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“डिजिटल गिरफ्तारी” जैसी कोई वैधानिक कार्यवाही नहीं 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Fri , 07 Nov

सार

कुछ महीने पहले एक बेहद चौंकाने वाला डिजिटल अरेस्ट का घटनाक्रम सामने आया, खुद को सीबीआई अधिकारी बताने वाले एक अंतर्राज्यीय गिरोह ने पद्मभूषण से सम्मानित और वर्धमान समूह के चेयरमैन एसपी ओसवाल से सात करोड़ रुपये की ठगी की थी, उन्हें दो दिनों तक डिजिटल भयचक्र में रखा गया। उन्हें किसी को फोन करने या संदेश भेजने से रोका गया..!!

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विस्तार

अपराध की दुनिया कह लें या ऑनलाइन फरेब की दुनिया हाल ही में नया शब्द जुड़ा है “डिजिटल गिरफ्तारी।“ पहली नजर में विज्ञान कथा जैसा लगने वाला शब्द फिलहाल वास्तविक जीवन के लिये खतरा बनता जा रहा है। वे सरकारी आंकड़े डराने वाले हैं कि इस साल की पहली तिमाही में नागरिकों से इस धोखाधड़ी के जरिये एक अरब बीस करोड़ की ऑनलाइन लूट हुई। 

बीते रविवार को मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री द्वारा इस संकट का जिक्र करने के बाद यह मुद्दा राष्ट्रीय विमर्श में आ गया। उन्होंने देशवासियों से इस भय से मुक्त होने का आह्वान किया और कहा कि उन्हें इससे बचने के लिये सजगता का मंत्र अपनाना है। उन्होंने लोगों से कहा कि वे घबराएं नहीं। साथ ही कहा कि सरकारी एजेंसियां कभी व्हाट्स ऐप या स्काइप आदि माध्यमों के जरिये नागरिकों से संवाद नहीं करती हैं। ये एजेंसिया कभी भी पैसे की मांग नहीं करती हैं। तेजी से पनप रहे इस संकट से बचने के लिये उन्होंने मंत्र दिया कि रुको, सोचो और एक्शन लो। 

भयादोहन करके लोगों को लूटने वाले व्हाट्स ऐप आदि से कॉल करके डराते हैं कि वे पुलिस, सीबीआई, आरबीआई या नारकोटिक्स विभाग से बोल रहे हैं। कभी कहा जाता है कि पकड़ी गई नशे की खेप में उनकी भूमिका है। कहा जाता है कि ड्रग्स वाले पार्सल जब्त होने के बाद यह सूचना दी जा रही है। उनसे कहा जाता है कि या तो वे मोटी रकम जमा करें या फिर परिणाम भुगतने के लिये तैयार रहें। ये शातिर अपराधी अक्सर यह दावा करते हैं कि ठगे जाने वाले व्यक्ति के बारे में वे बहुत कुछ जानते हैं। भय व अज्ञान के कारण बहुत सारे भोले-भाले लोग उनके बिछाए जाल में फंसकर मोटी रकम चुका देते हैं। यह विडंबना ही है कि नागरिकों को डिजिटली सशक्त करने के लिए भारत सरकार के महत्वाकांक्षी डिजिटल इंडिया कार्यक्रम ने सफलता तो पाई लेकिन लोगों को साइबर अपराधों के प्रति संवेदनशील भी बना दिया।

कुछ महीने पहले एक बेहद चौंकाने वाला डिजिटल अरेस्ट का घटनाक्रम सामने आया। खुद को सीबीआई अधिकारी बताने वाले एक अंतर्राज्यीय गिरोह ने पद्मभूषण से सम्मानित और वर्धमान समूह के चेयरमैन एसपी ओसवाल से सात करोड़ रुपये की ठगी की थी। उन्हें दो दिनों तक डिजिटल भयचक्र में रखा गया। उन्हें किसी को फोन करने या संदेश भेजने से रोका गया। इतना ही नहीं जालसाजों ने वीडियो कॉल के जरिये सुप्रीम कोर्ट की फर्जी सुनवाई आयोजित की। कल्पना कीजिए इतने प्रभावशाली व्यक्ति को जब साइबर अपराधियों ने असहाय बना दिया, तो आम आदमी की क्या गति होगी? निस्संदेह, इससे बचने के लिये लोगों को सतर्क रहने की जरूरत है। 

खासकर उन बुजुर्गों को जो ऑनलाइन व्यवहार के प्रति ज्यादा जागरूक नहीं हैं। हालांकि, साइबर अपराधी नित नये धोखाधड़ी के हथकंडे अपना रहे हैं,लेकिन फिर भी जागरूकता बेहद जरूरी है। साइबर सुरक्षा एजेंसियों को सतर्कता, सजगता व तत्परता से ऐसे अपराधियों पर शिकंजा कसना होगा। नागरिक अनजान लोगों के फोन कॉल,ई-मेल या संदेश के प्रति सचेत रहें। उन्हें धैर्य के साथ सोचना होगा कि जिस कथित काल्पनिक अपराध के लिये उन्हें डराया-धमकाया जा रहा है क्या उससे वास्तव में उनका कोई लेना -देना है? 

यूं तो भय-आशंका का काल्पनिक चित्रण करके साइबर अपराधी लोगों की सोचने-समझने की क्षमता पर प्रहार करते हैं, ध्यान रहे कि कोई कोर्ट या सरकारी एजेंसी तत्काल ऑनलाइन कार्रवाई नहीं करती और न ही पैसे की मांग करती है। भारतीय साइबर सुरक्षा एजेंसियों की आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम को उन तथ्यों से आम लोगों को जागरूक करना चाहिए, जिनके जरिये लोगों के खाते खाली किये जा रहे हैं। लोगों को बताये जा रहे विभागों से सीधे संपर्क करके वस्तुस्थिति का संज्ञान लेना चाहिए। यदि अपराधी भयाक्रांत करते हैं तो घबराना नहीं चाहिए। किसी अपराधी को पैसे ट्रांसफर करने से पहले, इस बारे में परिवार के लोगों, मित्रों व पुलिस को सूचित करना चाहिए। लोगों को अपराधियों के संदेश का स्क्रीन शॉट लेना चाहिए, फोन कॉल रिकॉर्ड आदि सबूत सुरक्षित रखने चाहिए। साथ ही साइबर हेल्पलाइन 1930 पर डायल करें व स्थानीय पुलिस को सूचित करें।