समिति ने शासन के तीनों स्तरों के चुनाव में उपयोग के लिये एक मतदाता सूची और मतदाता फोटो पहचान पत्र की भी सिफारिश की है..!!
और अब लोकसभा चुनावों की घोषणा के होने के पहले ही पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व वाली समिति ने ‘एक राष्ट्र,एक चुनाव’ मुद्दे पर रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी है। कोविंद समिति ने इस योजना के मद्देनजर दो चरणों की सिफारिश की है। पहला लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक साथ चुनाव करवाना, दूसरा सौ दिनों के भीतर नगरपालिकाओं और पंचायतों का चुनाव कराना।
समिति ने शासन के तीनों स्तरों के चुनाव में उपयोग के लिये एक मतदाता सूची और मतदाता फोटो पहचान पत्र की भी सिफारिश की है। दरअसल, पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणापत्र में चुनावी खर्च घटाने, सरकारी संसाधनों की मितव्ययता ,सुरक्षा बलों का कुशलता से उपयोग सुनिश्चित करने तथा प्रभावी नीति नियोजन के लिये संसद, विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिये एक साथ चुनाव के विचार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जतायी थी। भारतीय जनता पार्टी की ओर से कहा गया था कि वह इस मुद्दे पर विभिन्न हितधारकों के मध्य आम सहमति बनाने का पुरजोर प्रयास करेगी।
कोविंद समिति का कहना है कि इस दौरान देश के सैंतालीस राजनीतिक दलों ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के बाबत अपने विचार रखे। दावा किया जा रहा है कि इन दलों में से 32 राजनीतिक दलों ने एक साथ चुनाव कराये जाने के सुझाव का समर्थन किया। निश्चित रूप से यह एक बड़ी चुनौती है कि साल भर देश के किसी न किसी राज्य में विधानसभाओं के चुनाव होते रहते हैं। जिसके चलते जहां चुनावी खर्च बेतहाशा बढ़ जाता है, वहीं नौकरशाही जनता के विकास कार्यों के बजाय चुनाव प्रबंधन में जुटी रही है। वहीं बार-बार आचार संहिता लगने से विकास कार्य भी बाधित होते हैं। ऐसे में पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने के विचार को एक कारगर विकल्प के रूप में बताया जाता रहा है। लेकिन, इस विचार को अमली-जामा पहनाने में कई व्यावहारिक दिक्कतें भी हैं।
आम चुनाव से पहले ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के मामले को संबोधित करना भाजपा के एजेंडे का आखिरी बड़ा मुद्दा है। इसमें दो राय नहीं कि एक साथ चुनाव कराने के लिये एक सामान्य मतदाता सूची का विचार पहली नजर में लाभकारी नजर आ रहा है, लेकिन यह विचार अमल की चुनौतियों से मुक्त नहीं है। अक्सर लोकसभा और विधानसभा चुनावों में मतदाता अलग-अलग मुद्दों पर मतदान करते रहे हैं। इनमें मतदान का प्रतिशत व रुझान भी भिन्न दिखायी देता है। मसलन, वर्ष 2014 और 2019 में दिल्ली में लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी सीटों पर सफलता प्राप्त की, लेकिन वहीं आम आदमी पार्टी ने वर्ष 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में उल्लेखनीय जीत हासिल की। विपक्षी दलों का आरोप है कि एक ‘राष्ट्र, एक चुनाव’ का मुद्दा भाजपा ने लोकसभा के साथ विधानसभा चुनावों में सफलता हासिल करने के लिये उछाला है। वे इसे केंद्र में सत्तारूढ़ दल की वोट हासिल करने की चाल बता रहे हैं।
अब सवाल यह है कि उन राज्यों में क्या स्थिति होगी, जहां पिछले दिनों विधानसभा के चुनाव संपन्न हुए हैं। राजनेताओं की मांग है कि कोविंद समिति द्वारा रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद इस विवादास्पद मामले में सर्वसम्मति बनाने के लिये सभी राजनीतिक दलों से बातचीत करनी चाहिए। निश्चित रूप से इतने बड़े देश में एक साथ चुनाव कराने के लिये व्यापक तैयारियों की जरूरत होगी। जिसके अंतर्गत चुनाव कराने में सहायक उपकरणों, चुनाव में ड्यूटी देने वाले कर्मचारियों की व्यवस्था व सुरक्षा बलों की तैनाती से जुड़े सभी पहलुओं पर गंभीरतापूर्वक विचार करने की जरूरत है। बेहतर व्यवस्था के लिये दीर्घकालीन नियोजन की जरूरत होगी। वहीं कुछ राज्यों में सत्ता पर काबिज विपक्षी दल इस कदम को देश के संघीय ढांचे के विरुद्ध बता रहे हैं। साथ ही इसे अलोकतांत्रिक व अव्यावहारिक भी बता रहे हैं।
निश्चित रूप से एक देश, एक चुनाव मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों व आम लोगों में गंभीर विचार-विमर्श की आवश्यकता महसूस की जा रही है। इस मुद्दे पर आम सहमति व लोकतांत्रिक तरीके से विचार करके ही व्यावहारिक तौर पर इसे मूर्त रूप दिया जा सकता है।