापक सुधार को भी मुख्य मुद्दा मान कर कजान घोषणापत्र में उल्लेख किया गया है। ब्रिक्स शुरुआत में आर्थिक और कारोबारी समन्वय के मुद्दों तक ही विमर्श करता था, लेकिन कजान सम्मेलन के दौरान इजरायल के हमलावर व्यवहार की निंदा और गाजा-पट्टी में उसके किए गए हमलों की भत्र्सना की गई है।
इजरायल से तत्काल और स्थायी संघर्ष-विराम करने की मांग भी की गई है, लेकिन अक्तूबर, 2023 में हमास ने इजरायल पर जिस तरह का कातिलाना हमला किया था, घोषणापत्र में उसका कोई उल्लेख नहीं है। माना जाता है कि भारत ने जून, 2024 में विदेश मंत्रियों की बैठक में इस मुद्दे को रखा था, लेकिन ब्रिक्स देशों के मंत्रियों में सहमति नहीं बन पाई, लिहाजा हमास का हमला घोषणापत्र से बाहर ही रहा। हम हमास के उस हमले को ‘बड़ा आतंकवाद’ मानते हैं। उसी के कारण आज भी गाजा और लेबनान में युद्ध के हालात बने हैं। तबाहियां और बर्बादियां हो रही हैं, लेकिन विश्व का कोई भी संगठन और समूह युद्ध-विराम कराने में अभी तक सफल नहीं हुआ है। बहरहाल जो ब्रिक्स आर्थिक विषयों तक सीमित रहता था, वह अब भू-राजनीति, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण, विज्ञान-प्रौद्योगिकी सरीखे विषयों पर भी विमर्श करता है और अपने सरोकार व्यक्त करता है।
पश्चिम का मानना है कि जलवायु परिवर्तन को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विषय होना चाहिए, क्योंकि इससे अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और शांति पर असर पड़ सकता है, लेकिन भारत समेत अन्य विकासशील देशों का यह मानना है कि सुरक्षा परिषद की इसमें कोई भूमिका ही नहीं होनी चाहिए। ब्रिक्स की जो शुरुआती नीतियां थीं, आज तक उनमें कई बदलाव आ गए हैं। भारत अपने कारोबार, वैज्ञानिक और प्रौद्योगिक विस्तार के लिए पश्चिमी देशों से भी जुड़ा है। पश्चिमी देश भारत में व्यापक निवेश कर रहे हैं, लेकिन भारत ब्रिक्स की ‘ग्लोबल साउथ’ वाली नीतियों का रचनाकार भी है। बहरहाल ब्रिक्स ने उस दुनिया के देशों को मंच दिया है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपेक्षित रहे हैं। अब उस दुनिया का भी विकास संभव होगा।