लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद राहुल की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के समापन का महत्वपूर्ण अवसर ‘शक्ति की आस’ में ‘शक्ति के विनाश’ में बदल गया. राहुल का यह कोई पहला सेल्फ गोल नहीं है. इसके पहले भी कई बार अपनी बातों से शक्तिहीन होते चले गए..!!
जब भी धर्म की बात आती है, धर्म के किसी उदाहरण की बात आती है तब राहुल गांधी ने जब-जब कोई बात कही है उसके उल्टे मतलब ही निकले हैं. वे मुंबई में भले ही कहना कुछ चाह रहे हों लेकिन कह ऐसा गए कि हिंदू धर्म के शब्द ‘शक्ति’ से उनकी लड़ाई है. चुनाव की लड़ाई पॉलिटिकल शक्ति के लिए चल रही है. दोनों गठबंधन केंद्र सरकार की शक्ति के लिए आसुरी और देवीय शक्ति के सहारे टकरा रहे हैं.
नरेंद्र मोदी के परिवार पर उठाया गया सवाल लोकसभा चुनाव में ‘मोदी के परिवार’ के रूप में चुनावी अभियान का रूप पहले ही ले चुका है. मुंबई में ‘शक्ति’ से लड़ाई का गलत उदाहरण भी ‘नारी शक्ति’ के पक्ष और विपक्ष में सिमटता दिखाई पड़ रहा है.
पीएम नरेंद्र मोदी का यह इतिहास रहा है कि विपक्षी नेताओं के शब्दों को वे जन भावनाओं से जोड़कर अपने हक में माहौल बना लेते हैं. राहुल गांधी अब भले ही इस पर अपनी सफाई दे रहे हों लेकिन नरेंद्र मोदी ने हिंदू धर्म में शक्ति की गरिमा और गौरव से इसको जोड़ते हुए चुनावी मुद्दे के रूप में उछाल दिया है. अगर राहुल गांधी या कांग्रेस मुंबई की सभा के बाद ही राहुल गांधी के वक्तव्य की गलती समझ लेते और उसका स्पष्टीकरण दे देते तब जरूर उसे राजनीतिक नुकसान से बचाया जा सकता था लेकिन अब तो राहुल की ‘बोली की गोली’ निकल चुकी है.
इसने जिन-जिन दिलों को आहत किया है वह सभी हाथ कांग्रेस का साथ कैसे देंगे? वैसे भी भारत का चुनावी इतिहास यही इशारा कर रहा है कि नारी शक्ति पीएम मोदी और बीजेपी को बढ़चढ़ कर समर्थन कर रही है. पिछले चुनाव परिणाम के आंकड़े भी यही साबित कर रहे हैं. ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ बनाकर महिलाओं को लोकतंत्र में आरक्षण देने के बाद यह पहला चुनाव है. दशकों से जो कानून नहीं बन पा रहा था उस महिला आरक्षण कानून को बनाकर पीएम मोदी ने नारी शक्ति के बीच अपनी पकड़ मजबूत की है. चंद्रयान के दक्षिण ध्रुव पर लैंडिंग स्थान को शिव शक्ति का नाम देकर पहले ही देश की नारी शक्ति की भावनाओं को और उनके गौरव को राजनीतिक सम्मान दिया गया है.
राहुल गांधी न्याय यात्रा के दौरान उज्जैन में महाकाल के दर्शन के बाद कहते हैं कि मोदी चाहते हैं कि भारत का युवा मोबाइल में लगा रहे, जय श्री राम का नारा लगाए और भूखों मर जाए. भगवान राम की आस्था को भूख से जोड़ने की उनकी नासमझी हिंदू धर्म के आस्थावानों के लिए कष्टकारी ही थी.
हिंदू धर्म और हिंदुत्व की राजनीति आज भारतीय राजनीति की मुख्यधारा बनी हुई है. तुष्टिकरण की नकारात्मकता से शुरू हुई हिंदुत्व की राजनीति, विकास की सकारात्मकता पर अपनी बुनियाद को मज़बूत किये हुए है. सॉफ्ट हिंदुत्व की लाइन लेने के बाद भी कांग्रेस को समर्थन नहीं मिल पा रहा है. कांग्रेस से जाने वाले वरिष्ठ नेताओं की ओर से भी यही कहा जा रहा है कि पार्टी के अंदर हिंदू, सनातन धर्म और हिंदुत्व की आवाजों को दबाया जा रहा है. अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के आमंत्रण को कांग्रेस द्वारा अस्वीकार करने पर भी कांग्रेसजनों की निराशाजनक प्रतिक्रिया सामने आई है. सनातन धर्म पर डीएमके की प्रतिगामी प्रतिक्रियाओं पर भी कांग्रेस को खामियाजा उठाना पड़ रहा है.
