ये प्रसंग आज चुनावी नतीजों के साथ ,उसके बाद की राजनीति और सत्ता की मसनद पर मचकते लोगों याद दिलाना जरूरी है।
मध्यप्रदेश में भी चुनाव होंगे और लोकसभा चुनाव के आस –पास होंगे | बीते कल आये पांच विधानसभा चुनाव के नतीजों के विश्लेषण में जीत- हार के कारकों में एक “प्रदेश में पार्टी प्रमुख” का व्यवहार भी सामने आया है | प्रदेश में पार्टी प्रमुख के रूप में मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष होते हैं और सारा तंत्र इनके इशारे पर नाचता है | ये नतीजे कुछ उन लोगों के लिए सबक हो सकते हैं जो इन दिनों “सत्ता की मसनदों” मचक रहे हैं | इस मचकने के गुरुर में उन्हें यह भी याद नहीं है कि उनका व्यवहार किसके साथ कैसा हो ?
मध्यप्रदेश में पिछले दिनों घटी दो घटनाओं का स्मरण यहाँ जरूरी है | एक –प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री का वर्तमान मुख्यमंत्री से मिलने के लिए धरना देना| दो- एक प्रतिपक्षी दल के कार्यालय पर पुलिस भेज कर आन्दोलन रोकना | दिग्विजय सिंह का मिलने के लिए धरना देना सांकेतिक नहीं था और न ही मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के दफ्तर में अलसुबह पुलिस भेजना | दोनों घटनाओं में जनहित और न्याय जैसे मुद्दे जुड़े हैं,दूसरी घटना तो सरकार की रीति नीति और भेदभाव की खुली कहानी है, आशा कार्यकर्ताओं को अन्य राज्यों की तुलना में कम पारिश्रमिक और उस पारिश्रमिक का भी भुगतान अनियमित, आन्दोलन करने से पहले पुलिस के माध्यम से प्रताड़ना | यह सरकार की लोकप्रियता के परिचायक नहीं हैं |
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे अमरिंदर सिंह,चरनजीत चन्नी, नवजोत सिंह सिद्धू ,और गोवा में उत्पल पर्रीकर की स्थिति पर कुछ इशारा करते हैं | ये इशारे मध्यप्रदेश सहित उन राज्यों के लिए “एडवांस नसीहत”है | इनके व्यक्तिगत प्रदर्शन के साथ, सामूहिक प्रदर्शन यानि “वोट बैंक का गुमान” पर भी बात जरूरी है |
बसपा इतनी बुरी तरह से क्यों हार गई?उत्तरप्रदेश में बसपा पार्टियों में आज सबसे नीचे पड़ी है। ओमप्रकाश राजभर की पार्टी, अनुप्रिया पटेल की पार्टी, कांग्रेस पार्टी, जयंत चौधरी की लोकदल पार्टी और यहां तक की निषाद पार्टी तक बहुजन समाज पार्टी से आगे हैं। २०१४ के लोकसभा चुनाव में बसपा पहले ही शून्य पर पहुंचने का रिकार्ड बना चुकी है। बसपा के हार की वजह क्या है? क्या सिर्फ बहनजी?जी नहीं। बसपा के हार की वजह इस पार्टी के नेता हैं जो इतने रीढ़ विहीन हैं कि पार्टी से निकाले जाने के डर से अपनी आवाज को गिरवी रख चुके हैं। बसपा के हार की वजह उसके समर्थक भी हैं, जो पार्टी की कमियों पर बात नहीं करना चाहते, जो अपनी नेता की कमियों पर बात नहीं करना चाहते। यही नहीं, कमियों को सुनना भी नहीं चाहते। बल्कि जो लोग उन कमियों को सामने लाते हैं, उस पर बात करते हैं, उनको गालियां तक देने को तैयार रहते हैं। छूटते ही उन्हें किसी दूसरे दल का एजेंट, दलाल या बिका हुआ बता दिया जाता है। जमीनी हकीकत सुनने की बजाय सिर्फ बसपा की जय-जय सुनने की उम्मीद करते हैं।मध्यप्रदेश मंत यही स्थिति भाजपा में बन रही है |
भाजपा तो उस जनता पार्टी का अंग है जिसे जयप्रकाश नारायण ने खड़ा किया था | उन्होंने जनता पार्टी के नवनिर्वाचित सांसदों को राजघाट पर बापू की याद दिलाते हुए आदर्श जनसेवक बनने की बाकायदा शपथ दिलाई और उसके बाद पराजित हो चुकी पूर्व प्रधानमत्री इंदिरा गांधी से मिलने उनके घर गए। जब जयप्रकाश पराजित इंदिरा गांधी से मिले, तो उन्होंने अपनी तरफ से और विजयी जनता पार्टी की तरफ से उनको निजी सुरक्षा को लेकर निश्चिंत रहने का पूरा भरोसा दिलाया। ये प्रसंग आज चुनावी नतीजों के साथ ,उसके बाद की राजनीति और सत्ता की मसनद पर मचकते लोगों याद दिलाना जरूरी है।