देश क़ा दुर्भाग्य है कि इस आज़ाद देश में एक तबका आज भी औरंगजेब को अपना ‘नायक’ मानता है...
बड़ी अजीब बात है, सरकार न जाने क्यों चुप है, यह विडंबना ही है कि स्वतंत्र और संप्रभु भारत में भी औरंगजेब के ‘फैन क्लब’ हैं! सोशल मीडिया पर इस नाम के समूह सक्रिय हैं और जो लगातार ऐसी-वैसी पोस्ट लिख रहे हैं, यह पराकाष्ठा तो है ही और अस्वीकार्य भी है।
‘औरंगजेब आप सबका बाप’ जुमले के बैनर और पोस्टर लिखे और लहराए जा रहे हैं। देश क़ा दुर्भाग्य है कि इस आज़ाद देश में एक तबका आज भी औरंगजेब को अपना ‘नायक’ मानता है। अदालतों के भीतर की बहस के दौरान ऐसी दलीलें दी जा रही हैं-औरंगजेब क्रूर और निर्दयी नहीं था। वह आक्रांता भी नहीं था। उसके कालखंड के दौरान मंदिरों और अन्य हिंदू धर्मस्थलों को ध्वस्त नहीं किया गया।
ऐसी दलीलों पर हैरानी तो होती है साथ ही हंसी भी आती है कि भारत के कुछ हिस्से आज भी मजहबी, मानसिक तौर पर गुलाम है। यूँ तो हम सांप्रदायिक सौहार्द के पक्षधर हैं और हमारा संविधान भी यही सिखाता है, लिहाजा संप्रदाय के नाम पर भडक़ाए गए दंगों और हिंसक उपद्रवों पर टिप्पणी करने से परहेज करते हैं, लेकिन महाराष्ट्र के कोल्हापुर, अहिल्या नगर आदि इलाकों में, औरंगजेब के महिमा-मंडन और आपत्तिजनक हिंदू-विरोधी जुमलों के मद्देनजर, जो सांप्रदायिक तनाव भडक़ा, उसकी भर्त्सना की जानी चाहिए।
आज का सवाल यह है कि यह सांप्रदायिक विभाजन का सिलसिला कब थमेगा? औरंगजेब का कालखंड बीते 300 साल से ज्यादा का वक्त गुजर चुका है, लेकिन औरंगजेब को आज भी उसे जिंदा रखने की कोशिशें जारी हैं। जब विवादास्पद दुष्प्रचार किया गया, तो कुछ हिंदू संगठनों ने ‘बंद’ का आह्वान किया। नतीजतन सांप्रदायिकता भिड़ पड़ी और पुलिस को लाठीचार्ज कर माहौल को सामान्य करना पड़ा। सवाल यह है कि 21वीं सदी के भारत में औरंगजेब क्यों और किस तरह प्रासंगिक है? मुगल बादशाहत को खत्म हुए सदियां बीत चुकी हैं। ब्रिटिश साम्राज्य की चूलें भी भारतीयों ने हिला दी और आज हमारा भारत एक आजाद मुल्क हैं।
मुर्दों को इतिहास में जिंदा रहने दें और अतीत को दर्ज करते रहें, लेकिन औरंगजेब को ‘देश का बाप’ मानने और प्रचारित करने का औचित्य क्या है? मौजूँ सवाल यह है क्या मुगल भारतीय मुसलमानों के वंशज थे? मुगल बादशाहों ने अपनी ही जमात पर भी खूब जुल्म ढाए थे, क्या मुसलमानों को ये तथ्य ज्ञात नहीं हैं? वाराणसी की कथित ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा का श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह मस्जिद विवाद अदालतों के विचाराधीन हैं। दोनों ही ऐतिहासिक साक्ष्य हैं कि औरंगजेब ने मंदिरों का विध्वंस किया और मस्जिदें बनवाई थीं। बदकिस्मती है कि भारतवंशियों को आज भी अपने आस्था-स्थलों के संरक्षण के लिए कानूनी लड़ाई लडऩी पड़ रही है।
इतिहास में ब्यौरे दर्ज हैं कि औरंगजेब ने राजस्थान के चित्तौडग़ढ़ में ही 63 हिंदू मंदिरों को तुड़वा कर ‘मलबा’ बनवा दिया था। 1669 में औरंगजेब के आदेश पर ही काशी का मंदिर तोड़ा गया और ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई गई। मालवा की तत्कालीन महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1780 में मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था, जिसे आज हम ‘काशी विश्वनाथ मंदिर’ के तौर पर जानते हैं।
औरंगजेब कितना अमानवीय अथवा क्रूर था, उसका एक ही उदाहरण पर्याप्त है। उसने सिखों के नवें गुरु तेगबहादुर जी का सिर धड़ से अलग करवा दिया था। दिल्ली का शीशगंज गुरुद्वारा उसी स्थान पर बना है, लेकिन गुलाम मानसिकता देखिए कि पास में ही ‘औरंगजेब रोड’ भी बनी है। औरंगजेब ने हमारे प्राचीन देश पर करीब 50 साल हुकूमत की। उस दौरान कितने मंदिर तोड़े होंगे, कितनी हत्याएं की होंगी, इसका ठोस, प्रामाणिक इतिहास उपलब्ध नहीं है, लेकिन औरंगजेब का बाबर, अकबर, जहांगीर, शाहजहां सरीखे बादशाहों की फ़ेहरिस्त में आज स्मरण करने का औचित्य क्या है? क्या उसका हिंदुस्तान के गौरव और गर्व के लिए कोई योगदान है।