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यह तो टैरिफ युद्ध है 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 15 Apr

सार

प्रधानमंत्री मोदी की फरवरी अमरीकी यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 2030 तक द्विपक्षीय कारोबार को 500 अरब डॉलर (करीब 43 लाख करोड़ रुपए) तक बढ़ाने के समझौते की घोषणा की थी, व्यापार-सौदा इसी के तहत किया जाना है, इसका प्रथम चरण सितंबर-अक्तूबर तक पूरा हो सकता है..!!

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विस्तार

अमरीका के ‘जैसे को तैसा टैरिफ’ से भारत की जीडीपी को 0.7 प्रतिशत का नुकसान हो सकता है। बेशक यह बहुत कम आंकड़ा लगता है, लेकिन नुकसान 2.5-3 लाख करोड़ रुपए तक का हो सकता है। यह कोई सामान्य राशि नहीं है। विशेषज्ञों के ही आकलन हैं कि यदि जीडीपी कम हुई, तो उत्पादन पर सीधा असर पड़ेगा, लिहाजा फैक्टरियां या तो कर्मचारियों की छंटनी करेंगी अथवा वेतन कम करेंगी।

आंकलन यहां तक हैं कि 7-8 लाख नौकरियां जा सकती हैं। ऐसा ही प्रभाव तमिलनाडु की कंपनियों पर पड़ सकता है, जहां कंपनियां इलेक्ट्रॉनिक्स का व्यापार करती हैं। भारत के गुजरात से प्रमुख तौर पर 78,000 करोड़ रुपए के रत्न-आभूषण, पत्थरों का कारोबार अमरीका के साथ किया जाता है। टैरिफ बढऩे से वे ज्यादा महंगे उत्पाद हो जाएंगे। एक उदाहरण एप्पल आईफोन का है, जिसकी फैक्टरियां भारत और चीन में हैं।

चीन पर 34 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया है। पहले से ही चीन पर टैरिफ काफी ज्यादा है। अब नए टैरिफ के बाद भारत-चीन में निर्मित एप्पल फोन अमरीकी बाजार में महंगा हो जाएगा, तो जाहिर है कि महंगा फोन कोई क्यों खरीदेगा? नए हालात में भारत की मुद्रा ‘रुपया’ और अधिक कमजोर होगा तथा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी कम होगा। केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय भी स्वीकार कर रहा है कि यह टैरिफ हमारे लिए ‘झटका’ नहीं, बल्कि ‘मिक्सबैग’ है।

यानी कुछ तो नुकसान के आसार हैं। राष्ट्रपति टरंप ने करीब 60 देशों पर ‘जैसे को तैसा टैरिफ’ थोपा है, नतीजतन दुनिया के देशों में हडक़ंप मचा है, अर्थव्यवस्थाएं हिल गई हैं, गरीबी और महंगाई के बढऩे के आसार हैं, ज्यादातर देश इसे ‘टैरिफ युद्ध’ मान रहे हैं और इसे टरंप का ‘व्यापारिक पागलपन’ करार दे रहे हैं। विशेषज्ञों के आकलन हैं कि दुनिया में 122 लाख करोड़ रुपए तक का नुकसान हो सकता है। बहरहाल भारत-अमरीका के बीच अनेक वस्तुओं और उपकरणों आदि का आयात-निर्यात होता है।

प्रधानमंत्री मोदी की फरवरी अमरीकी यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 2030 तक द्विपक्षीय कारोबार को 500 अरब डॉलर (करीब 43 लाख करोड़ रुपए) तक बढ़ाने के समझौते की घोषणा की थी। व्यापार-सौदा इसी के तहत किया जाना है। इसका प्रथम चरण सितंबर-अक्तूबर तक पूरा हो सकता है। उसमें टैरिफ का समाधान मिल सकता है।

अच्छी बात यह है कि भारत के फार्मा, तांबा, तेल, सेमीकंडक्टर, गैस, कोयला, एलएनजी, इंसुलिन, विटामिन्स, कीमती धातुएं (सोना, चांदी, प्लेटिनम), प्रिटेंड सामग्री और जिंक आदि 50 प्रमुख उत्पादों को ‘टैरिफ-मुक्त’ रखा गया है। करीब 6 अरब डॉलर के निर्यात वाली मशीनरी, 4 अरब डॉलर के निर्यात वाले मिनरल फ्यूल, 3 अरब डॉलर निर्यात वाले ऑर्गेनिक केमिकल्स और 1 अरब डॉलर के निर्यात वाले इमारती पत्थर आदि पर टैरिफ के कम असर पडऩे की संभावनाएं हैं, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक्स, स्मार्ट फोन, रत्न-आभूषण और कृषि सरीखे क्षेत्रों पर व्यापक असर पड़ेगा।

हमारे किसान 50,000 करोड़ रुपए के चावल, फल-सब्जियां, अनाज आदि अमरीका को भेजते हैं। चावल पर फिलहाल 2.7 फीसदी टैरिफ है, जो कुल मिला कर 9-11 फीसदी के बीच बनता है। टैरिफ बढऩे के बावजूद भारत वियतनाम, थाईलैंड, चीन की तुलना में बेहतर रह सकता है। चिंता की बात यह है कि भारत में खेती-उत्पादन अमरीका से 4 गुना कम होता है। भारत फार्मा, दवाओं आदि के मामले में व्यापक व्यापार कर सकता है। भारत इस क्षेत्र में अमरीका के साथ करीब 76,000 करोड़ रुपए का कारोबार करता है और यह ‘जैसे को तैसा टैरिफ’ से मुक्त रखा गया है। बहरहाल इस स्थिति में भारत अपने मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र को ज्यादा मजबूत कर सकता है। भारत को ‘इंतजार करो’ और फिर ‘निर्णय लो’ की नीति पर काम करना पड़ेगा। नौकरियां किसी भी सूरत में जानी नहीं चाहिए।