भाला फेंक प्रतिस्पर्धा में स्वर्ण पदक हासिल करके पाकिस्तान ओलंपिक की सूची में भारत से आगे निकल गया, खेलों में भारत का बेहद निराशाजनक प्रदर्शन बताता है कि सिर्फ जीडीपी में पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनने से इस दिशा में कुछ हासिल होने वाला नहीं है..!!
यह निश्चित ही शर्मनाक बात है कि भुखमरी-गरीबी और आतंकवाद का शिकार पाकिस्तान 2024 पेरिस ओलंपिक में पदक तालिका में आगे रह कर भारत को शर्मिंदा कर गया। देश की एक अरब 40 करोड़ की आबादी और खिलाडिय़ों पर 4 अरब 70 करोड़ रुपए खर्च करने के बावजूद भारत एक भी स्वर्ण पदक तक हासिल नहीं कर सका। भाला फेंक प्रतिस्पर्धा में स्वर्ण पदक हासिल करके पाकिस्तान ओलंपिक की सूची में भारत से आगे निकल गया। खेलों में भारत का बेहद निराशाजनक प्रदर्शन बताता है कि सिर्फ जीडीपी में पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनने से इस दिशा में कुछ हासिल होने वाला नहीं है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहतर प्रदर्शन के लिए खेलों में संसाधनों के साथ खेल संस्कृति का जज्बा जरूरी है। पाकिस्तान ही नहीं, अफ्र्रीका के ऐसे देश, जो दशकों से घरेलू युद्ध का बेहद गरीबी में सामना कर रहे हैं, वे भी ओलंपिक जैसे प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय खेलों के आयोजन में भारत को पछाड़ गए। भारतीय टीम से उम्मीद की गई थी कि वो टोक्यो ओलंपिक से अच्छा प्रदर्शन करेगी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। पेरिस ओलंपिक में भारतीय टीम पिछले ओलंपिक से एक मेडल कम रह गई। टोक्यो ओलंपिक में एक मेडल के मुकाबले पेरिस में 6 मेडल आए हैं। इसमें 5 ब्रांज और एक सिल्वर है। सिल्वर मेडल नीरज चोपड़ा ने जीता। केंद्र सरकार ने ओलंपिक में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए खिलाडिय़ों पर अरबों पर रुपए खर्च किए थे, लेकिन उसका परिणाम सुखद नहीं रहा है। पेरिस ओलंपिक में भारत की तरफ से 16 खेलों में 117 एथलीट गए थे। इस पर भारत सरकार ने कुल 470 करोड़ रुपए खर्च किए थे।
एथलेटिक्स के अलग-अलग खेलों के लिए कुल 96.08 करोड़ रुपए जारी किए गए थे। बैडमिंटन पर 72.03 करोड़, बॉक्सिंग पर 60.93 करोड़, शूटिंग 60.42 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। हॉकी पर 41.3 करोड़ और रेसलिंग पर 37.8 करोड़, आर्चरी में 39.18 करोड़ खर्च हुए थे। इसके अलावा वेटलिफ्टिंग, टेबल टेनिस, नौकायन जैसे खेलों पर भी करोड़ों खर्च हुए थे। औसतन एक मेडल के लिए सरकार को 78 करोड़ खर्च करने पड़े। भारत के लिए नीरज चोपड़ा ने जैवलिन में सिल्वर, मनु भाकर और सरबजीत सिंह ने शूटिंग में ब्रांज, भारतीय हॉकी टीम ने ब्रांज, अमन सहरावत ने कुश्ती में ब्रांज जीता। मनु भाकर ने 2 ब्रांज मेडल जीते थे। दूसरी तरफ भारत के पड़ोसी पाकिस्तान ने सिर्फ एक ही गोल्ड मेडल जीता है। लेकिन वह भारत से मेडल टैली में आगे निकल गया है, क्योंकि मेडल टैली में उसे ऊपर रखा जाता है, जो स्वर्ण पदक जीतता है।