कांग्रेस बीजेपी और आरएसएस की विचारधारा से लड़ाई का दावा करती है लेकिन कांग्रेस अपनी विचारधारा को ही सुरक्षित नहीं रख पा रही है. कोई भी सामान्य नागरिक अगर यह जानना चाहे कि कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता पर क्या विचारधारा है? हिंदुत्व पर क्या विचारधारा है? राम मंदिर पर क्या विचारधारा है? ज्ञानवापी और मथुरा पर क्या विचारधारा है? राष्ट्रवाद पर क्या विचारधारा है? तुष्टिकरण पर क्या विचारधारा है? परिवारवाद पर क्या विचारधारा है? भ्रष्टाचार पर क्या विचारधारा है? गठबंधन की राजनीति पर क्या विचारधारा है? तो भ्रमपूर्ण स्थितियों के अलावा स्पष्टता दिखाई नहीं पड़ेगी.
गठबंधन की राजनीति में सनातन धर्म विरोधियों से हाथ मिलाना क्या कांग्रेस की विचारधारा है? पंजाब में अलग-अलग लड़ना और दिल्ली में आम आदमी पार्टी से समझौता करना क्या गठबंधन की विचारधारा है? मार्क्सवादी और कांग्रेस की विचारधारा में क्या कोई अंतर रह गया है?
कांग्रेस के मीडिया विभाग की राहुल गांधी के शक्ति के खिलाफ लड़ाई को लेकर दिए बयान पर सफाई में जो प्रतिक्रिया आई है उसमें कहा गया है कि कांग्रेस और बीजेपी के बीच में देवीय और आसुरी शक्तियों के बीच लड़ाई है. आसुरी शक्ति की समझ आसुरी मस्तिष्क को ही हो सकती है. देवीय शक्ति का दावा करने वाली कांग्रेस राम मंदिर जाने से परहेज करती है, प्राण प्रतिष्ठा का आमंत्रण अस्वीकार करती है.
भारतीय संस्कृति, हिंदू और सनातन धर्म में सृजन के रूप में नारी शक्ति की पूजा मानव जीवन का ध्येय है. भारतीय संस्कृति की बारीकियों को बिना समझे हुए हिंदू धर्म में ‘शक्ति’ शब्द का उल्लेख कर उसके खिलाफ लड़ाई का आह्वान करने वाले राहुल गांधी जो चाहे सफाई दे दें लेकिन सृजन की प्रतीक नारी शक्ति की राजनीतिक समझ कांग्रेस की सफाईयों से बहुत आगे निकल चुकी है.
शक्ति सेवा का साधन हो सकती है लेकिन शक्ति का अहंकार पतन का कारण बनता है. शक्ति पर भद्रता की विजय होती है. हम्ब्लनेस के आगे कोई शक्ति टिक नहीं सकती. राहुल गांधी की मां सोनिया गांधी ईसाई धर्म में विश्वास करती हैं. इस धर्म के प्रवर्तक जीज़स को सूली दी गई थी तब उनके पास परमात्मा की वह शक्ति थी कि वह अपने को पुनर्जीवित कर सकते थे लेकिन उन्होंने हम्ब्लनेस में मृत्यु का वरण करके भद्रता को शक्ति पर विजय दिलाई थी.
अगर गिरना ना हो तो चढ़ने से सावधान रहना होगा. विपक्षी गठबंधन राहुल गांधी को इसीलिए चढाने में लगा हुआ है क्योंकि वह उन्हें गिराना चाहेंगे. सही दृष्टि से देखा जाएगा तभी आप यह देख सकते हो कि वह गिराने का ही इंतजाम कर रहे हैं.
किसी ने बहुत अनुभव के बाद एक बहुत अनूठी बात लिखी है कि सभी बड़े लोग अंततः बोर सिद्ध होते हैं उबाने वाले सिद्ध होते हैं. सभी महान लोगों की जीवन यात्रा अंततः इसी ओर इशारा करती है. राहुल गांधी कांग्रेस के लिए सबसे बड़े और सबसे संभावना वाले नेता माने जाते हैं. उनकी राजनीतिक यात्रा 20 साल से ज्यादा समय से चल रही है. उनकी राजनीतिक उपलब्धियां बहुत सराहनीय तो नहीं कहीं जा सकती. इसके विपरीत अब ऐसा लगने लगा है कि जैसे उनके बयान बोर और उबाऊ साबित हो रहे हैं.
नरेंद्र मोदी सामने हों तो फिर सार्वजनिक रूप से बोलने में तो कांग्रेसजनों को बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है. लोकसभा चुनाव के पहले ‘मेरा परिवार’ और शक्ति के खिलाफ लड़ाई का हथियार तो मोदी के हाथ में थमा ही दिया गया है. इससे पहले चौकीदार चोर है और खून का सौदागर जैसे बयानों से हुए नुक़सान से कांग्रेस ने शायद सबक नहीं लिया. लेकिन कांग्रेस के पुराने इतिहास को देखते हुए अभी तो यह अंगड़ाई है, आगे ऐसे अनेक मुद्दे कांग्रेस मोदी के हाथ में देती रहेगी. कांग्रेस शायद जनता को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने से ज्यादा अपनी नकारात्मक बातों से प्रचार को ज्यादा महत्व देने में लगी हुई है.