यह तब जबकि पहले भोपाल से हो 100 सालों तक भी निपटना असंभव है..!!
यह बहुत पीड़ादायक है इंदौर से 40 वर्ष पूर्व भोपाल आकर गैस पीड़ितों के लिए काम करते हुए यह उम्मीद नहीं की थी कि अपने जीवन काल में दूसरा भोपाल बनते हुए भी देखना पड़ेगा।
यह तब जबकि पहले भोपाल से हो 100 सालों तक भी निपटना असंभव है। यह तब है जबकि इंसीनेटर में कचरा जलाने की पुरानी और आउटडेटेड प्रक्रिया के ट्रायल की नौटंकी को पीथमपुर में बार बार दोहराया जा रहा है और अनेक ट्रायल के ही मालवा की जमीन को घातक जहरों से प्रदूषित किया जा चुका है।
यह सब अधिकांश भोलीभाली जनता के विज्ञान और वैज्ञानिक तथ्यों को ना समझ पाने का फायदा उठाकर किया जा रहा है। कुछ मीडिया संस्थान भी सरकार और कॉरपोरेट के इस पर्यावरण के साथ किए गए कुकृत्य में शामिल है।
सीपीसीबी की जिस पुरानी 2015 की रिपोर्ट व प्रक्रिया के आधार पर पीथमपुर आज भोपाल के कचरे का ट्रायल किया जा रहा है वह रिपोर्ट अधूरी और भयानक खामियों से भरी है। पिछले सालों के गैर वैज्ञानिक ट्रायल पर ट्रायल और वर्तमान 2025 के ट्रायल के दौरान त्रुटिपूर्ण और गैर वैज्ञानिक लैंडफिल प्रक्रिया से जमीन में हजारों टन जहरीला कचरा डाला जा चुका अब और कचरा डाला जा रहा है।
यह कचरा निश्चित रूप से 100% सीपेज के द्वारा क्षेत्र के पीने के पानी और मिट्टी को जहरीला करेगा। 2015 के ट्रायल के कारण आज भी क्षेत्र के पीने के पानी में भोपाल के जहर पाए जा रहे है। मप्र में ऐसी प्रयोगशाला ही नहीं है जहां इंसीनेटर में कचरा जलाने पर चिमनी में से हवा में बाहर जाने वाली कैसरकारक गैस डाइऑक्सिन और फ्यूरान की जांच की जाए।
मालवा अंचल के इस पर्यावरण।को जहरीला बनाने का जिम्मेदार कौन है ? परन्तु पूंजीपतियों की सत्ता द्वारा मदारी बन कर जनता को बंदर बना कर नचाया जा रहा है चुनाव के बाद जनता को भिखारी, अनपढ़ गंवार सब एक साथ मान लिया गया है। कुछ वर्ष पूर्व भोपाल में पूर्व पर्यावरण मंत्री ने हाथ में मिट्टी लेकर जनता को बेवकूफ बनाया था कि देखो भोपाल की मिट्टी से मेरे हाथ को कुछ नहीं हुआ।
आज पीथमपुर में पूंजीपतियों की सरकार द्वारा दो कबूतर हवा में उड़ा कर बताया गया कि देखो j हमारे शांति कबूतरों को कुछ नहीं हुआ।इसलिए मान लो कि हमने जहर खत्म कर दिए है। विज्ञान भी मजाक बना कर रख दिया है। विज्ञान पूंजीपतियों के मुनाफे के लिए इस्तेमाल का टूल मात्र बन कर रह गया है।
पीथमपुर में भोपाल के ज़हर निपटाने कुछ विरोध हुआ है लेकिन वहां मौत सा सन्नाटा है कोई कुछ कह नहीं पा रहा है। कुछ कहने भी को अफवाहें फैलाना बताकर राज्य द्वारा दमन की धमकी दी जा रही है।
पूंजी मित्रो की सरकार ने जनता को कोर्ट और सरकार के बीच फुटबॉल बना दिया है। पूंजीदारों के असर से ऐसा लगता है कि जनता का कोई माईबाप नहीं रह गया है। जनता अनाथ नजर आ रही है उसकी बात सुनने वाला को नहीं। जनता को केवल और केवल सुनाया जा रहा है। पूंजी के सरकार पर असर और पूंजीवाद की तानाशाही की आवाज शायद ऐसी ही होती है।
मौत के सन्नाटे जैसी..... पूंजी केवल मुनाफे के लिए कम करती है,जनता के बोलने पर उसका गला दबा दो। जनता आवाज ही न निकले पीथमपुर में यही हो रहा है। आज तो मध्यप्रदेश में पूंजीपतियों से नियंत्रित सरकार द्वारा जनता के भिखारी होने भी पर भी मोहर लग गई है।
एक मंत्री मोहोदय द्वारा जनता को भरी महफिल में कहा गया है कि क्या भिखारियों की तरह टोकना भर मांगपत्र लेकर चले आते हो और ऊपर से गले में फूलमाला डालते हो साथ ही उन्होंने जनता को संस्कारवान बनने की नसीहत भी दी।
ये चुनाव के बाद के भिखारी है। हालांकि यही मंत्री महोदय चुनाव के वक्त घर घर जाकर जनता से वोट की भीख मांग चुके है। पर अब चुनाव हो चुके है। चुनाव में पूंजीपति उनकी हिमायती पार्टियों को चुनाव में चंदा दे चुके है अब उस एहसान को लौटाने का वक्त है जनता के पीने के पानी मिट्टी में जहर घोलने का वक्त है।
यदि जनता ने इसके विरोध में मांगपत्र दिया तो उन्हें भिखारी बता कर दुत्कार दिया जाएगा। जनता क्या कहती है ? हमारे पीने के पानी। फसलों के सिंचाई के पानी, हमारी मिट्टी हवा में जहर मत घोलों साहब !
सरकार कह रही है अरे जहर कहां है ये तो मिठाई है खाओ भी हमने हवा में भी और ऑक्सीजन डाली है जहर नहीं.. जनता कह रही है नहीं साहब हमने अभी हाल में जनवरी 25 में क्षेत्र में पीने के पानी जांच कराई है जिसमें 2015 में आपके 10 टन भोपाल कचरे के ट्रायल के कारण हमारे पीने के पानी में डायक्लोरोबेंजीन और ट्राईक्लोरोबेंजीन नामक जहरीले केमिकल पाए गए है सरकार कह रही है अरे मूर्ख कोर्ट भी कह रहा है कि झर नहीं है तो क्या कोर्ट की भी नहीं मानोगे ?
पूंजी से चंदा लेकर चुनी गई सत्ता और उसके पूंजीपति मित्र मिलकर जनता को पूंजीवाद का जहर मिठाई मान कर खाने को ख रहे है। मुनाफाखोर पूंजी मुनाफे के लिए कुछ भी कर सकती है। किसी भी सीमा तक जा सकती है।