भारत ने पेरिस ओलंपिक में कोई भी स्वर्ण पदक नहीं जीता है, जबकि पाकिस्तान के एक गोल्ड जीतते ही लॉटरी लग गई है। पेरिस ओलंपिक 2024 की मेडल टैली में भारत 71वें नंबर पर है, तो वहीं पाकिस्तान 62वें नंबर पर मौजूद है। हर विश्व चैंपियनशिप के दौरान भारत के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद कई सवाल पूछे जाते हैं। हमारी टीमें अक्सर गुस्साए और निराश दर्शकों के सामने लौटती हैं और हम अपने मेहनती खिलाडिय़ों पर भी अपनी निराशा व्यक्त करते हैं। खेलों में भारत की दुर्दशा का आलम यह है कि हॉकी के अलावा अन्य टीम वाले खेलों में भारत का विश्व स्तर पर अता-पता तक नहीं है। इसमें महिला टीम के खेलों की हालत और भी ज्यादा शोचनीय है। देश में खेल के लिए पर्याप्त वातावरण नहीं होने के अलावा लैंगिक भेदभाव भी खेलों में भारतीय महिलाओं के पिछडऩे की प्रमुख वजह है। भारत के ओलंपिक में निराशाजनक प्रदर्शन का कारण भारत की विश्व स्तर पर खराब रैंकिंग भी है। भारतीय टेनिस टीम विश्व में 23वें स्थान पर है। भारतीय पुरुष वॉलीबॉल टीम 127 देशों में से 34वें स्थान पर है। भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम 113 खेलने वाले देशों में से 100वें स्थान पर है। भारतीय बास्केटबॉल टीम 85 देशों में से 61वें स्थान पर है। नवीनतम फीबा रैंकिंग रिपोर्ट में हमारी रग्बी टीम 102 खेलने वाले देशों में से 74वें स्थान पर है। सवाल यह उठता है कि इतनी बड़ी आबादी, क्षेत्रफल और अर्थव्यवस्था वाले देश की हालत खेलों के प्रदर्शन में इतनी खराब कैसे है। खेलों की सुविधाओं में निवेश करने की भी जरूरत है। चीन ने ऐसा किया और कमाल का प्रदर्शन किया। ब्रिटेन ने ऐसा किया और लगातार बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। ऑस्ट्रेलिया, जापान आदि ने भी यही किया। जाहिर है कि अमेरिका के पास निवेश और एक बड़ी आबादी है जो कई ओलंपिक खेलों के लिए जुनूनी है, इसलिए उनका सामान्य प्रभुत्व है, लेकिन केन्या और इथियोपिया या जमैका जैसे देशों को देखें और जिस तरह से वे आर्थिक रूप से शक्तिशाली न होते हुए भी लगातार विशेष खेलों में विश्व स्तरीय एथलीट तैयार करने में सक्षम रहे हैं। इसका कारण यह है कि उनके पास उन प्रतियोगिताओं में भाग लेने की परंपरा है और उन देशों के बच्चे शायद वहां के लोगों को अपना आदर्श मानते हुए बड़े होते हैं जिन्होंने ओलंपिक खेलों में भाग लिया है और जीत हासिल की है।
दुखद है कि भारतीय मानसिकता खेलों में खर्च करने के खिलाफ रही है, वह चाहे सरकारी स्तर पर हो या पारिवारिक स्तर पर। इसे व्यर्थ का गैरउत्पादक निवेश माना जाता है। चीनी टेनिस खिलाड़ी झेंग किनवेन, जिसने हाल ही में ओलंपिक स्वर्ण पदक जीता है, ने टेनिस खेलना शुरू करने के बाद से अब तक 2.8 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक खर्च कर दिए हैं। 2.8 मिलियन डॉलर एक चीनी परिवार के लिए कोई छोटी रकम नहीं है, भारतीय परिवार की तो बात ही छोडि़ए। यहां तक कि अनुभवी एथलीटों के लिए भी प्रतियोगिता में पुरस्कार राशि जीतने की 100 प्रतिशत गारंटी नहीं होती। चीनी मीडिया का दावा है कि भारत में लडक़ों को खेलों के बजाय डॉक्टर और इंजीनियर बनाने पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
भारत में हर बच्चा किसी पॉप स्टार, किसी फिल्म स्टार या किसी अन्य सेलिब्रिटी को अपना आदर्श मानता है। ओलंपिक या किसी भी विश्वस्तरीय खेल प्रतियोगिता में भारत को सफल होने के लिए कड़ी मेहनत और दूरगामी नीति की जरूरत है।