लगभग 27 एकड़ में फैले स्वामीनारायण मंदिर परिसर के लिए यूएई सरकार ने इसके लिए जमीन दान की..!!
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस्लामिक देश संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की राजधानी अबू धाबी में भव्य हिंदू मंदिर का उद्घाटन करना संकेत देता है कि खाड़ी देश अब कट्टर इस्लामिक कानूनों से निजात पाकर तरक्की के रास्ते पर बढ़ रहे हैं। दरअसल, खाड़ी देशों के पास राजस्व का एकमात्र स्त्रोत प्राकृतिक तेलों के भंडार हैं, आने वाले दशकों में ये भंडार समाप्त हो जाएंगे।
इससे पहले इस्लामिक देश मजबूत आर्थिक आधार खड़ा करना चाहते हैं। इस्लामी कानून इसमें आड़े आ रहे थे। ऐसे में इन देशों ने शरीया कानूनों में ढील देना शुरू कर दिया है। पर्यटन और औद्योगिक निवेश को आकर्षित करने के लिए खाड़ी देश अपनी नीतियों में लगातार बदलाव कर रहे हैं।
यूएई में मंदिर बनना इस बदलाव का ऐतिहासिक उदाहरण है। खाड़ी देशों के लिए दूसरे देशों में मुसलमानों के साथ क्या हो रहा है, इससे अब ज्यादा सरोकार नहीं है। इन देशों की प्राथमिकता अपनी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करना है। यही वजह रही कि चाहे चीन के यूआन प्रांत में मस्जिदें ढहाने के मामले हों या इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध में फिलिस्तिनियों के मारे जाने का मुद्दा हो, खाड़ी के मुस्लिम देशों ने सीधे हस्तक्षेप नहीं किया।
यहां तक कि चीन के खिलाफ कभी एक लाइन का बयान तक जारी नहीं किया गया। चीन के वीगर मुसलमानों के दमन की खबरें बाहर आती रही हैं और उनको जबरन निगरानी कैंपों में भी भेजा जाता रहा है। ऐसे सभी मामलों में दुनिया के मानवाधिकार संगठनों से लेकर अमेरिका, ब्रिटेन और कई यूरोपीय देश खुलकर चीन की निंदा कर चुके हैं और करते रहे हैं, लेकिन कभी भी मुस्लिम देशों की ओर से इस पर कोई बयान नहीं आया।
मुस्लिम देशों के संगठन ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कॉपरेशन (ओआईसी) ने भी इस पर कभी कोई टिप्पणी नहीं की। यहां तक कि बीते साल मार्च में पाकिस्तान में हुई ओआईसी की बैठक में चीन के तत्कालीन विदेश मंत्री वांग यी विशेष अतिथि के रूप में पहुंचे थे। ओआईसी की बैठक के दौरान वांग यी ने वादा किया था कि बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) के तहत चीन मुस्लिम देशों में 400 अरब डॉलर निवेश करेगा।
ओआईसी के सदस्य देश पाकिस्तान, यूएई, सऊदी अरब, कतर, ओमान, बहरीन, मिस्र और कुवैत चीन की तारीफ करते रहे हैं। दुनिया की कुल आबादी में से इस्लाम मानने वालों की आबादी 2 अरब है। इसमें से 85 प्रतिशत शिया और 15 प्रतिशत सुन्नी मुसलमान हैं। समय के साथ इस्लाम को मानने वाले बदल भी रहे हैं। सऊदी अरब इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। सऊदी की अर्थव्यवस्था तेल पर निर्भर है। सऊदी 2030 तक अपनी इस अर्थव्यवस्था को बदलना चाहता है और पर्यटन पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है।
दुनिया में जिस तरह से इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल बढ़ रहा है, उसे देखते हुए आने वाले दिनों में तरल ईंधन पर निर्भरता कम होगी, ऐसे में आय के दूसरे स्रोत खड़े करने के लिए उदारता बरतना आवश्यक हो गया है। इसीलिए इस्लामिक देशों में कट्टरता से मुक्ति के नए रास्ते खोजे जा रहे हैं। पर्यटन और दूसरे क्षेत्रों में निवेश को आमंत्रित करने के लिए बदलाव की शुरुआत अऊदी अरब से हुई है।
प्रमुख इस्लामिक देश सऊदी अरब ने अपने देश में कट्टरता से मुक्ति की ओर बढ़ते हुए अपने देश में विदेशियों के लिए शराब की दुकान खोलने की इजाजत दी। सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस बिन सलमान ने देश की राजधानी रियाद में यह मंजूरी दी।पिछले दिनों महिलाओं को कार चलाने, पुरुषों के साथ कार्यक्रमों में शामिल होने, सिनेमाघरों में जाने और संगीत के कार्यक्रमों में शामिल होने की छूट भी दी गई है।
सऊदी अरब की तरह यूएई भी इस्लामी कानूनो को पीछे छोड़ बदलती दुनिया के साथ कदम से कदम मिला कर चलने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यूएई में हिंदू मंदिर का निर्माण है। यूएई की राजधानी अबू धाबी में पहला हिंदू मंदिर स्थापित किया गया है। लगभग 27 एकड़ में फैले स्वामीनारायण मंदिर परिसर के लिए यूएई सरकार ने इसके लिए जमीन दान की। माना जा रहा है कि इतने भव्य हिंदू धर्मस्थल का बनना यूएई और भारत के रिश्तों को और मजबूत करेगा।